बिहार की राजनीति में परिवारवाद का बोलबाला! 27% नेता और 57% महिला नेता खानदानी, पढ़िए जिलेवार रिपोर्ट

Bihar Election 2025: बिहार की राजनीति में परिवारवाद की पकड़ बेहद मजबूत है. राज्य के 27% विधायक, सांसद और विधान पार्षद खानदानी राजनीति से आते हैं, जबकि महिला नेताओं में यह आंकड़ा 57% तक पहुंच जाता है. चाहे गया, नवादा या मोकामा हर जिले में एक या दो परिवार दशकों से सत्ता में अपनी पकड़ बनाए हुए हैं.

By Abhinandan Pandey | September 25, 2025 12:13 PM

Bihar Election 2025: भारतीय राजनीति में परिवारवाद कोई नई बात नहीं है. देश के कई राज्यों में नेता का बेटा नेता, बेटी विधायक और भाई सांसद बनता दिखाई देता है. बिहार में भी यह तस्वीर कुछ अलग नहीं है. राज्य में चुनावी मैदान में उतरने वाले नेताओं की बड़ी संख्या किसी न किसी राजनीतिक घराने से आती है. हालिया आंकड़े बताते हैं कि बिहार के 27% विधायक, सांसद और विधान पार्षद खानदानी राजनीति की देन हैं.

महिला नेताओं में और गहरा परिवारवाद

महिला नेताओं के मामले में यह आंकड़ा और भी अधिक है. बिहार की करीब 57% महिला जनप्रतिनिधि किसी राजनीतिक परिवार से आती हैं. इसका मतलब साफ है कि महिलाओं की राजनीति में एंट्री अभी भी मुख्य रूप से पारिवारिक विरासत पर आधारित है, न कि व्यक्तिगत संघर्ष या क्षमता पर.

क्या कहती है ADR रिपोर्ट?

ADR (एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार देश के उन राज्यों में चौथे नंबर पर आता है जहां वंशवाद की जड़ें सबसे गहरी हैं. आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक के बाद बिहार का स्थान आता है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि राज्य की राजनीति सिर्फ जनाधार पर नहीं, बल्कि परिवार की विरासत पर भी निर्भर करती है.

पार्टीवार आंकड़े पर एक नजर

राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस में सबसे अधिक वंशवाद देखने को मिलता है. बिहार में कांग्रेस के 32% जनप्रतिनिधि किसी राजनीतिक परिवार से आते हैं. वहीं, भाजपा में यह आंकड़ा 17% है. क्षेत्रीय दलों में स्थिति और भी स्पष्ट है. लोजपा (रामविलास), हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) और आजसू पार्टी के 50% जनप्रतिनिधि खानदानी हैं. राजद और जदयू में यह अनुपात लगभग 31% तक पहुंचता है.

लालू यादव से लेकर मांझी तक: परिवारों का दबदबा

बिहार की राजनीति में बड़े परिवारों का नाम लेने पर सबसे पहले लालू प्रसाद यादव का परिवार सामने आता है. लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव, तेज प्रताप यादव, मीसा भारती और रोहिणी आचार्य पूरा परिवार राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. रामविलास पासवान की विरासत अब उनके बेटे चिराग पासवान संभाल रहे हैं. वहीं, जीतन राम मांझी का परिवार भी राजनीति में ऐक्टिव हैं. मांझी के पुत्र, पुत्रवधु और समधन विधान मंडल में अपनी पैठ बनाए हुए हैं.

पूर्व मंत्री शकुनी चौधरी का परिवार, जगजीवन राम और जगन्नाथ मिश्रा की अगली पीढ़ी, कर्पूरी ठाकुर और डॉ. अनुग्रह नारायण सिन्हा के वंशज सभी आज भी बिहार की राजनीति में ऐक्टिव हैं. यह बताता है कि यहां राजनीति में परिवारवाद की पकड़ वर्षों से कायम है और नई पीढ़ी भी इसे आगे बढ़ा रही है.

जिलेवार उदाहरण: गया, नवादा, जमुई और शाहाबाद

गया-नवादा क्षेत्र में पीढ़ी दर पीढ़ी राजनीति की परंपरा स्पष्ट रूप से दिखती है. गया जिले में जीतन राम मांझी का परिवार लंबे समय से सक्रिय है. मांझी के बेटे विधान पार्षद (MLC) हैं, जबकि उनकी पुत्रवधु और समधन विधायक हैं. नवादा में यादव परिवारों का दबदबा है. कृष्णा यादव से शुरू हुआ सिलसिला अब उनके बेटे अशोक यादव तक पहुंच गया है. युगल किशोर यादव का परिवार भी पीढ़ियों से राजनीतिक गतिविधियों में शामिल है.

भोजपुर में भी परिवारवाद की परंपरा जारी

जमुई और शाहाबाद में भी राजनीतिक विरासत की मजबूत पकड़ देखने को मिलती है. जमुई जिले में स्वतंत्रता सेनानी कृष्णा सिंह का परिवार दशकों से सक्रिय है. उनके बेटे नरेंद्र सिंह मंत्री बने और अब पौत्र सुमित सिंह नीतीश सरकार में मंत्री हैं. शाहाबाद इलाके में बक्सर से जगदानंद सिंह छह बार विधायक और फिर सांसद बने, अब उनके बेटे सुधाकर सिंह राजनीतिक विरासत संभाल रहे हैं. भोजपुर जिले में अंबिका शरण सिंह के बाद उनके पुत्र राघवेंद्र प्रताप सिंह सात बार विधायक बने. रामानंद तिवारी, शिवानंद तिवारी और अब राहुल तिवारी. यहां भी परिवारवाद की परंपरा जारी है.

मोकामा: बाहुबली और परिवारवाद का गढ़

मोकामा सीट दशकों से परिवारवाद और बाहुबली राजनीति का केंद्र रही है. सूरजभान सिंह, उनके भाई चंदन सिंह, पत्नी वीणा देवी और रिश्तेदार राजनीति में सक्रिय रहे. दूसरी ओर अनंत सिंह, जिन्हें बाहुबली कहा जाता है, लगातार पांच बार विधायक रहे. जेल जाने के बाद उनकी पत्नी नीलम देवी विधायक बनीं. बांकीपुर से चार बार विधायक और मंत्री बने नितिन नवीन भी अपने पिता नवीन किशोर सिन्हा की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं.

बिहार की राजनीति में बदलाव मुश्किल

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बिहार का कोई भी जिला ऐसा नहीं है जहां एक-दो परिवारों का दशकों तक दबदबा न रहा हो. चाहे गया हो, नवादा हो, जमुई हो या पटना. हर जगह किसी न किसी परिवार की पकड़ कायम है. यही वजह है कि बिहार की राजनीति में बदलाव की बात करना आसान है, लेकिन वास्तविकता यह है कि यहां चुनाव का गणित आज भी परिवार और जाति की विरासत पर आधारित है.

नए नेताओं के लिए पॉलिटिकल एंट्री मुश्किल

विश्लेषकों का कहना है कि बिहार में वंशवाद और परिवारवाद ने न केवल सत्ता की संरचना तय की है, बल्कि नए नेताओं के लिए राजनीतिक प्रवेश द्वार भी सीमित कर दिया है. महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी में भी यह परंपरा स्पष्ट दिखाई देती है. परिवारों की राजनीति ने नए नेताओं के लिए मार्ग कठिन कर दिया है, जिससे राज्य की राजनीतिक गतिविधियां अधिकतर पारिवारिक विरासत के इर्द-गिर्द घूमती हैं.

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