सिर्फ हम ही बच जाएंगे क्या?

अभी तक तो ऐसे इतना घर का न याद आरहा था, न डर लग रहा था और न ही दिक्कत सबका कुछ खास पता चल पा रहा था.

By UGC | April 30, 2020 7:02 PM

अभी तक तो ऐसे इतना घर का न याद आरहा था, न डर लग रहा था और न ही दिक्कत सबका कुछ खास पता चल पा रहा था. आराम से निश्चिंत हो के फोन चला रहे थे, फिर कभी सिनेमा देख लेते और थोड़ा बहुत पढ़ भी ले रहे थे. ऐसे लगता नहीं है कि अब एग्जाम होगा मई वाला. मम्मी बोल रही थी,पापा को दुकान पर बैठे महीना होने वाला है. लगता है ई महीना खर्च का पैसा कम आएगा।फिर चौकी पर खाते-खाते,सिनेमा देखते-देखते सो गए. सुबह उठे तो देखे कि 402 वाला अपने घर बनारस निकल रहा है,और फिर करीब 2 बजे ई 405 रूम वाला दोनों भी गोरखपुर के लिए बस पकड़ने चला गया. शान्ति,शांति लग रहा था दिन भर, लेकिन कल का जो बच गया था अंग्रेजी का वेब सीरीज हम उ पूरा करने में लग गए. खत्म करते-करते रात का 8 बज गया था,मेस जाने के लिए उठे और रूम मेट को उठाए तो उ पगला दिन में भी सुत्ता है और अभियो सो रहा था, छोड़ दिए उसको वैसे ही. निकले रूम से तब देखे की पूरा फ्लोर का लाइट बंद था. 403 में जा के खट-खटाए तो देखे उ भी बाहर से बंद था. सीढ़ी उतरते-उतरते पापा का फ़ोन आगया, खाना पिना का पूछे और बताए कि यू पी सरकार कोटा में रहने वाले बच्चों के लिए बस भेजी है।हम उनसे पूछे भी की पापा हुमलोग के लिए भी सरकार भेजेगी बस. उस समय पापा दिलासा देते हुए बोले”हाँ” अगर जादा दिक्कत होगा तो काहे नहीं भेजेगा.

उस समय तक कुछ खास समझ नही आ रहा था कि क्या जाना जरुरी है हमलोग के लिए भी? ऐसे लगता नहीं कि यहाँ दिक्कत होगा,आराम से तो हैं खाना खाएंगे,सोएंगे,पढ़ेंगे।ऐसे भी इसबार पैसा कम आएगा बाहर जाएंगे नहीं तो खर्चा होगा नहीं.

सुबह उठते-उठते 11 बज गया,रात भर उ फ़ोन में गेम खेलते रह गए थे. उठे तो एगो होमवर्क बना के कोचिंग वाले ग्रुप में डाल दिए. फिर एगो नया जबरदस्त अंग्रेजी सिनेमा का कल्हे ट्रेलर देखे थे उसको देखने बैठ गए. देख ही रहे थे तब तक उ मोतिहारी वाला निशांत आ गया,वो बताया कि आधा से ज्यादा हॉस्टल पूरा कोटा में खाली हो गया है. बहुत परेशान दिख रहा था,तो हम पूछ दिए कि क्या हुआ ऐसे क्यों उदास हो? बताया कि उसके पापा का मोतिहारी में गांधी संग्रहालय के पास पान का गुमटी है,जो कि करीब 20 दिन से नही खुला है. और अब उसके पापा शायद इस महीना का मेस का खर्चा भी नहीं भेज पाएं, तब तक दरभंगा वाला राजेश आया,और जो भी चिंता से बचे हुए थे,उ सब लेकर आया था. बताया कि उसकी बहन जो गर्ल्स हॉस्टल में रहती है वहां उसकी रूम-मेट वापस घर पटना भी चल गई,क्या तो पापा आए थे उसके।निशांत बोला पापा कहा से आजायेंगे भाई? राजेश बताया कि उसके पापा विधायक हैं गाड़ी से आए और लेके चले गए. हमलोग सब शांति से बैठे थे,तबतक बाहर में सब बात कर रहा था कि कोरोना किसको है, कहाँ है-नहीं है, कुछ समझ नहीं आता है।हमको तो मेस का खाना खाने में भी डर लगता है और अब तरह-तरह का बदल-बदल कर खाना भी नहीं देता है जबसे इ बंदी हुआ है।फिर सब अपने- अपने रूम में चले गए,हमको भी अब सिनेमा में मन नहीं लग रहा था।अब घर का भी बहुत याद आने लगा, अंदर से डर भी लगने लगा था फिर भी लग रहा था कि सरकार बुलाएगी ही. हम इसी सरकार में अपने गाँव तक का रोड बनते देखे हैं, गाँव में बिजली 16-16 घन्टा रहते हुए देखे हैं।हमलोग को भी बस भेज के मंगवाइये लेंगे नितीश अंकल।लेकिन अगर बस नही आया और घर नहीं जापाए तो? यहां इतना बीमारी फैला हुआ है और पटना में भी उतना ही फैला हुआ है।पता नही अस्पताल सबका क्या हाल है!पापा,मम्मी भी वही हैं, और इ बीमारी होने का डर सबको हैअब लगने लगा कि पटना में ही नाम लिखा लेते ,बोरींग रोड वाला कॉचिंग में तो होइए गया था।हम ही को ज्यादा जोश था यहां आने का.

प्रत्यय अमृत

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