हिंदी दिवस : डिजिटल दौर ने बहुत से बंधनों को तोड़ दिया है

दिव्य प्रकाश दूबे... लेखक जब हम शहर में बहुत थक जाते हैं, तो हमें सुकून की जरूरत पड़ती है. उस सुकून के लिए हम कई बार अपने गांव लौटते हैं, जहां कुछ भी तेज नहीं है, जहां आसमान साफ है, जहां हवा एक ठंडे झोंके की तरह लगती है. हिंदी असल में हमारा वही गांव […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 14, 2019 7:01 AM

दिव्य प्रकाश दूबे

लेखक

जब हम शहर में बहुत थक जाते हैं, तो हमें सुकून की जरूरत पड़ती है. उस सुकून के लिए हम कई बार अपने गांव लौटते हैं, जहां कुछ भी तेज नहीं है, जहां आसमान साफ है, जहां हवा एक ठंडे झोंके की तरह लगती है. हिंदी असल में हमारा वही गांव है, जो हमें याद तो रोज आता है, लेकिन हम वहां पहुंच नहीं पाते. डिजिटल दौर में हिंदी ने अपनी धूल झाड़ ली है. डिजिटल क्रांति ने असल में उस गांव को हमारे हाथ में लाकर रख दिया है. आप देखिए, हमारे चरों और भीड़ है शोर है.

न केवल सड़क पर, बल्कि हमारे मोबाइल में, जहां हर अगला वीडियो हमें चिल्ला कर अपनी ओर बुलाना चाह रहा है. इतने चैनल इतने वीडियो प्लेटफॉर्म के बीच में हम अब भी अपना पुराना रविवार ढूंढते हैं, जहां शांति थी, सुकून था.

ठीक वैसे जैसे पुराना दोस्त, जो बहुत दिनों बाद मिले हों. हिंदी असल में एक बेफिक्री लेकर आती है. खास कर के अब जब व्हाॅट्सएप्प से लेकर सभी सोशल मीडिया साइट्स पर हिंदी का कंटेंट तेजी से बढ़ रहा है, वह हमें चीख-चीख कर बता रहा है कि हम थोड़े दिन अलग लबादा ओढ़ सकते हैं, लेकिन बात वैसे ही करो, जैसा कि हम हैं. अब टेक्नोलॉजी ने यह सब कुछ इतना आसन कर दिया है कि आप बोल कर भी टाइप कर सकते हैं.

मैंने बचपन में कहानी सुनी थी कि कोयल इसलिए नहीं गाती, क्योंकि उसकी आवाज अच्छी है, बल्कि वह इसलिए गाती है, क्योंकि उसके पास गीत है. हम सभी के पास हमारा अपना एक गीत, एक कहानी है, जो पूरी दुनिया में केवल हम ही सुना सकते हैं. डिजिटल दौर में हिंदी ने सुनाने के तरीके इतने आसन कर दिये हैं, जितने कभी नहीं थे. डिजिटल दौर ने बीच के वे सारे बंधन तोड़ दिये हैं. अब आप सीधे अपने पाठक से अपने तरीके से तुरंत जुड़ सकते हैं, जो अपने आप में किसी क्रांति से से कम नहीं है.