नृत्य की दुनिया की ”द फेयरी क्वीन”

तमारा कार्सावीना के नृत्य की गीतात्मक मधुरता, उसकी चाल, उसका रहस्यमय व्यक्तित्व, उसकी कुलीनता-शालीनता ‘द फेयरी क्वीन’ व ‘द रोमांस आफ द रोज’ की दुनिया जैसी ही थी. कई बार उसका कुंवारा सौंदर्य, उसके नृत्य की भांति मासूम अनुभव होता. उसका सौंदर्य मानो दुनिया की पहली किरण की मानिंद मुक्त था. उसका नृत्य बुद्धि और […]

By Prabhat Khabar Print Desk | July 12, 2019 6:02 AM
तमारा कार्सावीना के नृत्य की गीतात्मक मधुरता, उसकी चाल, उसका रहस्यमय व्यक्तित्व, उसकी कुलीनता-शालीनता ‘द फेयरी क्वीन’ व ‘द रोमांस आफ द रोज’ की दुनिया जैसी ही थी. कई बार उसका कुंवारा सौंदर्य, उसके नृत्य की भांति मासूम अनुभव होता.
उसका सौंदर्य मानो दुनिया की पहली किरण की मानिंद मुक्त था. उसका नृत्य बुद्धि और संवेग का सटीक सम्मिश्रण था. सृजनात्मक आत्मा और सुडौल इच्छा के बीच उत्कृष्ट तालमेल. जब वह थियेटर में बैले करती तो नृत्य और उसमें अंतर कर पाना संभव नहीं होता. डांस करते हुए वह अपना सुध-बुध खो देती थी.
सच में, हमारे जिंदगी के बेहतरीन पल वे होते हैं, जब हमारे स्व का अस्तित्व नहीं रहता है. जब हम इसके पार चले जाते हैं. यह चाहे व्यक्तिगत जीवन में हो या पेशेगत जीवन में हो. इसी स्व के पार चले जाने का आधुनिक मनोविज्ञान में ‘स्व के परे’ कहते हैं. समस्त सृजनात्मक कार्य इसी स्थिति में होते हैं. इसी स्व स्थिति में व्यक्ति सवोत्तम कार्य करता है.
संगीत, चित्रकला, लेखन, खेल या गहन प्रेम सब इसी स्थिति में होते हैं. इस प्रवाह को ‘फ्लो स्टेट’ कहा जाता है. ‘फ्लो स्टेट’ की सर्वोत्तम स्थिति नृत्य में देखने को मिलती है. एक डांसर नृत्य के दौरान ‘फ्लो स्टेट’ में चला जाता है तो उसके नृत्य को उससे भिन्न करना कठिन हो जाता है. सच्चा नर्तक/नर्तकी नृत्य करते हुए नृत्य ही हो जाता/जाती है. यही वजह है कि नृत्य को सब पसंद करते हैं.
नृत्य की पसंदगी के साथ उसके कलाकार की पसंदगी का मामला भी बहुत सुक्ष्मता से जुड़ा होता है. अपनी प्रस्तुति में भले ही डांसर डांस के साथ एकमेव व एकाकार हो जाता है पर मंचीय प्रस्तुति के बाद नृत्य की मनमोहक भाव-भंगिमाओं में डूबा दर्शक तो डांसर की अदा व उसकी खुबसूरती को जेहन में साथ लिये ही बाहर आता है.
यही वजह है कि नृत्यांगनाओं के बारे में और अधिक जानने की ख्वाहिश हर किसी में रहती है. उनकी खुबसूरती, प्रेम कथाओं, अदाओं और उनके जीवन के उतार-चढ़ाव के बारे में हर कोई जानने को उत्सुक रहता है.
संवाद प्रकाशन द्वारा हाल में ही प्रकाशित पुस्तक ‘महान बैले नृत्यांगनाएं : उनका जीवन और कला’ पाठकों की इसी रुचि को परिष्कृत करती है.
वरिष्ठ लेखिका डॉ विजय शर्मा द्वारा अनुदित यह पुस्तक मारी टैग्लिओनी, अन्ना पावलोवा, इजाडोरा डंकन, तमारा कार्सावीना, ओल्गा स्पिसव्टजेवा और एलीसिया मार्कोवा जैसी विश्वविख्यात बैले डांसर के बारे में विस्तार से बताती है. इस नृत्यांगनाओं की दुनिया के बारे में पढ़ना जैसे परियों के संसार को जानने जैसा है. इस पुस्तक की भाषा इतनी सरल व सहज है कि पाठक तुरंत इसके साथ एकात्म हो जाता है. इस पुस्तक के मूल लेखक रिचर्ड ऑस्टिन हैं.
पुस्तक
महान बैले नृत्यांगनाएं : उनका जीवन और कला
लेखक
रिचर्ड आस्टिन, अनुवाद – विजय शर्मा
प्रकाशक
संवाद प्रकाशन
पृष्ठ
214
मूल्य – 200 रुपये

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