#Budget2019 : कुछ लिया नहीं, और क्या लोगे!

आलोक पुराणिक... अर्थशास्त्री देश के अधिकांश करदाताओं को बजट 2019-20 का यही संदेश है कि कुछ नये कर आपकी जेब से नहीं निकाले, और क्या चाहिए. यूं बजट भाषण में केंद्रीय वित्त मंत्री ने तमाम घोषणाओं में यह जताया है कि इस सरकार के कार्यकाल में अर्थव्यवस्था ने तरक्की की नयी ऊंचाइयां छुई हैं. 9.4 […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 6, 2019 2:12 AM

आलोक पुराणिक

अर्थशास्त्री

देश के अधिकांश करदाताओं को बजट 2019-20 का यही संदेश है कि कुछ नये कर आपकी जेब से नहीं निकाले, और क्या चाहिए. यूं बजट भाषण में केंद्रीय वित्त मंत्री ने तमाम घोषणाओं में यह जताया है कि इस सरकार के कार्यकाल में अर्थव्यवस्था ने तरक्की की नयी ऊंचाइयां छुई हैं. 9.4 करोड़ टायलेट बनवा दिये गये. एक ट्रिलियन डालर यानी एक लाख करोड़ डालर की अर्थव्यवस्था बनने में देश को 55 साल लगे और गत पांच सालों में एक ट्रिलियन अर्थव्यवस्था में जोड़ दिये गये.
आयकर ढांचे में कोई बदलाव नहीं है, सिवाय इसके कि दो करोड़ से पांच करोड़ की आयवालों का कर दायित्व 3 प्रतिशत बढ़ गया और 5 करोड़ रुपये से ऊपर की आय वालों का कर दायित्व 7 प्रतिशत बढ़ गया. बहुत ऊंची आयवालों को कर ज्यादा देना होगा. पांच लाख तक की कमाईवालों को कर छूट ही दी ही चुकी है.
पर पांच लाख से ऊपर के मध्यमवर्ग के लिए, उच्च मध्यमवर्ग के लिए इस बजट ने कोई राहत नहीं है. उनके लिए यथास्थिति है, बल्कि डीजल और पेट्रोल पर एक रुपये का अतिरिक्त कर लगाकर सरकार ने अपने लिए, तो कर की व्यवस्था कर ली, जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की नरमी का लाभ उपभोक्ताओं को भी दिया जा सकता था.
बजट ने साफ किया है कि 2019-20 में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 3.3 प्रतिशत रहेगा. इसे सरकार अपनी उपलब्धि के तौर पर पेश कर सकती है, पर इस उपलब्धि का आम आदमी से कोई सीधा लेना-देना नहीं है.
तो अधिकांश लोगों का आर्थिक जीवन 5 जुलाई, 2019 के बाद लगभग वैसा ही रहेगा, जैसा 5 जुलाई से पहले था. यूं भी तमाम वस्तुओं जैसे साबुन, शैंपू, कार, बाइक वगैरह की कीमतों को प्रभावित करने की क्षमता अब आम बजट में नहीं है, वह अब जीएसटी काउंसिल यानी वस्तु और सेवा कर काउंसिल के पास है. और वह करों में कमी और बढ़ोतरी चाहे जब कर सकती है, उसके लिए उसे बजट का इंतजार करने की जरूरत नहीं है.
बजट में यह घोषणा की गयी कि हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों का नियंत्रण अब रिजर्व बैंक आफ इंडिया द्वारा ही किया जायेगा. उम्मीद की जानी चाहिए कि तमाम तरह की परेशानियों से जूझते हाउसिंग फाइनेंस सेक्टर की दिक्कतें कम होंगी. पर इस घोषणा का बजट से कोई लेना देना नहीं है.
यह घोषणा तो कभी भी की जा सकती थी. सरकारी बैंकों को सरकार 70000 करोड़ रुपये की पूंजी मुहैया करायेगी. कई सरकारी बैंक इस तरह के गड्ढे साबित हो रहे हैं, जिनका भरना असंभव दिख रहा है. कई सरकारी बैंकों के विलय या उन्हे बंद करने के लिए आवश्यक इच्छाशक्ति इस सरकार में अगर अब नहीं दिख रही है, तो फिर आनेवाले सालों में उसके दिखने की उम्मीद नहीं है.
बजट के कुछ आंकड़े चिंता पैदा करते हैं. बजट के आंकड़ों के मुताबिक 2019-20 के दौरान 7,66,000 करोड़ रुपये कारपोरेट टैक्स से जुटाये जायेंगे. 2018-19 में कारपोरेट टैक्स से 671000 करोड़ रुपये जुटाये गये हैं. यानी 2019-20 में इस मद में करीब 14 प्रतिशत ज्यादा जुटाने की उम्मीद है. कंपनियों के आंकड़े सुस्ती दिखा रहे हैं, बल्कि आॅटो क्षेत्र की कई कंपनियों के आंकड़े तो मंदी की ही घोषणा कर रहे हैं.
14 प्रतिशत ज्यादा कर वसूली का मतलब है कि बजट यह मानकर चल रहा है कि पहले के मुकाबले कंपनियां ज्यादा कमायेंगी. उम्मीद रखने में कोई बुराई नहीं है. जैसी सूरत अभी कारोबार की दिखायी पड़ रही है, जिसमें समूची अर्थव्यवस्था के सात प्रतिशत विकास की बात 2019-20 में की जा रही है, वैसी सूरत में कारपोरेट टैक्स से 14 प्रतिशत ज्यादा की वसूली निश्चय ही उम्मीदों का अतिरेक है.
जीएसटी यानी माल और सेवा कर के आंकड़े लगातार यही संकेत दे रहे हैं कि इस कर की वसूली में बहुत मजबूती नहीं देखी जा रही है. कुल मिलाकर जीएसटी संग्रह लक्ष्य पूर्ति करने में लगातार कामयाब होगा, इसको लेकर भी आश्वस्ति नहीं है. ऐसी सूरत में बजट 2019- 20 ने जीएसटी में से केंद्र के हिस्से से 5,26,000 करोड़ रुपये की उम्मीद लगायी है. साल 2018 -19 में इस मद में वसूली 5,03,900 करोड़ रुपये की हुई है यानी पिछले साल के मुकाबले करीब चार प्रतिशत ज्यादा वसूली की उम्मीद है जीएसटी से. इसे भी उम्मीदों पर आश्रय का अतिरेक ही माना जा सकता है.
आयकर से 2018-19 में 5,18,000 करोड़ रुपये का संग्रह हुआ था, 2019-20 में 5,56,200 करोड़ के आयकर वसूली की उम्मीद लगायी गयी है. आयकर संग्रह करीब 7 प्रतिशत ज्यादा होगा, ऐसी उम्मीद बजट कर रहा है. उम्मीदों पर कोई रोक नहीं है. पर अर्थव्यवस्था में सुस्ती को देखते हुए ये आंकड़े अगर थोड़े नरम होते, तो हकीकत के ज्यादा करीब होते.