कलकल बहती नदियों की सूख गयी धार

रवींद्र कुमार सिंह... मुजफ्फरपुर जिले का बड़ा हिस्सा इस साल पेयजल संकट से जूझ रहा है. भू-जल का स्तर लगातार नीचे जा रहा है, जिससे चापाकल सूख गये हैं. कई इलाकों में सबमर्सिबल बोरिंग भी जवाब दे रहे हैं. दुखद पहलू यह है कि जिले की कई छोटी-छोटी नदियां सूख चुकी हैं और प्रमुख नदियों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 1, 2019 3:46 AM

रवींद्र कुमार सिंह

मुजफ्फरपुर जिले का बड़ा हिस्सा इस साल पेयजल संकट से जूझ रहा है. भू-जल का स्तर लगातार नीचे जा रहा है, जिससे चापाकल सूख गये हैं. कई इलाकों में सबमर्सिबल बोरिंग भी जवाब दे रहे हैं. दुखद पहलू यह है कि जिले की कई छोटी-छोटी नदियां सूख चुकी हैं और प्रमुख नदियों में पानी नाममात्र का बचा है.यह गहराते जल संकट की एक वजह भी है और परिणाम भी. नदियों में पानी रहने से आसपास के इलाकों में भू-जल का स्तर संतुलित रहता था. नदियों के पानी के सूख जाने की कुछ वजह तो प्राकृतिक है, जबकि बड़ी वजह मानजनित भी है.

मुजफ्फरपुर के सभी 16 प्रखंडों से होकर कोई न कोई नदी गुजरती है. पहले इन नदियों में पानी रहता था. जो जलस्रोत का मुख्य साधन होता था. इस साल गर्मी के मौसम में अधिकतर नदियां सूख चुकी हैं. नतीजतन पाताल का पानी भी नीचे जा रहा है. इससे किसानों की खेती प्रभावित होने के साथ ही लोगों के सामने भीषण पेयजल संकट उत्पन्न हो गया है.

जानकारों का कहना है कि वातावरण में प्रदूषण के बढ़ते प्रभाव व मौसम में लगातार हो रहे बदलाव से नदियां सूखने लगी हैं. इसके सूखने का एक बड़ा कारण नेपाल में जंगल क्षेत्रों के लगातार कम होने के साथ ही नदियों की उड़ाही नहीं होना भी बताया जा रहा है. बरसों से नदियों की उड़ाही नहीं हो रही है, जिससे जल संचय करने की क्षमता कम हो चुकी है. नदियों के सूखने से जलस्तर काफी नीचे चला गया है.
इससे कृषि पर प्रभाव पड़ने के साथ ही भीषण पेयजल संकट उत्पन्न हो गया है. जलस्तर नीचे जाने से किसानों के सामने तो और भी अधिक संकट के बादल मंडरा रहे हैं. नदियों तालाबों के सूखने व जलस्तर काफी नीचे चले जाने से फसल लगाने से पहले ही खेतों की सिंचाई करनी पड़ती है. फसल उगने के बाद भी सिंचाई की आवश्यकता अधिक होती है.
फिर भी पैदावार कम हो रही है. मुख्य नदियां में भी गरमी के समय पानी बहुत ही कम हो जा रहा है. जो बरसाती नदियां हैं वह तो अब बरसात के मौसम समाप्त होने के साथ ही सूख जा रही है. बड़ी नदियों से जो उपधारायें निकली हुई है, जिससे किसान खेतों की सिचाई करते थे, वह उप धाराएं भी सूख गयी है.
कई छोटी-छोटी नदियां तो मृतप्राय तो कई मृत भी हो चुकी है. अब वैसी कुछ मृत नदियों के बारे में तो लोग जानते भी नहीं है. जो बहुत पहले ही सूख चुकी है. पहले बरसाती नदियों के पानी से भी लोग सिंचाई करते थे. खेतों में सरकारी नलकूप लगाने के साथ ही उद्हव सिंचाई योजना के अंतर्गत 86 स्थानों पर सरकार की ओर से नदियों में पाइप लगाकर पंपसेट से पटवन का काम होता था. नदियों में पानी नहीं रहने के कारण ही उद्हव सिचाई योजना अब बंद हो गया है.
जिले से गुजरती हैं ये नदियां
बूढ़ी गंडक
यह नदी मोतीपुर से मीनापुर, कांटी, शहरी क्षेत्र, मुशहरी, बोचहां, मुरौल होते हुए समस्तीपुर चली जाती है. मुजफ्फरपुर जिले के इलाकों में इसकी लंबाई करीब 80 किलोमीटर है.
गंडक
साहेबगंज, पारु, सरैया होते हुए वैशाली के लालगंज होकर हाजीपुर गंगा नदी में मिल जाती है. मुजफ्फरपुर क्षेत्र में इसकी लंबाई करीब 44 किलोमीटर है.
बागमती
यह सीतामढ़ी के रून्नीसैदपुर से औराई के कटौझा भरथुआ, से औराई कटरा होते हुए गायघाट के बेनिबाद से आगे जाकर समस्तीपुर निकल जाती है.
लखनदेई
यह नदी रून्नीसैदपुर के मननपुर होते हुए औराई नया गांव होते कटरा के मोहनपुर में बागमती नदी में मिल जाती है.
कई नदियां हो चुकी हैं मृत
गंडक, बुढ़ी गंडक, बागमती व लखनदेई चार मुख्य नदियों के अलावे कई बरसाती नदियां भी जिले के विभिन्न प्रखंडों से हो कर गुजरती हैं. उसमें, हिमदा, झझा व सियारी नदी मृत हो चुकी है. अब इन नदियों के बारे में लोग जानते भी नहीं हैं. हालांकि जल संसाधन विभाग के नक्शे में अभी भी इन नदियों के नाम हैं. बागमती जैसी नदी की मुकसुदपुर व डुमरिया की धारा भी मृतप्राय हो चुकी है.
हिमदा नदी औराई प्रखंड के राजखंड व माधोपुर होकर गुजरती थी. जिसका अब कोई निशान तक नहीं है. इसी तरह झझा नदी सरैया, मीरपुर, बैरिया, माधोपुर, जटौलिया आदि गांवों से गुजरती थी. जो अब धरातल पर कहीं नहीं है. सियारी नदी गायघाट के महुआरा, भटगांव, भगवतपुर, पियारी, कांटा, पिरौंछा आदि गांवों होकर गुजरती थी, जो अब सिर्फ पियारी भगवतपुर तक सोती के रूप में दिखाई पड़ती है.
जिन बरसाती नदियों में बहता था पानी, उनमें अब हो रही खेती
जिले में कई बरसाती नदियां हैं, जिनमें सालोभर पानी रहने से किसानों को सिंचाई में काफी सुविधा होती थी. उन नदियों के आसपास के खेतों में सिचाई के समय किसानों को कम पानी से काम चल जाता था. अब कई बरसों से ये नदियां बरसात के कुछ ही समय के बाद सूख जाती हैं. कई जगहों पर तो इन नदियों पर लोगों ने कब्जा कर खेती भी शुरू कर दिया है. इन नदियों से मिलने वाले जलस्रोतों के बंद हो जाने से इस भीषण गर्मी में जलस्तर काफी नीचे चला जाता है.
बागमती की धारा सूखी
पहले खनुआं होकर बागमती नदी बहती थी, यही मुख्य धारा भी थी. फिर धारा बदलकर मुकसुदपुर होकर बहने लगी. यह करीब 50 साल पहले की बात है. 25 – 30 साल पहले फिर यह धारा बदलकर कटौंझा चली गयी. बागमती की धारा बदलने व पुरानी धाराओं के सूखते जाने से सैकड़ों गांवों में पानी के अभाव में खेती काफी प्रभावित हुआ है.
स्वामी सहजानंद सरस्वती किसान संगठन के औराई प्रखंड अध्यक्ष लक्ष्मण ठाकुर बताते हैं कि मुजफ्फरपुर सीतामढ़ी रेलवे लाइन बनाने के समय मिट्टी काटे जाने से धारा फिर बदल गयी. बांध बनने से भी बांध के बाहर की जमीन में पानी जाना बंद हो गया. इसका वैकल्पिक उपाय कटौंझा व बसंत बरौना के बीच सुलिस गेट बनाया जाना चाहिए. इसके अलावा भी कई जगहों पर सुलिस गेट बनाकर सिंचाई की जा सकती है. इससे वाटर लेवल भी ठीक होगा.
कदाने नदी
सरैया से मड़वन, कुढ़नी होते हुए सकरा होकर समस्तीपुर की ओर निकल जाती है. यह नदी भी कई वर्षों से फरवरी माह में ही सूख जाती है. पहले इसमें सालोभर पानी रहता था और किसान इस नदी के पानी से खेतों की सिचाई करते थे.
बाया नदी
मोतिहारी के केसरिया से साहेबगंज के हिम्मत पट्टी मुंडमाला होकर पारु के धरफरी होते हुए सरैया से लालगंज होकर 3. हाजीपुर गंगा नदी में मिल जाती है. चार साल पहले तक इस नदी में सालोभर पानी रहता था जिससे किसान सिंचाई भी करते थे. अब बरसात के कुछ ही दिनों बाद यह नदी सूख जाती है.
डंडा नदी
यह नदी मोतिहारी के मेहसी से मोतीपुर के महमदा होते हुए बरुराज के सिंगैला, कांटी, मड़वन, व सरैया होते हुए लालगंज होकर हाजीपुर गंगा नदी में मिल जाती है. इस नदी में सिर्फ बरसात के दिनों में ही पानी रहता है.
मनुषमारा नदी
सीतामढ़ी के रून्नीसैदपुर के भनसपट्टी होते हुए औराई के घनश्यामपुर, धरहरवा, राजखंड, शाही मीनापुर होते हुए सीतामढ़ी के बोखरा प्रखंड क्षेत्र की ओर चली जाती है. यह नदी भी जनवरी माह में ही सूख जाती है.
पानी की धारा बंद होने से सूखती है नदियां
बरसात के समय नदियां पहाड़ से नीचे गिरती है. जो नदियां अधिक उंचाई से नीचे गिरती है उसकी धारा अधिक तीव्र होती है. नीचे मिट्टी पर आने पर अपने साथ मिट्टी, बालू व अन्य सामान बहाकर आगे बढ़ती जाती है.
नदियों के पानी के साथ बहकर आने वाले सिल्ड कहीं न कहीं उंचा हो जाता है. इसके बाद वह नदियां फिर दूसरी रास्ता निकालती है या फिर धीरे-धीरे सूख जाती है. ऐसे नदियों से सिल्ड निकालकर उसे बचाया जा सकता है.
जिस नदी में पांच दस साल पानी नहीं आया वहां लोग घर बनाकर बस जाते हैं और वैसी नदियां की पहचान भी लगभग समाप्त हो जाती है. नदियां धाराएं बदलती रहती है. धारा बदलने के क्रम में निजी लोगों की जमीन भी उसमें आ जाती है. जब नदियां फिर धारा बदलकर दूसरी दिशा में चली जाती है तो पहले वाले जमीन मालिक फिर से उस जमीन को अपने कब्जे में ले लेते हैं, क्योंकि वह जमीन उनकी होती है. हमलोग भी नदी का सम्मान नहीं करते हैं. जितने भी गंदगी व कचरा होते है उसे नदी में डाल देते हैं. जिससे धीरे-धीरे गाद बनकर नदी भर जाती है और अंत में वह सूख जाती है.