लोकसभा चुनाव परिणाम: सामाजिक गोलबंदी का नया मुहावरा

अजय कुमार राजनीति की नयी पिच पर पुराने बॉल से काम नहीं चलने वाला. लोकसभा चुनाव के नतीजों ने पुराने राजनीतिक मुहावरों को बदल दिया. सामाजिक समीकरणों को साधने की कला में महागठबंधन की तुलना में एनडीए कहीं ज्यादा सशक्त रहा. एनडीए को मिले अपार समर्थन ने महागठबंधन के पांव उखाड़ दिये. यह ऐतिहासिक और […]

By Prabhat Khabar Print Desk | May 24, 2019 7:51 AM

अजय कुमार

राजनीति की नयी पिच पर पुराने बॉल से काम नहीं चलने वाला. लोकसभा चुनाव के नतीजों ने पुराने राजनीतिक मुहावरों को बदल दिया. सामाजिक समीकरणों को साधने की कला में महागठबंधन की तुलना में एनडीए कहीं ज्यादा सशक्त रहा. एनडीए को मिले अपार समर्थन ने महागठबंधन के पांव उखाड़ दिये.
यह ऐतिहासिक और अप्रत्याशित नतीजा है. एनडीए के नेता भले यह दावा कर रहे थे कि वे सभी 40 सीटों पर जीत रहे हैं, पर निजी बातचीत में महागठबंधन को अधिकतम एक दर्जन सीटों पर बढ़त बना लेने का संकेत भी देते थे. लेकिन राज्य के लोगों ने एनडीए पर भरोसा किया और यह विश्वास उस दावे के साथ गुथा था, जो उनकी आकांक्षाओं को सरजमीं पर उतारने की ओर जाता है.
चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का एजेंडा साफ था. वह विकास की बात करते थे. सौहार्द की बात करते थे. साथ में वह यह जोड़ना नहीं भूलते थे कि राज्य के विकास के लिए केंद्र की मोदी सरकार का साथ रहना जरूरी है. दूसरी ओर विपक्ष आरक्षण और संविधान बचाने की बात करता रहा. लेकिन उसका यह ‘नरेशन’ लोगों पर असर डालने में नाकाम रहा.
बड़ी बात यह भी रही कि एनडीए के पास नेताओं का जो चेहरा था, वह महागठबंधन के पास नहीं था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा नीतीश कुमार, सुशील मोदी, भूपेंद्र यादव के सामने विपक्षी नेता असर नहीं छोड़ पाये. इस चुनाव परिणाम की खास बात यह भी है कि एनडीए के वोट आधार में जो इजाफा हुआ है, उसे बड़े बदलाव के तौर पर देखा जाना चाहिए.
इस वोट आधार का विस्तार उस समय हुआ, जब पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का हम, उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा और मुकेश सहनी की वीआइपी महागठबंधन की हिस्सा थी. ऐसा माना जा रहा था कि हाशिये की जातियों का यह महागठबंधन व्यापक मंच बनकर उभरेगा. राजद-कांग्रेस के पास पारंपरिक आधार को देखते हुए इसे एनडीए की टक्कर लायक माना जा रहा था. एनडीए के ज्यादातर उम्मीदवार बड़ा मार्जिन हासिल करने में कामयाब रहे.
इससे पता चलता है कि लड़ाई में महागठबंधन इसलिए खड़ा नहीं हो पाया कि उसका आधार वोट दूसरी ओर शिफ्ट कर गया. मंडल राजनीति के दौर में सामाजिक रूप से जातीय गोलबंदी के पुराने मुहावरे नयी शक्ल अख्तियार कर चुके हैं. शायद इस बदलाव को महागठबंधन समझ नहीं पाया. अति पिछड़ों और पिछड़ों के महत्वपूर्ण हिस्से को एनडीए ने अपनी राजनीति से आकर्षित किया. निश्चय ही यह सपनों को पूरा करने की अपेक्षा को मिला समर्थन है.

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