महिला कार रेसरों में शुमार हैं गरिमा अवतार, हौसलों से बनाया अलग मुकाम
देश की उन गिनी-चुनी महिला कार रेसरों में शुमार गरिमा अवतार, अलग ही मिट्टी की बनी हैं. चुनौतियों से हार मानने की बजाय वे उससे लड़कर आगे बढ़ना जानती हैं. तभी तो पुरुषों के वर्चस्व वाले कार रेसिंग के क्षेत्र में उन्होंने अपनी अलग पहचान बनायी है. यही कारण है कि कंट्रीयार्ड बाय मैरियट होटल […]
देश की उन गिनी-चुनी महिला कार रेसरों में शुमार गरिमा अवतार, अलग ही मिट्टी की बनी हैं. चुनौतियों से हार मानने की बजाय वे उससे लड़कर आगे बढ़ना जानती हैं. तभी तो पुरुषों के वर्चस्व वाले कार रेसिंग के क्षेत्र में उन्होंने अपनी अलग पहचान बनायी है. यही कारण है कि कंट्रीयार्ड बाय मैरियट होटल ने अपने नये विज्ञापन अभियान में उनकी उपलब्धियों की बात की है.
खुद पर विश्वास कर शुरू किया सफर
पुरानी बातों को याद करते हुए गरिमा कहती हैं कि जब उनकी उम्र की लड़कियां गुड़ियों से खेला करती थीं, उस समय उनके कमरे छोटे-छोटे खिलौना कारों से भरे रहते थे.
यहां तक कि जब वे 15 वर्ष की थीं, तो खुद कार चलाकर अपने स्कूल चली गयी थीं ताकि अपना हुनर दोस्तों को दिखा सकें. लेकिन वे रैली कार रेसर बनेंगी ऐसा उन्होंने नहीं सोचा था. वर्ष 2011 में उन्होंने पहली बार महिला कार रेस रैली में भाग लिया. इस रेस ने उन्हें इतना उत्साहित किया कि उन्होंने इसे पेशेवर तौर पर अपनाने का निर्णय ले लिया. लेकिन यहां चुनौतियां बहुत थीं, ऐसे में गरिमा ने अपने स्वर्गीय पिता को याद किया जो उन्हें हमेशा खुद पर विश्वास करने को कहते थे. गरिमा ने कई रेस में भाग लिया व अधिकांश में जीत हासिल की.
अंतरराष्ट्रीय सर्किट में उतरने की चाहत
वर्ष 2013 गरिमा के करियर के लिए अहम साबित हुआ. महिंद्रा ने रैली सर्किट में भाग लेने के लिए उनसे संपर्क किया. रैली में उनका प्रदर्शन अच्छा रहा. वर्ष के अंत तक उन्होंने रैली सर्किट में अपनी पहचान बना ली थी. वर्ष 2016 में गरिमा मर्सडीज-बेंज लक्स ड्राइव का हिस्सा रहीं और 2017 में पोर्श टेस्ट रन के पोर्श सेंटर की प्रशिक्षक भी रहीं.
आज वे भारत की उन गिनी-चुनी महिला रैली ड्राइवर में से एक हैं, जो इंडियन नेशनल रैली चैम्पियनशिप, द रेड डे हिमालयाज, डेजर्ट स्ट्रॉर्म, द मुगल रैली, द मॉनसून चैलेंज समेत देश में होनेवाली लगभग सभी बड़ी रैली में भाग ले चुकी हैं. गरिमा की इच्छा अगले पांच वर्षों में अंतरराष्ट्रीय सर्किट में उतरने की है. गरिमा जोर देेते हुए कहती हैं कि भारतीय मोटरस्पोर्ट्स परंपरागत रूप से पुरुषों के वर्चस्ववाला खेल है, लेकिन शुरुआत से ही पुरुष खिलाड़ियों ने हमेशा उसके साथ बेहद अच्छा बर्ताव किया. उन्होंने हमेशा मेरी सहायता की और मेरा उत्साह बढ़ाया.
अासान नहीं थी राह
गरिमा ने अपनी स्कूली पढ़ाई अभी पूरी की ही थी कि महज 18 वर्ष में उनकी शादी हो गयी. लेकिन दुर्भाग्यवश उनकी शादी ज्यादा नहीं चली और तलाक हो गया. अब गरिमा के सामने खुद के अलावा अपनी बेटी को पालने की भी जिम्मेदारी थी, लेकिन उनके पास न कोई प्रोफेशनल डिग्री थी, न ही कहीं काम करने का अनुभव. ऐसे में उनके पिता ने उन्हें जीना सिखाया. उन्होंने गरिमा को अतीत से बाहर निकालने के साथ ही ड्राइविंग भी सिखायी. लेकिन उनका भी निधन हो गया. गरिमा की असली चुनौती यहीं से शुरू हुई.
दुख और भावनाओं के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करती गरिमा ने एक दिन सोशल मीडिया पर कार रेस रैली का विज्ञापन देखा. इस विज्ञापन ने जैसे उनके अरमानों को पंख दे दिया. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और विजेता बनकर उभरीं. यह पिता की ही सीख है कि एक सिंगल मदर होते हुए भी वे अपने घर और करियर के बीच बेहतर सामंजस्य कायम कर चुकी हैं. गरिमा कहती हैं, खुद को वापस पाने के लिए खो जाना आवश्यक है.
प्रस्तुित : आरती श्रीवास्तव
