डायबिटीज के मरीजों के लिए वरदान हो सकता है आर्टिफिशियल पैन्क्रियाज

द नेक्स्ट बिग थिंग... डायबिटीज के बढ़ते जोखिम को कम करने, इसे नियंत्रित करने और इसके इलाज को सुगम बनाने के लिए दुनियाभर में कई तरह के शोधकार्यों के साथ-साथ नयी तकनीकों के विकास पर भी काम चल रहा है. इसी क्रम में चिकित्सा वैज्ञानिकों ने हाल में एक ऐसे डिवाइस (यंत्र) का विकास किया […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 29, 2016 6:10 AM

द नेक्स्ट बिग थिंग

डायबिटीज के बढ़ते जोखिम को कम करने, इसे नियंत्रित करने और इसके इलाज को सुगम बनाने के लिए दुनियाभर में कई तरह के शोधकार्यों के साथ-साथ नयी तकनीकों के विकास पर भी काम चल रहा है. इसी क्रम में चिकित्सा वैज्ञानिकों ने हाल में एक ऐसे डिवाइस (यंत्र) का विकास किया है, जो डायबिटीज के मरीजों में ऑटोमेटिक तरीके से इंसुलिन नियंत्रित करेगा. इसे एक क्रांतिकारी डिवाइस मानते हुए दुनिया की कई बड़ी कंपनियां अपने-अपने तरीके से इसके निर्माण में जुट गयी हैं, जिनमें ज्यादातर के डिवाइस अभी परीक्षण के दौर में हैं. कैसा है यह डिवाइस और कैसे नियंत्रित करेगा डायबिटीज को, आदि जैसे महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में बता रहा है यह आलेख …

डायबिटीज के मरीजों के लिए वैज्ञानिकों ने एक आर्टिफिशियल पैन्क्रियाज विकसित किया है. ‘आइफोन’ के आकार का यह डिवाइस (यंत्र) मरीज के ब्लड शुगर के स्तर की निगरानी करता है और ऑटोमेटिक तरीके से शरीर में इंसुलिन का सही स्तर बनाये रखता है. इस डिवाइस को कपड़ों के भीतर पहना जा सकेगा और मरीज को इंसुलिन की जरूरत होने पर त्वचा से चिपकाये गये खास पैच के माध्यम से इसे शरीर के भीतर पहुंचाया जायेगा. चिकित्सा के क्षेत्र में इसे क्रांतिकारी उत्पाद बताया जा रहा है, जो टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ितों के लिए वरदान साबित हो सकता है. दरअसल, इस बीमारी के मरीजों में पैन्क्रियाज इंसुलिन पैदा करना बंद कर देते हैं, लिहाजा उन्हें इसका स्तर बनाये रखने और किसी गंभीर समस्या से बचे रहने के लिए रोज एक से पांच बार तक इंसुलिन लेना होता है, जो उनके खानपान और शारीरिक सक्रियता पर निर्भर करता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि यह डिवाइस टाइप 2 डायबिटीज से गंभीर रूप से पीड़ित मरीजों के लिए भी उपयोगी साबित हो सकता है.

यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज के वैज्ञानिक काफी समय से आर्टिफिशियल पैन्क्रियाज को विकसित करने के लिए नये-नये तरीके तलाश रहे हैं. दो डिवाइसेज को आपस में जोड़ते हुए उन्होंने उसमें एक पंप लगाया, जो ऑटोमेटिक तरीके से काम करनेवाला आर्टिफिशियल पैन्क्रियाज है. यह ग्लूकोज की निगरानी करता है और इंसुलिन डिलीवर करता है. इसे क्लोज्ड-लूप सिस्टम का नाम दिया गया है. अब तक के परीक्षण के दौरान इसे डायबिटीज को कंट्रोल करने में सक्षम पाया गया है.

मूल रूप से ‘डायबेटोलॉजिया’ जर्नल में छपी इससे संबंधित रिसर्च रिपोर्ट में यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज के पीडियाट्रिक्स विभाग के डॉ रोमन होवोर्का ने कहा है कि टाइप 1 डायबिटीज एक प्रकार से साइकोसोशल यानी मनोसामाजिक बोझ है और जीवन की गुणवत्ता पर इसका विपरीत असर पड़ता है.

तुलनात्मक विश्लेषण में रहा कामयाब

शोधकर्ताओं ने इसके अनेक अध्ययनों के नतीजों का तुलनात्मक विश्लेषण करते हुए यह जानने की कोशिश की है कि वयस्कों और बच्चों में यह डिवाइस कैसे काम करता है. इसके लिए खास डायबिटीज कैंप्स और घर में सामान्य रूप से रहने के दौरान, दोनों ही दशाओं में सावधानी से इसकी निगरानी की गयी. यह डिवाइस न केवल हालात को मैनेज करने में सफल रहा है, बल्कि अन्य सामान्य तरीकों के मुकाबले मरीज द्वारा कम या उच्च ब्लड शुगर लेवल के साथ बितायी जानेवाली अवधि को भी कम करने में कामयाब रहा है.

2017 में अमेरिका, 2018 में यूरोप में लॉन्च की उम्मीद

डॉक्टर होवोर्का ने उम्मीद जतायी है कि विविध नियामकों द्वारा मंजूरी हासिल होने पर अगले वर्ष इसे अमेरिका में लोगों को मुहैया कराया जा सकता है, जबकि वर्ष 2018 तक इसे यूरोपीय बाजारों में लॉन्च किया जा सकता है.

पैन्क्रियाज ट्रांसप्लांट की नहीं होगी जरूरत

डायबिटीज यूके डायरेक्टर ऑफ रिसर्च डॉ एलिजाबेथ रॉबर्टसन का कहना है कि डायबिटीज के कुछ गंभीर मरीजों को पैन्क्रियाज ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है. यह डिवाइस ऐसे लोगों के लिए बेहद उपयोगी साबित होगा और उनमें ट्रांसप्लांट की जरूरत नहीं होगी.

क्या है पैन्क्रियाज?

पैन्क्रियाज हमारे शरीर का एक भीतरी हिस्सा है, जो भोजन को पचाने में सहायक अनेक एंजाइम्स समेत इंसुलिन और ग्लूकाजोन जैसे हार्मोन का स्राव करता है. रक्त से ग्लूकोज (शुगर) हासिल करने और उसका ऊर्जा में इस्तेमाल करने के लिए इंसुलिन शरीर में कोशिकाओं की मदद करता है, जो ब्लड ग्लूकोज लेवल को नीचे बनाये रखता है. दूसरी ओर, ग्लूकाजोन लिवर में स्टोर ग्लूकोज को छोड़ता है, जो ब्लड ग्लूकोज लेवल को बढ़ाते हैं.

पैन्क्रियाज जब बहुत कम या फिर ब्लड ग्लूकोज को रेगुलेट करने लायक इंसुलिन नहीं बना पाता है, तो इससे टाइप 1 डायबिटीज होती है. और पैन्क्रियाज जब पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बना पाता है, तो इससे टाइप 2 डायबिटीज होती है. ऐसे में इन मरीजों को ब्लड ग्लूकोज को रेगुलेट करने के लिए शरीर में इंसुलिन और कई बार ग्लूकाजोन भी इंजेक्ट करना पड़ता है. इस बीमारी के गंभीर होने की दशा में आंखों की दृष्टि खोने, किडनी खराब होने और कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों का जोखिम पैदा होता है.

डायबिटीज नियंत्रण के लिए ज्यादातर मरीज ग्लूकोज मीटर के जरिये नियमित रूप से ब्लड ग्लूकोज का टेस्ट करते हैं और उसके मुताबिक इंसुलिन का डोज निर्धारित करके सुई के माध्यम से शरीर में इंसुलिन इंजेक्ट करते हैं. ब्लड ग्लूकोज का स्तर गंभीर रूप से कम होने की दशा में मरीज को ग्लूकाजोन भी इंजेक्ट करना पड़ता है.

एपीडीएस यानी आर्टिफिशियल पैन्क्रियाज डिवाइस सिस्टम के तहत मुख्य रूप से तीन अलग-अलग प्रकार के डिवाइस हैं, जिन्हें आपस में जोड़ते हुए इस मकसद से कारगर बनाया गया है. ये सभी डिवाइस इस प्रकार हैं :

1. कंटीनुअस ग्लूकोज मॉनीटर : कंटीनुअस ग्लूकोज मॉनीटर यानी सीजीएम मरीज के ब्लड ग्लूकोज लेवल से संबंधित सूचनाएं तेजी से मुहैया कराता है. मरीज के शरीर में आरोपित किये गये सेंसर से कोशिकाओं के आसपास मौजूद द्रव पदार्थों से ग्लूकोज का स्तर मापता है. इसमें एक छोटा ट्रांसमीटर लगा होता है, जो रिसीवर तक सूचना पहुंचाता है. सीजीएम नियमित रूप से ब्लड ग्लूकोज लेवल और उनके डायरेक्शन और बदलाव की दर का अनुमान लगाता है और उसे प्रदर्शित करता है.

2. कंट्रोल अलगोरिथम : कंट्रोल अलगोरिथम एक सॉफ्टवेयर है, जिसे एक्सटर्नल प्रोसेसर यानी कंट्रोलर के तौर पर इसमें शामिल किया गया है. यह सीजीएम से सूचना हासिल करता है और उसके आधार पर शृंखलाबद्ध तरीके से गणितीय गणनाओं को अंजाम देता है. इन गणनाओं के आधार पर कंट्रोलर इंसुलिन पंप को डोज मुहैया कराने का निर्देश देता है. कंट्रोल एलगोरिथम को इंसुलिन पंप, कंप्यूटर या सेलुलर फोन जैसे अनेक प्रकार के डिवाइसों के साथ संचालित किया जा सकता है.

3. इंसुलिन पंप : यह कंट्रोलर द्वारा दिये गये निर्देश के अनुसार काम करता है. संबंधित उतकों तक इंसुलिन पहुंचाने के लिए यह इंसुलिन पंप निर्देश को उसी अनुरूप समायोजित करता है.

अमेरिकी सरकार दे रही शोध को बढ़ावा

अमेरिका आर्टिफिशियल पैन्क्रियाज विकसित करने में आगे रहा है. यहां बच्चों और वयस्कों पर घरेलू माहौल में इसका परीक्षण किया गया. यहां तक कि आर्टिफिशियल पैन्क्रियाज का इस्तेमाल करनेवाली एक माता ने अपने पहले बच्चे को प्राकृतिक तरीके से जन्म दिया और उसे किसी तरह की खास समस्या का सामना नहीं करना पड़ा. कैंब्रिज यूनिवर्सिटी ने इस शोध का दायरा बढ़ाते हुए अमेरिका और यूरोप के अनेक संस्थानों से गंठजोड़ किया है, ताकि इसके परीक्षण को व्यापक किया जा सके, जिसमें एक से सात वर्ष के टाइप 1 डायबिटीज बच्चों को शामिल किया जायेगा. पायलट प्रोजेक्ट के तहत 24 बच्चों पर इसका परीक्षण किया गया था और अब 94 अन्य बच्चों को दो अलग-अलग समूहों में बांट कर इसका अध्ययन किया जायेगा. इनमें से एक समूह में आर्टिफिशियल पैन्क्रियाज के जरिये और दूसरे समूह में वहां मौजूद इंसुलिन पंप थेरेपी के जरिये इलाज किया जायेगा. बाद में शोधकर्ता इन दोंनों के नतीजों का अध्ययन करेंगे और यह पता लगायेंगे कि कौन सा तरीका ज्यादा प्रभावी और कम खर्चीला है. इस रिसर्च के कॉलेबोरेटर प्रोफेसर डेविड डेंगर का कहना है, इंसुलिन पंप थेरेपी के मुकाबले आर्टिफिशियल पैन्क्रियाज यदि ज्यादा लाभदायक पायी गयी, तो हम उम्मीद करते हैं कि यह टाइप 1 डायबिटीज को नियंत्रित करने में बड़ी भूमिका निभा सकता है और खासकर इस बीमारी से पीड़ित बच्चों के लिए यह बेहद सुविधाजनक इलाज होगा.

390 मिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है एपीडीएस का कारोबार अगले आठ साल में

आ र्टिफिशियल पैन्क्रियाज डिवाइस सिस्टम यानी एपीडीएस का वैश्विक बाजार वर्ष 2024 तक 390 मिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है. ग्रांड व्यू रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, डायबिटीज के बढ़ते जोखिम और उसके बचाव के लिए इंसुलिन के पर्याप्त स्तर को बनाये रखने में कामयाब पाये जानेवाली इस डिवाइस की मांग दुनियाभर में तेजी से बढ़ने की उम्मीद जतायी गयी है. डायबिटीज के कारण हेल्थकेयर सिस्टम पर भी इसका आर्थिक बोझ बढ़ रहा है, लिहाजा अनेक देशों की सरकारें और कंपनियां इनोवेटिव इलाज के लिए अनेक तरीके विकसित करने में जुटी हैं. इस लिहाज से एशिया पेसिफिक क्षेत्र ज्यादा संवेदनशील है, क्योंकि डायबिटीज के करीब 60 फीसदी मरीज इसी इलाके से हैं. बदलती जीवनशैली के साथ इसका जोखिम और बढ़ने की आशंका जतायी जा रही है. ऐसे में आनेवाले समय में यह तकनीक ज्यादा कारगर साबित हो सकती है.

प्रस्तुति

कन्हैया झा