मुसलमानों को वोट की मंडी नहीं, अपना समझें : पीएम मोदी

कोझिकोड : मुसलमानों तक पहुंच बनाने की पहल करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में अपनी पार्टी के नेताओं से कहा कि मुसलमान घृणा के पात्र नहीं हैं और न ही उन्हें वोट मंडी की वस्तु के तौर पर देखा जाना चाहिए, बल्कि उनके साथ अपनों जैसा व्यवहार किया […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 26, 2016 9:09 AM

कोझिकोड : मुसलमानों तक पहुंच बनाने की पहल करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में अपनी पार्टी के नेताओं से कहा कि मुसलमान घृणा के पात्र नहीं हैं और न ही उन्हें वोट मंडी की वस्तु के तौर पर देखा जाना चाहिए, बल्कि उनके साथ अपनों जैसा व्यवहार किया जाना चाहिए. मोदी ने इस संबंध में जनसंघ के विचारक दीनदयाल उपाध्याय का हवाला देते हुए कहा कि ‘उनका मानना था कि मुसलमानों को न तो पुरस्कृत करो और न ही फटकारो, बल्कि उन्हें सशक्त बनाओ.

वह न तो वोट की मंडी हैं और न ही घृणा के पात्र. उन्हें अपना समझो.’ भाजपा की राष्ट्रीय परिषद की बैठक के अंतिम दिन रविवार को मोदी ने कहा कि उनकी सरकार का मिशन ‘सबका साथ, सबका विकास’ कोई राजनीतिक नारा नहीं, बल्कि समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति का कल्याण सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता है. इन दिनों राष्ट्रवाद की परिभाषा को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है. यहां तक कि राष्ट्रवाद को भी कोसा जाता है. मोदी ने जनसंघ के दिनों के बाद से भाजपा की यात्रा को याद किया और साथ ही कहा कि हमने विचारधारा के साथ कभी समझौता नहीं किया.

‘आहुति’ नामक किताब का किया विमोचन कहा, राजनीतिक हिंसा पर हो राष्ट्रव्यापी चर्चा

केरल में भाजपा व आरएसएस कार्यकर्ताओं पर हमले की निंदा करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि उन्हें अलग विचारधारा के कारण निशाने पर लिया जा रहा है, जिसे लोकतंत्र में अनुमति नहीं दी जा सकती है. इस मुद्दे पर राष्ट्रव्यापी चर्चा की जरूरत है. हिंसा लोकतंत्र का रास्ता नहीं है. राजनीतिक हिंसा में मारे गये लोगों को श्रद्धांजलि देते हुए ‘आहुति’ नामक किताब का विमोचन किया. पुस्तक में केरल में संघ की ‘विचारधाराओं को लेकर कुर्बानी’ देनेवालों से संबंधित है. किताब का संपादन संजू सदानंदन और निरुपाका बी ने किया है.

धन बल और एक साथ चुनाव पर हो चर्चा

चुनाव सुधार पर जोर देते हुए पीएम मोदी ने कहा कि इस बाबत एक व्यापक विचार-विमर्श की जरूरत है. वक्त आ चुका है कि हम चुनावों में धनबल की भूमिका, विधानसभा और लोकसभा चुनाव साथ-साथ कैसे करवायें, इस पर चर्चा करें. चुनाव प्रणाली में क्या खामियां हैं, धन की भूमिका क्या है और सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल कैसा है, विभिन्न चुनावों के कारण देश कितने तरह के बोझ का सामना करता है, इन सब बातों पर सोचना होगा.

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