1857 के क्रांतिवीर, शहीद पांडेय गणपत राय की 205वीं जयंती
।। डॉ वंदना राय ।।... क्रांतिवीर पांडेय गणपत राय का जन्म 17 जनवरी 1809 ई को वर्तमान लोहरदगा जिले के भंडरा प्रखंड के भौरों ग्राम में हुआ था. उनके पिता राम किसुन राय और माता सुमित्रा देवी थीं. बालक गणपत राय के चाचा सदाशिव राय छोटानागपुर महाराज, पालकोट के दीवान थे. बालक गणपत राय के […]
।। डॉ वंदना राय ।।
क्रांतिवीर पांडेय गणपत राय का जन्म 17 जनवरी 1809 ई को वर्तमान लोहरदगा जिले के भंडरा प्रखंड के भौरों ग्राम में हुआ था. उनके पिता राम किसुन राय और माता सुमित्रा देवी थीं. बालक गणपत राय के चाचा सदाशिव राय छोटानागपुर महाराज, पालकोट के दीवान थे. बालक गणपत राय के मन में देशभक्ति का जज्बा बाल्यकाल से ही था. तीर, तलवार, लाठी और भाला चलाना उनका प्रिय शौक बन गया.
गणपत राय के नेतृत्व में स्वतंत्रता सेनानियों ने डोरंडा स्थित अंगरेजों के सभी मकानों को जला दिया. कचहरी जला दी गयी, ट्रेजरी खजाने लूट लिए गये. यूनियन जैक उतार फेंका गया. रांची जेल का फाटक खोलकर कैदियों को मुक्त कर दिया गया. छोटानागपुर लगभग एक महीने तक गणपत राय के कब्जे में स्वतंत्र रहा.
उनके बारे में कई किस्से प्रचलित हैं. एक बार रामगढ़ के वन्य क्षेत्र में शाम के समय गणपत राय मात्र दस क्रांतिकारियों के साथ सैकड़ों अंगरेज सैनिकों से घिर गये थे. उन्होंने अपने सहयोगियों के कान में कुछ कहा और थोड़ी ही देर में जंगल में हाथियों और बाघों की आवाजों गूंजने लगीं. अंगरेज कमांडर और फौजों ने समझा कि जंगल में हाथियों के झुंड के साथ बाघों का संघर्ष हो गया है. वे डर कर भाग खड़े हुए.
पांडेय गणपत राय को अंगरेज जिंदा या मुर्दा पकड़ना चाहते थे. अंगरेजों ने फूट डालो और शासन करो की नीति अपनायी. अंगरेजों ने कुछ जनजातीय युवकों को लेकर सेना की एक टुकड़ी बनायी ताकि क्रांतिकारी जब हमला करें तो जनजातीय युवक मारे जाये और समाज में तनाव हो. गणपत राय ने अंगरेजों की चाल को ध्वस्त कर दिया. अंगरेजी फौज में शामिल अधिकांश जनजातीय युवक गणपत राय की भावनाओं को समझते थे. उन्हें अपना भाई मानते थे. उनसे मंत्रणा कर अधिकांश जनजातीय युवकों ने हथियार सहित गणपत राय का साथ दिया.
आखिरकार अंगरेजों ने एक गद्दार जमींदार की मदद से उनको गिरफ्तार किया. 21 अप्रैल 1858 को आजादी के इस दीवाने को रांची जिला स्कूल के निकट कदम्ब के वृक्ष पर फांसी दे दी गयी थी. अंगरेजों ने राहत की सांस ली और उनके सभी 11 गांव जब्त कर लिए. लेकिन उनकी फांसी से सैकड़ों नवयुवकों के दिलों में भी शहादत का जज्बा जाग उठा और कई युवक आजादी की लड़ाई में शामिल हो गये.
(लेखिका शहीद गणपत राय की प्रपौत्री हैं)
