गिलगित बाल्टिस्तान मामले पर पाक से भारत को आपत्ति

इस्लामाबाद : पाकिस्तान अपने कब्जे वाले गिलगित, बाल्टिस्तान का संवैधानिक दर्जा बढ़ा रहा है ताकि वह इस सामरिक क्षेत्र से होकर गुजरने वाले 46 अरब डॉलर की लागत वाले आर्थिक गलियारे पर चीन की चिंताओं को दूर कर सके. लेकिन उसके इस कदम से भारत की त्योरियां चढ सकती है. उत्तरी क्षेत्र में स्थित यह […]

By Prabhat Khabar Print Desk | January 8, 2016 4:16 PM

इस्लामाबाद : पाकिस्तान अपने कब्जे वाले गिलगित, बाल्टिस्तान का संवैधानिक दर्जा बढ़ा रहा है ताकि वह इस सामरिक क्षेत्र से होकर गुजरने वाले 46 अरब डॉलर की लागत वाले आर्थिक गलियारे पर चीन की चिंताओं को दूर कर सके. लेकिन उसके इस कदम से भारत की त्योरियां चढ सकती है. उत्तरी क्षेत्र में स्थित यह क्षेत्र चीन के साथ एक मात्र अहम संपर्क मुहैया करता है. यह चीन, पाकिस्तान आर्थिक गलियारा सीपीईसी के मुख्य मार्ग पर स्थित है. यह गलियारा पश्चिमी चीन को दक्षिण पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से सडकों के नेटवर्क, राजमार्ग, रेल और निवेश स्थल के जरिए जोड़ता है

एक अधिकारी ने बताया कि निवेश पर चीनी चिंताओं को दूर करने की एक योजना पर एक समिति काम कर रही है. दरअसल, भारत ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पीओके होकर यह गलियारा बनाए जाने पर ऐतराज जताया था. उन्होंने कहा कि एक प्रस्ताव क्षेत्र का दर्जा बढ़ाने का है लेकिन यह पूर्ण प्रांत के स्तर से कुछ कम होगा. इस क्षेत्र का जिक्र संविधान में किया जायेगा और इसका संसद में प्रतिनिधित्व होगा. यदि लागू हो गया तो पर्वतीय क्षेत्र का पहली बार पाकिस्तान के संविधान में जिक्र होगा.

विशेषज्ञों के मुताबिक यह नया दर्जा है जिसका दूरगामी असर होगा. कश्मीर पर पाकिस्तान का पारंपरिक रुख में यह बदलाव है और भारत के साथ इससे तकरार के भी बढ़ने की संभावना है. आजाद कश्मीर और गिलगित बाल्टिस्तान, इन दो हिस्सों में पीओके विभाजित है. इन दोनों क्षेत्रों की अपनी विधानसभाएं हैं और तकनीकी रूप से पाकिस्तान संघ का हिस्सा नहीं हैं. पाकिस्तान कश्मीर के लिए एक विशेष मंत्री और संयुक्त परिषदों के जरिए उनका शासन करता है. अंदरुनी तौर पर दोनों क्षेत्र व्यापक रुप से स्वतंत्र हैं लेकिन विदेश मामले और रक्षा पाकिस्तान के सख्त नियंत्रण में है. पारंपरिक रुप से पाकिस्तान कहता रहा है कि कश्मीर एक विवादित क्षेत्र है और इसके दर्जे के बारे में संयुक्त राष्ट्र के 1948-49 के प्रस्ताव के तहत जनमत संग्रह से फैसला होना चाहिए.

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