पाकिस्तान ने चार अपराधियों को दी फांसी, युवक की विवादास्पद फांसी टाली

इस्लामाबाद : पाकिस्तान में हत्याओं के विभिन्न मामलों में मृत्युदंड प्राप्त चार कैदियों को आज फांसी दे दी गई जबकि उस युवक की फांसी टाल दी गई जिसके परिवार ने आरोप लगाया था कि अपराध के समय युवक 14 वर्ष का था और उसे प्रताडित कर उससे अपराध स्वीकार कराया गया था. तीन कैदियों को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 19, 2015 12:27 PM

इस्लामाबाद : पाकिस्तान में हत्याओं के विभिन्न मामलों में मृत्युदंड प्राप्त चार कैदियों को आज फांसी दे दी गई जबकि उस युवक की फांसी टाल दी गई जिसके परिवार ने आरोप लगाया था कि अपराध के समय युवक 14 वर्ष का था और उसे प्रताडित कर उससे अपराध स्वीकार कराया गया था. तीन कैदियों को रावलपिंडी की अडियाला जेल में फांसी दी गई जबकि एक अन्य को मियांवाली जेल में फांसी पर लटकाया गया.

जिन लोगों को फांसी दी गई उनमें से दो भाइयों- मोहम्मद असगर और गुलाम मोहम्मद को 1996 में अपने दो संबंधियों की हत्या करने के मामले में जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने मौत की सजा सुनायी थी. तीसरे व्यक्ति गुलिस्तान जमान को 1998 में एक व्यक्ति की हत्या के मामले में फांसी पर लटकाया गया. चौथे अपराधी अब्दुल सत्तार को 1992 में एक निजी झगडे में एक व्यक्ति की हत्या करने के अपराध में मियांवाली जेल में फांसी दी गई.

सेना के एक स्कूल में 16 दिसंबर 2014 को हुए भीषण तालिबानी हमले के बाद देशभर में फांसी पर लटकाए गए कैदियों की संख्या अब 54 हो गई है. शफकत हुसैन को भी आज सुबह फांसी पर लटकाया जाना था लेकिन उससे कुछ ही घंटों पहले उसकी फांसी को 72 घंटे के लिए टाल दिया गया. आतंकवाद निरोधी अदालत ने हुसैन को सात वर्षीय एक बालक का अपहरण करने और उसकी हत्या करने के मामले में दोषी ठहराया था.

मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि 2004 में जब यह अपराध हुआ था, उस समय हुसैन की आयु मात्र 14 वर्ष थी जबकि जेल रिकॉर्ड में उसकी आयु 23 वर्ष दिखायी गयी है. उनका आरोप है कि उसे प्रताडित किया गया ताकि वह हत्या करने की बात कबूल कर ले. गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि हुसैन के परिवार ने राष्ट्रपति से फांसी टालने की अपील की थी. राष्ट्रपति ने रात में निर्णय लिया कि फांसी को 72 घंटे के लिए स्थगित किया जाए ताकि इन आरोपों के संबंध में जांच की जा सके.

गृह मंत्री निसार अली खान ने मंगलवार को कहा था कि यदि इस बात को साबित करने के लिए कोई विश्वसनीय सबूत दिया जाता है कि दोषसिद्धि के समय हुसैन नाबालिग था तो वह सरकार से उसकी फांसी टालने के संबंध में बात करेंगे. पाकिस्तान के कानून के अनुसार 18 वर्ष से कम आयु के अपराधी को अधिकतम आजीवन कारावास की सजा दी जा सकती है. देश में 8,000 से ज्यादा ऐसे कैदी हैं जिन्हें मौत की सजा सुनायी गयी है.