दल-बदल ने झाविमो को हिलाया

आनंद मोहन रांची : विधानसभा चुनाव से पहले ही झारखंड में दल-बदल की ऐसी आंधी चली, कि झाविमो को भारी नुकसान उठाना पड़ा. 11 विधायकों वाली पार्टी विधानसभा चुनाव आते-आते घट कर तीन विधायकों वाली पार्टी बन कर रह गयी. भाजपा ने झाविमो के आधे से अधिक छह विधायकोको झटक लिया. लोकसभा चुनाव में मोदी […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 21, 2014 7:01 AM
आनंद मोहन
रांची : विधानसभा चुनाव से पहले ही झारखंड में दल-बदल की ऐसी आंधी चली, कि झाविमो को भारी नुकसान उठाना पड़ा. 11 विधायकों वाली पार्टी विधानसभा चुनाव आते-आते घट कर तीन विधायकों वाली पार्टी बन कर रह गयी. भाजपा ने झाविमो के आधे से अधिक छह विधायकोको झटक लिया. लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में पस्त हुई पार्टी के लिए यह बड़ा झटका था.
पाला बदल कर विधायकों ने पिछले पांच-छह वर्षो में बाबूलाल मरांडी के सहारे पार्टी की जो छंटा बनायी थी, वह धूमिल हो गयी. इधर दल-बदल की आंधी चल रही थी, उधर झाविमो में एनडीए-यूपीए गंठबंधन को लेकर असमंजस था.
भाजपा के साथ चुनाव में कूदने की चर्चा कभी राजनीतिक गलियारे में रही, तो कभी कांग्रेस के साथ गंठबंधन को लेकर चर्चा रही. हालांकि बाबूलाल मरांडी शुरू से ही अकेले चुनाव लड़ने की बात कहते रहे. झाविमो ने चुनाव से पूर्व हिचकोले खाये, अब पार्टी को संभालना बाबूलाल की चुनौती है. झाविमो अपने दम पर चुनावी मैदान में ताल ठोक रहा है. पिछले वर्षो में झाविमो ने राज्य भर में संगठन खड़ा किया है. बतौर क्षेत्रीय पार्टी अपनी पहचान बनायी है. पार्टी में अच्छे खासे कैडर हैं. आज इलाके में पार्टी की पकड़ है.
संताल परगना में झामुमो को चुनौती दे रही है, तो उत्तरी छोटानागपुर में भाजपा के साथ टकरा रही है. चुनावी समीकरण को बनाने के लिए पार्टी ने कई सीटों पर नाप-तौल कर प्रत्याशी भी खड़े किये हैं. पुराने खिलाड़ी तो पाला बदल लिये, लेकिन पार्टी में कुछ नये सुरमा भी आये हैं. आजसू के नवीन जायसवाल अब झाविमो के साथ हैं. हटिया में पार्टी को मजबूत दावेदार मिल गया. टिकट बंटवारे के बाद भाजपा के अंदर खलबली मची, तो उसका लाभ भी बाबूलाल को मिला. सत्यानंद भोक्ता भाजपा छोड़ कर चतरा से प्रत्याशी बने हैं.
पार्टी यहां भी चुनावी गणित उलट-फेर करने में जुटी है. प्रकाश राम, डॉ सबा अहमद, परितोष सोरेन, प्रभात भुइयां, रामचंद्र केशरी, गणोश गंझू, अमर वाउरी जैसे मजबूत दावेदार के सहारे झाविमो पुरानी साख लौटाने में जुटी है. वहीं संताल परगना में बाबूलाल को प्रदीप यादव जैसे नेता से ताकत मिल रही है. बाबूलाल मरांडी खुद दो सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं.
बाबूलाल की वजह से राज धनवार और गिरिडीह सीट में चुनावी तपिश बढ़ गयी है. झाविमो की रणनीति है कि भाजपा के वोट बैंक में सेंधमारी के साथ-साथ विरोधी वोट को समेट लें. जमीन पर यूपीए गंठबंधन के विकल्प के बतौर झाविमो को खड़ा करने की चुनौती होगी. झाविमो का चुनावी गणित सटीक बैठा, तो राज्य की राजनीति में पार्टी एक कोण होगी.

Next Article

Exit mobile version