अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस: अब सिर्फ लिटरेसी नहीं टेक- लिटरेसी है जरूरी

।। प्रमोद जोशी ।।... (वरिष्ठ पत्रकार) साक्षरता की अवधारणा ने तभी जन्म लिया जब अक्षर का आविष्कार हुआ. अक्षर के पहले भाषा, बोली और नजर आनेवाले चिह्नों का आविष्कार हुआ था. जो लोग उस नये ज्ञान से लैस नहीं थे, वे निरक्षर थे. यह बात ईसा के आठ से दस हजार साल पहले की है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 8, 2014 8:51 AM

।। प्रमोद जोशी ।।

(वरिष्ठ पत्रकार)

साक्षरता की अवधारणा ने तभी जन्म लिया जब अक्षर का आविष्कार हुआ. अक्षर के पहले भाषा, बोली और नजर आनेवाले चिह्नों का आविष्कार हुआ था. जो लोग उस नये ज्ञान से लैस नहीं थे, वे निरक्षर थे. यह बात ईसा के आठ से दस हजार साल पहले की है. लेकिन, दुर्भाग्य है कि निरक्षरता आज भी कायम है. खासतौर से हमारे जैसे देश-समाज में.

* साक्षरता का मतलब

यूनेस्को के अनुसार, साक्षरता का मतलब है विभिन्न संदर्भों में मुद्रित और लिखित सामग्री को पहचान पाना, समझ पाना, गिन पाना और दूसरों को बता पाना. यानी यह केवल अक्षर ज्ञान नहीं है. इसका अर्थ निरंतर बदल रहा है. अपने समुदाय से लेकर वैश्विक गतिविधियों तक को समझना और अपनी भागीदारी को सुनिश्चित करना अब इसमें शामिल है. यह टेक्नोट्रॉनिक लिटरेसी और डिजिटल डिवाइड का जमाना है. बेशक हम अभी अक्षर ज्ञान के दौर में हैं, पर हमें साक्षरता के नये इलाकों की सैर भी करनी होगी.

अनपढ़ या निरक्षर होना सामाजिक-आर्थिक विषमता का पहला प्रतीक है. इसका मतलब यह भी है कि व्यक्ति दुनिया के तौर-तरीकों से वाकिफ नहीं है. विजुअल लिटरेसी का मतलब है फोटो, नक्शे, वीडियो और बॉडी लैंग्वेज का मतलब समझ पाना.

आप कल्पना करें 200 साल पहले दुनिया से गया कोई व्यक्ति आज वापस आये और उसे सिनेमा दिखाया जाये तो वह क्या समझ पायेगा. एक फ्रेम के लॉन्ग शॉट में हाथी और क्लोजअप में मक्खी को देखने-समझने में हमें जितनी आसानी है, वह 200 साल पुराने व्यक्ति के लिए उतनी ही मुश्किल भरी होगी. उसे सिनेमा की भाषा समझ में नहीं आयेगी. साउंड ट्रैक का इस्तेमाल उसकी कल्पना के परे होगा.

* शहरी और ग्रामीण जीवन का बढ़ रहा है फासला

वैश्विक प्रतीक तेजी से बदल रहे हैं. शहरी जीवन से अपरिचित व्यक्ति के लिए कार के हॉर्न की आवाज का कोई मतलब नहीं. एंबुलेंस के सायरन का मतलब भी वह नहीं समझता, ट्रैफिक कांस्टेबल के संकेतों का उसके लिए कोई अर्थ नहीं. मेट्रो का दरवाजा खुलने और बंद होने की सूचना देने वाली आवाजें उसके लिए कोई माने नहीं रखतीं. दूर से आती रेलगाड़ी के वेग का उसे अनुमान नहीं होता. शहरी जीवन ने समय के साथ जो बॉडी लैंग्वेज तैयार की है, उससे उसका परिचय नहीं है. वह पढ़ना जानता भी हो तो शायद इलेक्ट्रॉनिक टेक्स्ट पढ़ना नहीं जानता.

हमारी लिपियों में हाल में स्माइली भी शामिल हो गयी और हमें पता नहीं चला. तमाम लोग आज भी उनसे अपरिचित हैं. वे साक्षर हैं, पर मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक टेक्स्ट के बदलावों से परिचित नहीं हैं. यानी साक्षरता अब सिर्फ संख्याओं और अक्षरों के ज्ञान तक सीमित नहीं है. अब केवल लिखने या पढ़ने से काम नहीं होता. आपको सुविधाएं चाहिए तो किसी न किसी तकनीक की मदद लेनी होगी.

* सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए तकनीकी ज्ञान जरूरी

कंप्यूटर और मोबाइल ने आपको सारी दुनिया से जोड़ दिया है. रेलवे रिजर्वेशन, सिनेमा का टिकट, इनकम टैक्स, संपत्ति का रजिस्ट्रेशन, नेटबैंकिंग हर चीज अब आपके करीब आ रही है.

देश के किसी भी इलाके में चले जाइये, गांव हो या शहर. गली, नुक्कड़ या चौराहे पर आपको मोबाइल फोन और रिचार्ज की दुकान जरूर मिलेगी. पान मसाला की तरह मोबाइल सिम कार्ड बिकता है. फोन करना, रिसीव करना, टैक्स्ट मैसेज भेजना अब आम है. यह पिछले 10 साल से भी कम की उपलब्धि है. और अब तो स्मार्ट फोन का जमाना है. इमेल हर फोन में है. ह्वाट्सएप आम है, तमाम तरह के एप्स आपके फोन में हैं. खाली समय में गेम्स, वीडियो शेयर, अपने शहर की खबरें और घूस मांगने वाले दारोगा जी का स्टिंग, सब कुछ मोबाइल फोन से संभव है, लेकिन इसके लिए खासकर वयस्कों में नये किस्म की साक्षरता की जरूरत है. हकीकत यह है कि आज छह साल का बच्चा अपने पिताजी के मुकाबले ज्यादा तेजी के साथ खट-खट करके फोन लगा लेता है.

* डिजिटल इंडिया का लाभ

इस साल लाल किले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिजिटल इंडिया की बात की थी. मोदी के डिजिटल इंडिया में हर गांव ब्रॉडबैंड से जोड़ा जायेगा. ब्रॉडबैंड यानी तेज गति का इंटरनेट कनेक्शन. इस तेज इंटरनेट से स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाई, टेलीमेडिसिन यानी डॉक्टरी मदद, खबरें, बैंक खाते, सरकारी सेवाएं वगैरह सब जुड़ेंगी. तमाम तरह के फॉर्म भरना और सरकारी काम इंटरनेट के जरिये करना भी इसमें शामिल है. यह डिजिटल इंडिया आपके मोबाइल फोन में होगा. और आपकी भाषा में होगा. लेकिन इसका फायदा उठाने के लिए आपको टेक्नोलॉजी लिटरेट होना होगा. आपकी एमए की डिग्री इसकी गारंटी नहीं देती.

बस का टिकट अब हैंड हैल्ड उपकरण काटता है, मेट्रो से चलना है तो उसके कार्ड का इस्तेमाल समझना होगा, एस्केलेटर पर कदम रखना सीख लीजिए अन्यथा बीसियों सीढि़यां चढ़नी होंगी. संपत्ति कर जमा करने की लाइन में लगने के बजाय ऑनलाइन जमा कर दीजिए. परचून की दुकान को ऑनलाइन आदेश दीजिए, सामान घर पहंुच जायेगा. रहते हैं रांची में और खाना चाहते हैं बंगाली रसगुल्ला तो कोई दिक्कत नहीं, ऑनलाइन ऑर्डर करें घर पहुंचा दिया जायेगा. पसंदीदा टीवी कार्यक्रम आने वाला है, पर उस वक्त आपको घर से बाहर रहना है. कोई बात नहीं. अब आपके मोबाइल पर डीटीएच है, रिकार्ड कर लेगा. लेकिन इन सुविधाओं को ऑपरेट करना तो आपको ही सीखना होगा.

* मोबाइल फोन से क्रांति

विश्व बैंक ने मोबाइल फोन को इतिहास की सबसे बड़ी मशीन बताया है. सबसे बड़ी आकार में नहीं, बल्कि गुण में. विकसित देशों में मोबाइल फोन शत-प्रतिशत नागरिकों के पास है, अब भारत में भी इसका जिस तेजी से इसका विस्तार हो रहा है वह असाधारण है.

मोबाइल ने हमारे भीतर जबरदस्त सामाजिक परिवर्तन किया है. खासतौर से कमजोर वर्गों को ताकतवर बनाने में मोबाइल फोन की बड़ी भूमिका है. टेलीफोन रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया के अनुसार, इस साल मई में भारत में मोबाइल कनेक्शनों की संख्या 93 करोड़, 30 लाख के ऊपर थी. इनमें से 30 फीसदी कनेक्शनों को निष्क्रिय या डुप्लीकेट मान लें, तब भी 60 करोड़ से ज्यादा कनेक्शन हैं यानी कि हर दूसरे भारतीय के पास फोन है.

* डिजिटल अपॉर्च्युनिटी इंडेक्स

ज्ञानी व्यक्ति का एक नया पर्यायवाची शब्द है कनेक्टेड. जो दुनिया के संपर्क में है वह ज्ञानी है और समृद्ध भी. विकसित और विकासशील के भेद को बतानेवाला नया शब्द है डिजिटल डिवाइड. यह भेद एक ही देश के भीतर भी है. जो इलाके कनेक्टेड नहीं हैं, वे पिछड़े हैं. किसी भी देश की प्रगति का परिचायक है उसकी ब्रॉडबैंड क्षमता. एक नया सूचकांक सामने आया है डिजिटल अपॉर्च्युनिटी इंडेक्स. इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन ने यह सूचकांक तैयार किया है जो सूचना तकनीक से जुड़े तमाम आंकड़ों के आधार पर बताता है कि फलां देश में ब्रॉडबैंड की स्थिति क्या है, लोगों के पास कंप्यूटरों की उपलब्धि कैसी है, फोन लाइनें कैसी हैं वगैरह. इस सूचकांक के आधार पर दक्षिण कोरिया नंबर एक देश है, स्वीडन नंबर दो और डेनमार्क नंबर तीन. इसमें अमेरिका 15वें और भारत 69वें नंबर पर था.

* देशी भाषाओं में नेट सर्फिंग

गूगल के कार्यकारी अध्यक्ष एरिक श्मिट पिछले साल मार्च में भारत आये थे. उनका कहना था कि 2020 तक भारत में इंटरनेट इस्तेमाल करनेवालों की संख्या 60 करोड़ से ऊपर होगी. इनमें से 30 करोड़ लोग हिंदी तथा दूसरी भाषाओं में नेट सर्फ करेंगे. भारतीय भाषाओं के लिए गूगल खासतौर से अनुसंधान कर रहा है. गूगल ट्रांस्क्रप्शिन, ट्रांसलेशन तथा इसी प्रकार के काम. इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आइएएमआइ) तथा मार्केटिंग रिसर्च से जुड़ी संस्था आइएमआरबी ने पिछले कुछ सालों से भारतीय भाषाओं में नेट सर्फिंग की स्थिति पर डेटा बनाना शुरू किया है. इस साल जनवरी में जारी इनकी रपट के अनुसार भारत में तकरीबन साढ़े चार करोड़ लोग भारतीय भाषाओं में नेट की सैर करते हैं. शहरों में तकरीबन 25 फीसदी और गांवों में लगभग 64 फीसदी लोग भारतीय भाषाओं में नेट पर जाते हैं.

* इन्फॉरमेशन सोसाइटी

सामाजिक परिभाषाएं बदल रहीं हैं. सजग और सफल समाज का नया नाम है सूचना समाज या इन्फॉरमेशन सोसाइटी. यानी वह समाज, जिसकी तकनीक तक पहुंच है. जिसके पास तकनीक है वह अपनी सुविधाएं बढ़ा सकता है. असमानता का नया नाम है डिजिटल डिवाइड. व्यक्तियों और समुदायों के इस भेद को अब नये किस्म की साक्षरता के सहारे लड़ा जा सकता है. यह साक्षरता डिजिटल है. ऑप्टिकल फाइबर और इन्फॉरमेशन हाइवे इसके राजमार्ग हैं और जागरूक नागरिक इसके पहरेदार. लेकिन हमारी कहानी बुनियाद से शुरू होती है. जो लोग इस लेख को पढ़ सकते हैं वे ही अपनी स्थिति को बदलने के बारे में सोचेंगे. इसलिए हमें पहले अपने साक्षरता अभियान को सफल बनाना होगा.

हमें याद रखना होगा कि जापान ने 19वीं सदी के मध्य में शत-प्रतिशत साक्षरता की दर हासिल कर ली थी. बहरहाल, इस महीने के अंतिम सप्ताह में हमारा मंगलयान अपनी यात्रा के अंतिम पड़ाव में पहुंचने वाला है. उसकी सफलता हमारी तकनीक के लिए नया संदेश लेकर आयेगी. नयी तकनीक हमारे लिए सुख और समृद्धि के संदेश लेकर आ रही है. उसका स्वागत करें.