#LoksabhaElection: इस बार के चुनाव में गुजराती अस्मिता व राष्ट्रवाद बड़ा मुद्दा

अंजनी कुमार सिंहअहमदाबाद : अहमदाबाद से लगभग 40 किलाेमीटर दूर देहगाम ताल्लुका में लगभग सौ गांव हैं, जिसमें खेतिहर और दलित परिवार की संख्या ज्यादा है. इनकी अपनी समस्याएं हैं. कुछ किसान सरकार से नाराज भी हैं. गोपालकों की भी अपनी मांगे हैं, लेकिन सरकार के प्रति नाराजगी और शिकायतें से ज्यादा उनके लिए गुजराती […]

By Prabhat Khabar Print Desk | April 20, 2019 3:16 AM

अंजनी कुमार सिंह
अहमदाबाद :
अहमदाबाद से लगभग 40 किलाेमीटर दूर देहगाम ताल्लुका में लगभग सौ गांव हैं, जिसमें खेतिहर और दलित परिवार की संख्या ज्यादा है. इनकी अपनी समस्याएं हैं. कुछ किसान सरकार से नाराज भी हैं. गोपालकों की भी अपनी मांगे हैं, लेकिन सरकार के प्रति नाराजगी और शिकायतें से ज्यादा उनके लिए गुजराती अस्मिता और राष्ट्रवाद महत्वपूर्ण है. चाय दुकान पर बैठे 80 वर्षीय गोविंद गिरी कैलाश गिरी गोस्वामी गुजराती ‘वडा प्रधान’ (प्रधानमंत्री) के लिए एक बार फिर से भाजपा को वोट देने की बात कहते हैं. बताते हैं, यह गुजरात के लिए गर्व की बात है कि मोदी एक बार फिर से ‘वडा प्रधान’ बनें.

नरेंद्र भाई कहते हैं, यह गुजरात की अस्मिता का सवाल है. आज जैसे ही ‘वडा प्रधान’ का नाम आता है, तो गुजरात का नाम भी आता है. यही विचार हरेश भाई , लाल शाह भी जाहिर करते हैं. हालांकि, कुछ लोग इसे वोट बैंक पॉलिटिक्स बता रहे हैं. भाई रशिद कहते हैं, बेरोजगारी चरम पर है. जीएसटी, नोटबंदी ने कमर तोड़ दी है. अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग मुद्दे हैं, लेकिन गुजराती अस्मिता और आतंकवाद की चर्चा शहरी मध्य वर्ग के बीच ज्यादा है.

अहमदाबाद के बेजलपुर इलाके के दो समुदाय गुजराती इस मुद्दे पर बंटे दिखते हैं. एकता मैदान से सटे बैजलपुर और जुहापुरा को एक रोड बांटती है. जुहापुरा के ज्यादातर लोग इस मुद्दे को बेमानी बताते हैं. हबीब भाई अजमेरी, इमरान भाई पेंटर, निसार भाई बापू कहते हैं, यह सिर्फ वोट लेने और असली मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए है. वहीं सड़क के दूसरी ओर संजय भाई, हरीश भाई दरवार कहते हैं, गुजराती अस्मिता का सवाल गुजरात के लिए सर्वोपरि है, जिन्हें अपनी अस्मिता और राष्ट्रीयता से प्यार नहीं हैं, उनके विषय में आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि वह किस से प्यार करते हैं.

शहरी मध्य वर्ग का आकर्षण, पर अंडरकरेंट भी है

गुजराती अस्मिता और आतंकवाद बनाम राष्ट्रवाद के मुद्दे पर यहां के बुद्धिजीवी भी स्वीकार करते हैं कि यह बात खासकर शहरी मध्य वर्ग को अपनी ओर आकर्षित करता है, लेकिन ऐसे मुद्दे के खिलाफ एक अंडरकरेंट भी चल रहा है, जो अभी दिख नहीं रहा, लेकिन चुनाव परिणाम में दिखे. गुजरात यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर किरण देसाई कहते हैं, ये मुद्दा वोकल मध्यवर्ग को प्रभावित करता है. ऐसे मुद्दे के कारण मुख्य मुद्दे गौण हो गये हैं. गुजराती अस्मिता, आतंकवाद, राष्ट्रवाद को हम किस रूप में परिभाषित करते हैं, यह भी महत्वपूर्ण है. चुनाव के समय ऐसे मुद्दों पर फोकस कर जनता वोट करती है, तो निश्चित रूप से इसका फायदा भाजपा को मिलेगा.

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