विश्व पटल पर मजबूत गणतंत्र बन कर उभरे हम

भास्कर, स्वतंत्र पत्रकार व उच्च शिक्षण हेतु शोधरत... हमारी आजादी के असंख्य ज्ञात व अज्ञात मतवालों के नि:स्वार्थ त्याग, समर्पण और आत्म बलिदान के बाद 26 जनवरी, 1950 से हमने नियति के साथ करार को आखिरकार अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित किया. आज हमारा युवा गणतंत्र 69वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है. गणतंत्र का अर्थ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 26, 2018 11:47 AM

भास्कर, स्वतंत्र पत्रकार व उच्च शिक्षण हेतु शोधरत

हमारी आजादी के असंख्य ज्ञात व अज्ञात मतवालों के नि:स्वार्थ त्याग, समर्पण और आत्म बलिदान के बाद 26 जनवरी, 1950 से हमने नियति के साथ करार को आखिरकार अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित किया. आज हमारा युवा गणतंत्र 69वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है. गणतंत्र का अर्थ वह शासन व्यवस्था है, जहां ‘राष्ट्र प्रमुख’ का निर्वाचन सीधे जनता करे या जनता के प्रतिनिधि करें. दूसरे शब्दों में कहें तो राष्ट्र प्रमुख वंशानुगत, शाही अथवा तानाशाही तरीके से सत्ता पर कब्जा करके न आया हो.

भारत में लोकतांत्रिक सरकार है और यहां राष्ट्रपति का चुनाव होता है, इसलिए यह गणतंत्रात्मक व्यवस्था है. भारत हिंसात्मक विभाजन, फिर आजादी और अंततः गणतंत्र के रूप में वैश्विक पटल पर अपने सातवें दशक (वर्ष 2019) में प्रवेश करने की ओर अग्रसर है. निश्चित रूप से यह संविधान की प्रस्तावना में वर्णित प्रथम शब्द ‘वी द पीपुल’ (हम भारत के लोग) की शक्ति को मजबूती से दरसाता है, क्योंकि इस गणतंत्र को सही मायने में शक्ति भारत के आम लोगों से ही मिलती है.

इन सात दशकों में भारत ने जहां आंतरिक एवं वैश्विक राजनीति, कूटनीति, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक, सामरिक और रणनीतिक मोर्चों पर अनेकों उतार-चढ़ाव का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सामना किया, इसके बावजूद आज भारत अपने लोकतांत्रिक मूल्यों को अक्षुण्ण रखते हुए बदलती भू-सामरिक आर्थिकी और ऊर्जा सुरक्षा के त्रिकोण के साथ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, क्रिटिकल इंफ्रास्ट्रक्चर, क्वांटम कंप्यूटर जैसे तमाम क्षेत्रों में वैश्विक पटल पर मजबूती से स्थापित हो रहा है. अब यह किसी की स्वीकार्यता का मोहताज नहीं रहा है. चंद्रमा से मंगल तक सफलतम यात्रा के साथ-साथ अंतरिक्ष में पीएसएलवी की सफलतम शतकीय भागीदारी हमें उच्चतर प्रतिमान पर स्थापित करती है.

आज भारत की सामरिक और रणनीतिक महत्ता स्वीकार करना अन्य देशों के लिए मजबूरी नहीं, बल्कि उनकी आवश्यकता है. इसे हम भारतीयों ने अपने बल-बूते पर अर्जित किया है. आज हमारा देश विफल, कमजोर एवं नवजात लोकतांत्रिक पड़ोसियों के साथ घिरा है. उत्तरी, पूर्वी और पश्चिमी सीमा के साथ-साथ भारत को बंगाल की खाड़ी, हिंद महासागर और अरब सागर में चीनी-पाकिस्तानी गठजोड़ का सामना करना पड़ रहा है. अभी गत वर्ष जून में भूटान के चुंबी घाटी और डोकलाम में 73 दिन चले भारतीय और चीनी फौजों की तनातनी और हालिया अरुणाचल प्रदेश के ट्यूटिंग में चीनी सेना के सीमा अतिक्रमण इसी कड़ी का हिस्सा है. पाकिस्तान के अतिरिक्त नेपाल, मालदीव, श्रीलंका और बांग्लादेश में बढ़ती चीनी सैन्य-नागरिक पूंजी निवेश भी आगामी वर्षों में भारत के लिए बड़ी चुनौती पेश करेगा. ये खतरे हमारी किसी संभावित आसन्न खतरे का संकेत स्वरूप हैं. भारत समुद्री और स्थलीय चुनौती से निबटने के लिए प्रभावी कदम उठा रहा है. इसी क्रम में भारत चाबाहार बंदरगाह निर्माण में ईरान और अफगानिस्तान के साथ सहयोग कर रहा है. आसियान के 10 देशों के राष्ट्र/राज्य प्रमुखों को इस वर्ष के गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि के रूप में राजपथ पर सलामी लेंगे. दरअसल, हमारा देश ‘अपने पड़ोसी राष्ट्र प्रथम’ की अपनी नीति के तहत संपर्कता, निकटता और सहयोग बढ़ाने में अधिक संसाधन और ऊर्जा लगा रहा है.

खास बात है कि आज विश्व के तमाम मंचों पर भारत की खोज निश्चित रूप से होती है. चाहे वह अफगानिस्तान से संबंधित रणनीतिक मसला हो या आर्कटिक परिषद की सामरिक बैठक, दक्षिणी और पूर्वी चीन सागर में मुक्त एवं निर्बाध नौवहन हो या पूरे हिंद महासागर को शांति क्षेत्र (जोन ऑफ पीस) स्थापित करने की पहल. यह भारतीय सहयोग ‘कोई बंधन संलग्न नहीं’ जैसे अनूठे मॉडल के जरिये हमारे भागीदार देशों की आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं के आधार पर काम कर रहा है. इनके अलावा संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद में सुधारों की आवश्यकता हो या विश्व व्यापार संगठन के व्यापार बैठकों में कृषि और बौद्धिक संपदा से जुड़े मसलों पर विकसित देशों की मनमानी और उनके कुत्सित मंसूबों पर पानी फेरना. कृषि सब्सिडी, खाद्य सामग्री की स्टॉक होल्डिंग और पीस क्लाउज जैसे मुद्दों पर विकासशील और अल्प विकसित देशों के व्यापार और वणिज्य से संबंधित मसलों और स्वयं सिद्ध हितों पर मुखर रूप से पक्ष रखने में भारत की भूमिका अहम रही है.

चुनौतियों की बात करें, तो गणतंत्र के सातवें दशक के मुहाने पर पहुंच कर भी हम मूलभूत समस्याओं से लगातार दो-चार हो रहे हैं, जिसे किसी भी रूप में सही नहीं ठहराया जा सकता. भारत की मेरुदंड मानी जानेवाली कृषि की स्थिति बेहतर नहीं है. पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च (पीआरएस) के मार्च आंकड़ों के अनुसार, कृषि क्षेत्र में देश की लगभग आधी श्रमशक्ति कार्यरत है. वर्ष 2015-16 के मौजूदा मूल्य पर हमारे सकल घरेलू उत्पाद में कृषिगत हिस्सेदारी सिर्फ 17.5 फीसदी है, जो वर्ष 1950 में 50 प्रतिशत था. हमारे 86 फीसदी किसानों के पास दो हेक्टेयर से भी कम आकार वाली भूमि है. वहीं 40 फीसदी कृषि ऋण अनौपचारिक स्रोतों से प्राप्त होता है. प्रति हेक्टेयर जमीन में उत्पादित होनेवाली फसल की मात्रा में भी कमी है.

हालांकि, हमने खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता तो प्राप्त कर ली है, लेकिन इसके अनेक क्षेत्रकों में काफी कुछ किया जाना शेष है. विश्व आर्थिक फोरम (डब्लूइएफ) की भारत पर नवंबर, 2014 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत मूलतः शिक्षा व क्षमता निर्माण, शहरीकरण, स्वास्थ्य, स्वच्छता, लैंगिक समस्या, जल की किल्लत और पारदर्शिता के अभाव जैसी समस्याओं से जूझ रहा है, जो रिपोर्ट प्रकाशन के चार वर्ष बाद आज भी प्रासंगिक और चुनौतीपूर्ण बने हुए हैं. सबसे अधिक चिंता स्वास्थ्य को लेकर है, इस क्षेत्र में हम अत्यधिक पिछड़े हैं.

इसकी बानगी विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी हालिया वैश्विक तपेदिक/यक्ष्मा रिपोर्ट 2017 से प्राप्त आंकड़ों से होती है, जिसमें भारत की स्थिति अत्यधिक चिंताजनक अवस्था में है. निस्संदेह भारतीय नीति निर्माताओं ने तमाम चुनौतियों के मद्देनजर विभिन्न क्षेत्रकों में बेहतर कार्य किया है और कर रहे हैं, हालांकि, इतने प्रयास काफी नहीं हैं. हम आंतरिक मोर्चे पर जहां नक्सलवाद, अलगाववाद और आतंकवाद के त्रिकोणात्मक षडयंत्र से जूझ रहे हैं, वहीं सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य, महिला सुरक्षा, दलित एवं वंचित वर्गों के उत्थान कार्यक्रम को और तीव्र करने की आवश्यकता है. इन सबके साथ हमारे मन में हमेशा यह सवाल कौंधते रहना चाहिए कि इतने वर्ष बाद भी हमारी कौन-सी आकांक्षाएं अधूरी रह गयीं, जिन्हें हमें पूरा करना है. सिर्फ सरकार या व्यवस्था पर दोषारोपण करने से अपने गणतंत्रात्मक लक्ष्यों को हासिल नहीं किया जा सकता है.

अगर सही मायने में हमें अपने लक्ष्यों को पाना है, तो अपने तमाम अधिकारों की रक्षा के साथ दायित्वों का भी पालन करना होगा. इसके साथ आनेवाली पीढ़ी को हर क्षेत्र में जागरूक बनना होगा. चूंकि, इस देश में कानून का शासन है, इसलिए किसी को भी भयाक्रांत होने की जरूरत नहीं है. जब सही मायने में ऐसा हो पायेगा तभी हमें गणतंत्र का बोध हो सकेगा.