मुसलमान ईद से पहले गरीबों का रखें ख्याल, समय से दें जकात, और सदक़ा-ए-फित्र, जानें उलमा का पैगाम

रमजान का मुकद्दस महीना चल रहा है. इस महीने में मुसलमान रोजों के साथ पांचों वक्त की नमाज अदा (इबादत) करते हैं. जिसके चलते मस्जिदें नमाजियों से फुल हैं. मगर, रोजों की तरह जकात (गरीबों की आर्थिक मदद) भी फर्ज है.

By Prabhat Khabar | April 20, 2023 8:37 PM

Bareilly : रमजान का मुकद्दस महीना चल रहा है. इस महीने में मुसलमान रोजों के साथ पांचों वक्त की नमाज अदा (इबादत) करते हैं. जिसके चलते मस्जिदें नमाजियों से फुल हैं. मगर, रोजों की तरह जकात (गरीबों की आर्थिक मदद) भी फर्ज है. जिसके चलते दरगाह आला हजरत के सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन रजा कादरी (अहसन मियां) ने ईद से पहले रोजदारों को पैगाम दिया है. उन्होंने गरीब मुसलमानों का ख्याल रखने की बात कहीं. बोले, मालदार मुसलमानों के माल पर गरीबों का हक़ है.उन्होंने कहा कि ज़कात, और सदक़ा-ए-फित्र (ईद से पहले गरीबों की आर्थिक मदद) समय से अदा कर दें. हर इंसान को 65 रुपए सदक़ा-ए-फित्र की रकम तय है. इसके साथ ही हैसियतमंद मुसलमान जौ (अन्न) की कीमत के 170, खजूर 1150, और मुनक्का की कीमत 1350 रुपए अदा करे. ये सबसे बेहतर है.

दरगाह आला हज़रत के सज्जादानशीन मुफ़्ती अहसन रज़ा क़ादरी ने मुल्क भर के मालदार मुसलमानों से अपील की. बोले, जिन मुसलमान पर ज़कात फ़र्ज़ है.वह सभी शरई मालदार मुसलमान हैं. जकात के लिए साढ़े सात तोला सोना, या इसकी कीमत, साढ़े बावन तोला चांदी या इसकी कीमत, रुपए-पैसे या चल-अचल संपत्ति है. ऐसे लोग इस्लाम मे मालदार व्यक्ति कहलाता हैं. उनको अपने माल की ज़कात व सदक़ा-ए-फित्र की रकम जल्द से जल्द ख़ुदा का शुक्र अदा करते अदा करनी चाहिए. अल्लाह ने उन्हें देने वाला बनाया न कि लेने वाला. आपकी जकात से गरीब मुसलमान भी आने वाली ईद की खुशियों में शामिल हो सकें.

इस्लाम में 5 स्तंभ

दरगाह के मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने बताया कि इस्लाम मे पांच स्तंभ में से एक ज़कात भी है. ज़कात की अहमियत इस बात से भी समझी जा सकती है कि समाज में आर्थिक बराबरी के मकसद से कुरान (आसमान से अवतरित किताब) में ’83’ जगह पर नमाज़ के साथ ज़कात का ज़िक्र आया है. ज़कात के साथ सदक़ा लफ्ज़ का भी जगह-जगह प्रयोग किया गया. ज़कात निकालने से इंसान का माल पाक हो जाता है, उसमें बरकत होती है. मालदार मुसलमानों के माल पर सबसे पहला हक गरीबों का है. उनकी जिम्मेदारी है कि वह लोग गरीब,यतीम (अनाथ), बेवा (विधवा) और ज़रूरतमंद तक ये रकम पहुंचाए.

यह देनी है जकात

मुसलमानों को उनकी आमदनी से पूरे साल में जो बचत होती है, और एक साल बीत गया हो. उस माल पर कुल ढाई प्रतिशत (2.5%) हिस्सा गरीबों में देना अनिवार्य है. अगर, किसी के पास तमाम खर्च करने के बाद 1000 रुपए बचते है, तो उसे 25 रुपए ज़कात अदा करनी है. इसके साथ ही सदक़ा-ए-फित्र वाजिब है.सदके की रकम अपनी, और अपनी नाबालिग बच्चों की तरफ से निकालनी है. सदक़ा-ए-फित्र 2 किलो 47 ग्राम गेंहू, 4 किलो 94 ग्राम जौ, ख़जूर या मुनक्का या इसकी कीमत अदा करनी है.

एक इंसान पर 65 रूपये सदक़ा-ए-फित्र

बरेली के बाजार में इस वक़्त अच्छी क्वालिटी के 2 किलो 47 ग्राम गेंहू की कीमत 65 रुपए है. इसलिए हर इंसान को 65 रुपए सदक़ा अदा करना है. इसके अलावा 4 किलो 94 ग्राम जौ की कीमत 170 रुपए, खजूर 1150, मुनक्का की कीमत 1350 रूपए है. इसकी बड़ी कीमत भी अदा कर सकते हैं.यह रकम मां,बाप, दादा, दादी,नाना-नानी व नाती-नवासों को नही दी जा सकती, लेकिन भाई-बहन,चाचा-चाची,मामू-मुमानी, फूफी-फूफा,खाला-खालू के अलावा रिश्तेदारो,मदरसों, बीमारों,ज़रूरतमंद को दे सकते हैं. इस्लाम में ज़कात फर्ज है.मगर, यह अरबी भाषा का शब्द है. इसका मतलब (अर्थ) “पाक या शुद्धी करने वाला.” ज़कात अल-माल “सम्पत्ती पर ज़कात” या “ज़काह” इस्लाम में एक प्रकार का “दान देना” है.इसको धार्मिक रूप से ज़रूरी क़रार दिया गया है.

रिपोर्ट- मुहम्मद साजिद बरेली

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