आदिम जनजाति बिरहोर आज भी आजीविका के लिए सरकारी योजनाओं से हैं कोसों दूर, कोरोना काल में परिवार का गुजारा हुआ मुश्किल

खरसावां (शचिंद्र कुमार दाश) : सरायकेला-खरसावां जिले के कुचाई की अरुवां पंचायत के जोड़ा सरजम गांव के आदिम जनजाति बिरहोर समुदाय के लोग आज भी आजीविका के लिए सरकारी योजनाओं से कोसों दूर हैं. वे सीमेंट की बोरी व पेड़ों की छाल से रस्सी बनाकर बेचते हैं. कोरोना काल में हाट-बाजार बंद होने से परिवार का पालन-पोषण मुश्किल हो गया है. उन्होंने सरकार से आजीविका उपलब्ध कराने की मांग की है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 2, 2020 8:49 PM

खरसावां (शचिंद्र कुमार दाश) : सरायकेला-खरसावां जिले के कुचाई की अरुवां पंचायत के जोड़ा सरजम गांव के आदिम जनजाति बिरहोर समुदाय के लोग आज भी आजीविका के लिए सरकारी योजनाओं से कोसों दूर हैं. वे सीमेंट की बोरी व पेड़ों की छाल से रस्सी बनाकर बेचते हैं. कोरोना काल में हाट-बाजार बंद होने से परिवार का पालन-पोषण मुश्किल हो गया है. उन्होंने सरकार से आजीविका उपलब्ध कराने की मांग की है.

Also Read: Jharkhand News : दरिंदों ने जमशेदपुर में पांच साल की मासूम को मार डाला, जंगल में मिला हाथ कटा शव, मेडिकल बोर्ड करेगा पोस्टमार्टम

इस गांव के सभी 16 परिवार के करीब 80 लोग आदिम जनजनजाति बिरहोर समुदाय के हैं. गांव के बिरहोर समुदाय के लोगों के जीविकोपार्जन का एक मात्र साधन रस्सी तैयार कर बाजार में बेचना है. बिरहोर समुदाय के लोग जंगल से पेड़ों की छाल व सीमेंट की बोरी से धागा निकालकर रस्सी बनाते हैं और उसे बाजार में बेचते हैं. इसी से उनकी रोजी-रोटी चलती है. इसके अलावा इनके पास रोजगार का कोई साधन नहीं है, लेकिन हाल के दिनों में कोरोना के कारण हाट-बाजार बंद होने से इन लोगों के रोजगार पर असर पड़ा है. इनके पास रोजगार का संकट उत्पन्न हो गया है.

हाट-बाजार बंद होने के कारण अब तो कई बिरहोर परिवार के सदस्य जंगल से सूखी लकड़ी चुनकर बाजार में बेचते हैं. इन्हीं पैसों से इनका जीवन-यापन होता है. यहां के बिरहोर परिवारों ने सरकार से आजीविका उपलब्ध कराने की मांग की है. ग्रामीणों ने बताया कि मुर्गा, बतख, सुकर पालन कर वे स्वरोजगार से जुड़ना चाहते हैं.

आदिम जनजाति बिरहोर आज भी आजीविका के लिए सरकारी योजनाओं से हैं कोसों दूर, कोरोना काल में परिवार का गुजारा हुआ मुश्किल 2

इस गांव की एक मात्र युवती मैट्रिक पास है. ग्रामीणों ने बताया कि आदिम जनजाति बहुल जोड़ा सरजम गांव से सिर्फ एक ही लड़की मुंगली बिरहोर मैट्रिक पास है. गांव के बाकी लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं, लेकिन वे अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं. खरसावां का अशोका इंटरनेशनल स्कूल गांव के दो बिरहोर बच्चों को गोद लेकर अपने स्कूल में नि:शुल्क पढ़ा रहा है. गांव में आंगनबाड़ी केंद्र या प्राथमिक विद्यालय तक नहीं है.

बिरहोर समुदाय को डाकिया योजना का लाभ मिल रहा है. गांव के बिरहोर समुदाय के लोगों ने बताया कि उन्हें सरकार की ओर से शुरू की गयी डाकिया योजना के तहत हर माह समय पर चावल व अन्य सामान मिल जाता है. पीडीएस दुकानदार उनके घरों तक सामान पहुंचाता है. सरकार की ओर से गांव के बिरहोर समुदाय के लोगों के लिये 11  बिरसा आवास बनाया जा रहा है. जोड़ा सरजम गांव में पांच में से तीन चापाकल खराब पड़ा हुआ है. सोलर ऊर्जा संचालित जलापूर्ति योजना व दो चापाकल चालू अवस्था में है. इसी से ग्रामीणों की प्यास बुझती है.

Also Read: IRCTC/Indian Railway : धनबाद होकर रेलवे ट्रैक पर दौड़ेंगी ये स्पेशल ट्रेनें, देश के इन राज्यों में यात्रा होगी आसान, कोरोना के कारण था परिचालन बंद

40 साल से जोड़ा सरजम में बिरहोर परिवार रह रहे हैं. जोड़ा सरजम गांव के लोगों ने बताया कि करीब 40 साल पहले कुचाई के ही चंपद गांव के सात लोग रामेश्वर बिरहोर, बंदना बिरहोर, बितन बिरहोर, खागे बिरहोर, चैतन बिरहोर, एतवा बिरहोर व बेड़ेड़ीह बिरहोर को बिहार सरकार ने तीन-तीन एकड़ जमीन जोड़ासरजम में दिया था. इसके बाद से ही इनका परिवार जोड़ासरजम में बस गया है. इसके अलावा कुचाई के रुगुडीह के बिरगामडीह में 12 व छोटा सेगोई के चंपद में दो बिरहोर परिवार रह रहे हैं.

Also Read: झारखंड के आदिम जनजाति गांवों की बदलेगी सूरत, खर्च होंगे 5 करोड़ रुपये

Posted By : Guru Swarup Mishra

Next Article

Exit mobile version