बिठूर से फूटी थी आजादी की क्रांति, स्वतंत्रता के लिए सब कुछ बलिदान करने वाली है कानपुर की धरती

Azadi Ka Amrit Mahotsav: कानपुर मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर बिठूर में स्थित नानाराव पेशवा स्मारक पार्क आज आजादी के आंदोलन का गवाह बनकर शान से खड़ा है. यही वह जगह है जहां से अंग्रेजों के खिलाफ आजादी के आंदोलन की चिंगारी फूटी थी.

By Prabhat Khabar | August 9, 2022 2:16 PM

Azadi Ka Amrit Mahotsav: देश की आजादी के 75 वें वर्ष को पूरा देश बड़े ही धूम धाम से मना रहा है. 75 वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अम्रत महोत्सव का आयोजन पूरे देश मे किया गया हैअमृत महोत्सव को अलग अलग तरह से मनाया जा रहा है. हर घर तिरंगा अभियान भी चलाया जा रहा साथ ही तिरंगा यात्रा भी निकाली जा रही है. ऐसे में हम आज आपको वीर क्रातिकारियों को गाथाओं को बताते हैं कि देश की आज़ादी में क्रातिकारियों का क्या योगदान था.

कानपुर मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर बिठूर में स्थित नानाराव पेशवा स्मारक पार्क आज आजादी के आंदोलन का गवाह बनकर शान से खड़ा है. यही वह जगह है जहां से अंग्रेजों के खिलाफ आजादी के आंदोलन की चिंगारी फूटी थी. जो बाद में ऐसा ज्वालामुखी का रूप ले ली थी जिसने अंग्रेजी हुकूमत की जड़ों को हिलाकर रख दिया.

नाना साहब ने छुड़ाए थे अंग्रेजो के छक्के

बता दें कि एक समय था जब अंग्रेजी हुकूमत का परचम पूरे देश पर लहरा रहा था. सारी रियासतें अलग-थलग थीं और अंग्रेजों को इसका फायदा मिला और उन्होंने एक दूसरे को आपस में लड़ाकर अपना उल्लू सीधा किया था. नाना साहब पेशवा आजादी की लड़ाई के पहले ऐसे नायक थे, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद की और सभी रियासतों को एकजुट कर अंग्रेजी सरकार की घेराबंदी शुरू कर दी थी.वही मराठा क्रांतिकारी अंग्रेजों के लिए सिरदर्द बनने लगे थे.

Also Read: UP JEE Main Topper List 2022: सौमित्र गर्ग ने यूपी में प्राप्त की पहली रैंक, यहां देखें टॉपर्स की लिस्ट
क्रांति को अंग्रेज भी नही समझ सके

1857 की क्रांति से पहले अंग्रेजों को यह एहसास भी नहीं था कि देश में उनके खिलाफ आक्रोश पनप रहा है. अंग्रेज समझते थे कि देश में उनकी हुकूमत है और उनके खिलाफ अब कोई बोल नहीं सकता. इसी दौरान 4 जून से 25 जून के बीच पूरे कानपुर में सरकार के खिलाफ एक आंदोलन शुरू हो गया. नाना साहब के साथ तात्याटोपे और रानी लक्ष्मीबाई के नेतृत्व में क्रांति की आग भड़क उठी.हर ओर से देशभक्त निकल पड़े और पूरे देश में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ लड़ाई शुरू हो गई. अंग्रेज भी समझ नहीं पाए कि अचानक क्या हो गया.

खजाना लूट कर दी थी चुनौती

आजादी का आंदोलन शुरू हुआ तो अंग्रेजी सरकार की नौकरी करने वाले भारतीय सिपाहियों में भी देशभक्ति जाग उठी. इसी दौरान 4 जून को अंग्रेजो की पिकेट में तैनात टिक्का सिंह ने साथियों के साथ विद्रोह का बिगुल फूंक दिया और नवाबगंज का खजाना लूट लिया गया. क्रांतिकारियों ने यहां से गोला बारूद भी लूटा और जेल में बंद साथियों को भी मुक्त कराया. इससे पहले कि अंग्रेज संभल पाते अगले ही दिन 5 जून को बिठूर से जाजमऊ तक अंग्रेजों की कोठियों पर क्रांतिकारियों ने धावा बोल दिया.

अंग्रेजों के कत्लेआम से खून से लाल हुई थी गंगा

क्रांतिकारियों के हमले से अंग्रेज हिल चुके थे. आखिरकार उन्होंने कानपुर छोडऩे का फैसला किया और 26 जून 1857 को परिवार सहित नावों पर सवार होकर सुरक्षित ठिकानों की ओर चल पड़े थी तभी बीच धार में नाविक गंगा में कूद पड़े और हाथों में तलवारें लेकर क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों का कत्लेआम शुरू कर दिया. 27 जून को गंगा की धारा अंग्रेजों के खून से लाल हो गई थी.

Next Article

Exit mobile version