स्वायत्त शासन के प्रस्ताव पर विचार नहीं : कल्याण
सिलीगुड़ी. दार्जिलिंग पहाड़ के लोगों को अलग गोरखालैंड राज्य से कुछ भी कम मंजूर नहीं है. यहां के लोग जान देंगे, लेकिन अलग राज्य लेकर ही रहेंगे. यदि केन्द्र सरकार किसी स्वायत्त शासन का प्रस्ताव देती भी है तो उसे नहीं माना जायेगा. ये बातें गोरखालैंड मूवमेंट को-आर्डिनेशन कमेटी (जीएमसीसी) के अध्यक्ष तथा मोरचा नेता […]
अब इस आंदोलन से पीछे हटने का सवाल ही नहीं है. अगर गोखालैंड राज्य का गठन नहीं हुआ तो पहाड़ के गोरखाओं का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा, क्योंकि राज्य की तृणमूल सरकार गोरखाओं को विदेशी बताकर यहां से खदेड़ना चाहती है. श्री देवान ने आगे कहा कि वर्ष 1947 में देश की आजादी के बाद दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र को भारत में शामिल किया गया. गोरखा मूलरूप से जनजाति हैं, लेकिन अब तक उन्हें जनजाति की मान्यता नहीं मिली है. पहाड़ विकास से भी काफी दूर है.
बंगाल सरकार ने गोरखाओं पर अत्याचार के अलावा कुछ भी नहीं किया. गोरखाओं की भाषा नेपाली है और उन्हें अपनी भाषा से असीम प्यार है. गोरखाओं पर बांग्ला पढ़ने का दबाव नहीं डाला जा सकता. उन्होंने राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर भी जमकर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि पहाड़ पर शांति बनी हुई थी. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जीटीए के काम-काज में हस्तक्षेप कर तथा पहाड़ के स्कूलों में जबरदस्ती बांग्ला भाषा थोपकर लोगों की भावनाओं को भड़काया है. उसके बाद ही पहाड़ के लोग अलग राज्य की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को समझना चाहिए था कि गोरखा विकास के साथ ही अपनी जातीय पहचान के लिए भी अलग राज्य चाहते हैं. वह लोग बंगाल सरकार का अत्याचार बरदाश्त नहीं करेंगे. गोरखाओं की भाषा एवं संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश की जा रही है.
पिछले एक महीने से भी अधिक समय तक गोरखालैंड आंदोलन जारी रहने के बाद भी केन्द्र सरकार द्वारा अब तक इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करने पर भी उन्होंने अपनी नाराजगी जतायी. उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार को इस मामले में दखल देना चाहिए. श्री देवान ने जीटीए की व्यवस्था पर भी करारा प्रहार किया. उन्होंने कहा कि गोजमुमो केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकार के बीच त्रिपक्षीय समझौते के बाद जीटीए का गठन हुआ. अलग गोरखालैंड राज्य बनने पर वह सभी जीटीए के माध्यम से ही पहाड़ का विकास करना चाहते थे. राज्य की मुख्यमंत्री ने गोरखाओं को ऐसा नहीं करने दिया. बार-बार जीटीए के काम-काज में हस्तक्षेप किया गया. विभागों का हस्तांतरण नहीं किया गया. इसी वजह से समस्या इतनी गहरा गई.