बंगाल की राजनीति में कम हुआ हिंदीभाषियों का प्रतिनिधित्व

बंगाल विधानसभा की चुनावी राजनीति में उसका प्रतिनिधित्व भी कम हुआ है. हालत यह है कि जिस बंगाल विधानसभा में कभी 9 हिंदीभाषी विधायक हुआ करते थे, पिछली बार 6 रह गये. यानी सीधे एक तिहाई कम.

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 19, 2021 7:06 PM

कोलकाता : बंगाल में हिंदीभाषी आबादी के योगदान की चर्चा खूब होती है. बंगाली मूल के लोग भी हिंदीभाषियों के साथ रहने-सहने के अभ्यस्त हो चुके हैं. उत्तर भारत या कहें कि मूलत: बिहार-यूपी से आये हिंदीभाषियों को भी कोई बहुत शिकायत नहीं रही है.

दरअसल, इस समुदाय की अपेक्षाएं भी कम ही रही हैं. इसी तरह बंगाल विधानसभा की चुनावी राजनीति में उसका प्रतिनिधित्व भी कम हुआ है. हालत यह है कि जिस बंगाल विधानसभा में कभी 9 हिंदीभाषी विधायक हुआ करते थे, पिछली बार 6 रह गये. यानी सीधे एक तिहाई कम.

पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे के जमाने में अर्थात् 1972-77 के दौर में राज्य विधानसभा में 8 विधायक हिंदीभाषी हुआ करते थे. हां, इनमें से अधिकतर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और जीते थे. तब मध्य कोलकाता के जोड़ासांको से चुनाव जीतने वाले कांग्रेसी नेता देवकीनंदन पोद्दार और खड़गपुर सदर से कांग्रेस के ही टिकट पर चुनाव जीते ज्ञानसिंह सोहनपाल तो आगे चलकर भी कई बार इसी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीतते रहे.

Also Read: पहले चुनाव में उदासीन थे शहरी वोटर, गांवों में हुआ था जबर्दस्त मतदान, ज्योति बसु और डॉ बीसी राय को मिले थे इतने वोट

वर्ष 1977 में जब देश भर में कांग्रेस विरोध की लहर चल रही थी, तब बंगाल में भी परिवर्तन की हवा तेज थी. बदलाव हुआ भी. पर यह केवल ट्रेजरी बेंच और ऑपोजिशन बेंच में बैठने वाले दलों की जगह में बदलाव था. हिंदीभाषी विधायकों की संख्या इस बार भी 8 ही थी. इस बार के चुनाव में यूपी के पूर्व राज्यपाल व राज्यसभा में बीजेपी के सांसद रहे आचार्य विष्णुकांत शास्त्री भी चुनाव जीते थे.

वर्ष 1982 और 1987 के चुनाव में हिंदीभाषी समुदाय से आने वाले विधायकों की संख्या कम हो गयी. इन दोनों चुनावों में क्रमश: 6 और 7 हिंदीभाषी उम्मीदवार चुनाव जीतकर विधायक बन सके थे. पश्चिम बंगाल विधानसभा का अगला चुनाव 1992 की जगह 1991 में ही देश के आम चुनाव के साथ कराया गया.

Also Read: चुनाव से पहले बीरभूम, पूर्वी बर्दवान के एसपी व आसनसोल के पुलिस कमिश्नर को हटाया गया

तब के मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने एक वर्ष पहले ही चुनाव कराने का फैसला कर लिया था. पर, 1991 के चुनाव में भी हिंदीभाषी विधायकों की संख्या 6 रह गयी. वर्ष 1996 में हुए विधानसभा चुनाव में स्थिति बदली. इस बार पिछली बार की तुलना में डेढ़ गुना अधिक यानी 9 हिंदीभाषी विधायक चुने गये. तब कांग्रेस की राजनीति में चर्चित हिंदीभाषी चेहरे के तौर पर देखे जाने वाले (स्वर्गीय) अनय गोपाल सिन्हा भी चुनाव जीते थे.

वर्ष 2001 में विधानसभा चुनाव हुए, तो एक बार फिर से सदन में 9 हिंदीभाषी विधायक पहुंचे. इसके पांच वर्ष बाद 2006 में इनकी संख्या में कमी आयी. केवल 7 विधायक हिंदीभाषी समुदाय से विधानसभा पहुंचे. वर्ष 2011 में एक और हिंदीभाषी विधायक कम हो गया. इस बार सिर्फ 6 लोग ही चुन कर आये. 2016 में भी इनकी संख्या 6 ही रही.

Also Read: ‘बंगाल में Lockdown का प्लान नहीं, कोरोना की दूसरी लहर के लिए पीएम जिम्मेदार’- कालियागंज की रैली में Mamata Banerjee का बयान

Posted By : Mithilesh Jha

Next Article

Exit mobile version