सीएए को लेकर अब भी भ्रम में है मतुआ समुदाय

उत्तर 24 परगना जिले के बनगांव में स्थित पूर्व जयनगर गांव का मतुआ समुदाय नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) को लेकर भ्रम और निराशा की स्थिति से जूझ रहा है. यह गांव बांग्लादेश सीमा के पास बसा है.

By Prabhat Khabar | May 14, 2024 11:03 PM

एजेंसियां, बनगांव. उत्तर 24 परगना जिले के बनगांव में स्थित पूर्व जयनगर गांव का मतुआ समुदाय नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) को लेकर भ्रम और निराशा की स्थिति से जूझ रहा है. यह गांव बांग्लादेश सीमा के पास बसा है. यहां के अधिकतर निवासी बांग्लादेश से आकर शरणार्थी के तौर भारत में रह रहे हैं. पूर्व जयनगर गांव में अपने मामूली छप्पर वाले घर के बाहर बैठे 60 वर्षीय श्रीकांत सरकार को मार्च में लागू हुए सीएए से फिर से उम्मीद जगी थी कि अब अत्याचार और भेदभाव से मुक्त भारत में उनका एक स्थायी घर होगा. लेकिन उनका यह सपना टूट गया, क्योंकि बांग्लादेश से आये नागरिकों को भारत में नागरिकता पाने के लिए बांग्लादेश के निवास प्रमाण की आवश्यकता है. श्रीकांत सरकार ने कहा : बांग्लादेश के सतखिरा में धर्म के आधार पर हुए अत्याचार के बाद हम भारत में आकर रहने लगे और हमने नागरिकता पाने के लिए दशकों तक इंतजार किया. लेकिन अब नागरिकता पाने के लिए हमारे पास वे आवश्यक दस्तावेज नहीं हैं. मतुआ समुदाय और बनगांव लोकसभा क्षेत्र में रहने वाले अन्य शरणार्थियों को भी इसी समस्या का सामना करना पड़ रहा है. भारत में दो महीने पहले लागू हुए सीएए के नियमों को लेकर लोगों को स्पष्ट जानकारी नहीं मिल पा रही है, जिससे मतुआ समुदाय के कई लोग नागरिकता पाने के लिए ऑनलाइन आवेदन करने में झिझक रहे हैं. मतुआ समुदाय के लोगों के पास सीएए के लिए बांग्लादेशी राष्ट्रीयता उजागर करने वाले दस्तावेजों की कमी है, जिससे उनके मन में असंतोष और बेचैनी है. उनका तर्क है कि इस तरह की शर्त अधिनियम के मूल उद्देश्य को कमजोर करती है और इसके नियमों में संशोधन की आवश्यकता है. मतुआ समुदाय के एक अन्य सदस्य लिप्टन रे ने कहा : हमें बांग्लादेश की नागरिकता साबित करने वाले दस्तावेज कहां से मिलेंगे? हमारे माता-पिता अपने पहने हुए कपड़ों के अलावा और कुछ भी नहीं लेकर आये थे. उन्होंने कहा : सरकार को संशोधित नियमों के साथ एक नयी अधिसूचना जारी करनी चाहिए, जो हमारे जैसे सताये हुए लोगों के लिए ऐसे दस्तावेजों की आवश्यकता को खत्म कर दे. भारत सरकार ने इसी साल मार्च में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 लागू किया था, जिससे 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत आये पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता दी जायेगी. भारत की नागरिकता पाने के वास्ते शरणार्थियों को अपनी राष्ट्रीयता बताने के लिए उस देश का पासपोर्ट, जन्म प्रमाणपत्र और निवास प्रमाणपत्र जैसे दस्तावेजों का होना जरूरी है, लेकिन यह मतुआ समुदाय और अन्य शरणार्थियों के लिए एक चुनौती की तरह है. वैष्णव नामोशूद्र संप्रदाय के अनुयायी मतुआ समुदाय के लोग भारत के विभाजन के दौरान और 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के बाद धर्म के आधार पर हुए अत्याचार के कारण बड़ी संख्या में पश्चिम बंगाल की ओर पलायन करने लगे. मतुआ समुदाय के लोगों ने दशकों से अत्याचार मुक्त एक सुरक्षित आश्रय के अपने सपने को संजोये रखा था और जब सीएए लागू किया गया, तो उन्हें एक आशा की किरण नजर आयी कि अब आखिरकार उन्हें एक सुरक्षित आश्रय मिल जायेगा, लेकिन इसके लिए मांगे गये आवश्यक दस्तावेजों के न होने से उनके मन में निराशा, हताशा और भ्रम की स्थिति है. लिप्टन रे सीएए के प्रबल समर्थक थे, लेकिन अब नौकरशाही संबंधी बाधाओं और अनुत्तरित सवालों से वह बेहद निराश हैं. उन्होंने कहा : ऐसा लगता है कि इन दस्तावेजों के कारण सीएए का मूल उद्देश्य ही विफल हो रहा है. मतुआ समुदाय के लोगों का मानना है कि सीएए के लिए मांगे गये दस्तावेजों से उनके सामने नयी परेशानी खड़ी हो गयी है, क्योंकि उनमें से अधिकतर या तो बांग्लादेश से दस्तावेजों के बिना आये हैं या भारत में कुछ दस्तावेज प्राप्त करने के बाद उन दस्तावेजों को नष्ट कर दिया है. बनगांव के सायस्तानगर की निवासी रेखा विश्वास ने कहा : हम चाहते हैं कि सरकार हमारे धर्म और हमारी घोषणा के आधार पर हमें नागरिकता प्रदान करने के लिए एक नयी अधिसूचना जारी करे. इस नये कानून के साथ समस्या यह है कि एक बार आवेदन करने के बाद, आपको एक विदेशी के रूप में पहचाना जायेगा और यदि आपके पास बांग्लादेश के दस्तावेज नहीं हैं, तो आप सभी लाभों से हाथ धो बैठेंगे. अखिल भारतीय मतुआ महासंघ के महासचिव महितोष बैद्य ने कहा : बांग्लादेश की नागरिकता को प्रमाणित करने वाले नियम के कारण बनगांव से शायद ही कोई इसके लिए आवेदन कर रहा है. जब तक यह नियम हटाया नहीं जायेगा, तब तक कोई मतुआ सीएए के लिए शायद ही आवेदन करेगा. संगठन ने अपने सदस्यों को बांग्लादेश में उनके पिछले आवासीय पते को साबित करने वाले आवश्यक दस्तावेजों की कमी के कारण नागरिकता का आवेदन करने से बचने के लिए कहा. समुदाय की परेशानी को देखते हुए मतुआ बहुल हरिनघाटा से भाजपा विधायक असीम सरकार ने कहा कि लोगों को नियमों के सरल होने तक इंतजार करना चाहिए. उन्होंने कहा : हमने सरकार और पार्टी, दोनों में अपने शीर्ष नेतृत्व को सूचित किया है कि भारत की नागरिकता पाने के लिए बांग्लादेश की राष्ट्रीयता को साबित करने वाले दस्तावेजों की कमी के कारण मतुआ समुदाय के लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. इसलिए हमने उन्हें सलाह दी है कि वे घबरायें नहीं और नियमों के सरलीकरण का इंतजार करें. एससी-आरक्षित सीट बनगांव के करीब 19 लाख मतदाताओं में से लगभग 70 प्रतिशत मतुआ हैं, जो इस क्षेत्र के चुनाव परिणाम में अहम भूमिका निभाते हैं. बनगांव सीट से तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार बिश्वजीत दास ने कहा : सीएए का धोखा अब खुलकर सामने आ गया है. मतुआ समुदाय के लोगों को अहसास हो गया है कि भाजपा ने उन्हें कैसे बेवकूफ बनाया है. राज्य में अनुमानित 30 लाख की आबादी वाला यह समुदाय बांग्लादेश की सीमा से लगे नदिया और उत्तर 24 परगना जिलों में फैली कम से कम चार लोकसभा सीट पर किसी राजनीतिक दल के पक्ष में या उसके खिलाफ रहकर चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकता है.

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