सीयू में असमिया भाषा के प्रति छात्रों का बढ़ रहा रुझान

कलकत्ता विश्वविद्यालय (सीयू) में असमिया भाषा के प्रति छात्रों का रुझान लगातार बढ़ रहा है. अब बंगाली के साथ-साथ असमिया भाषा को भी छात्र खूब पसंद कर रहे हैं.

By AKHILESH KUMAR SINGH | May 21, 2025 2:29 AM

संवाददाता, कोलकाता

कलकत्ता विश्वविद्यालय (सीयू) में असमिया भाषा के प्रति छात्रों का रुझान लगातार बढ़ रहा है. अब बंगाली के साथ-साथ असमिया भाषा को भी छात्र खूब पसंद कर रहे हैं. विश्वविद्यालय के एक अधिकारी ने बताया कि कई छात्र इसमें गहरी रुचि ले रहे हैं. सीयू के तत्कालीन कुलपति आशुतोष मुखर्जी ने स्थानीय भाषाओं को पाठ्यक्रम में शामिल करने पर जोर दिया था, जिसके परिणामस्वरूप बंगाली और असमिया भाषाएं शुरू की गयीं. 1836 तक बंगाली को आधिकारिक भाषा घोषित कर दिया गया और बाद में यह शिक्षा का माध्यम बनी. 19वीं शताब्दी के दौरान असम में सरकार और शिक्षा में बंगाली बनाम असमिया भाषा के उपयोग को लेकर विवाद की स्थिति रही. उस समय असम में शैक्षिक बुनियादी ढांचा अविकसित था, केवल दो सरकारी स्कूल थे – गुवाहाटी स्कूल (1835) और शिवसागर स्कूल (1845).

वर्ष 1874 में असमिया को असम के प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा के प्राथमिक माध्यम के रूप में मान्यता मिली. हालांकि माध्यमिक और उच्च शिक्षा में बंगाली भाषा का दबदबा बना रहा. 19वीं सदी के अंत तक सरकारी रिपोर्टों से पता चला कि असमिया पढ़ने वालों की संख्या में वृद्धि हुई और कुछ ही सालों में छात्र नामांकन भी बढ़ा. असमिया भाषाई और सांस्कृतिक पहचान का विकास 19वीं सदी के मध्य में बैपटिस्ट मिशनरियों द्वारा शुरू की गयी पहली असमिया पत्रिका, अरुणोदोई के प्रकाशन से हुआ. इसमें अमेरिकी मिशनरी नाथन ब्राउन का योगदान विशेष रूप से महत्वपूर्ण था. हेमचंद्र बरुआ के कार्यों, जिनमें उनकी व्याकरण पुस्तकें, असमिया बयाकोरोन, असमिया लोरार बयाकोरोन और शब्दकोश हेमकोश शामिल हैं, ने असमिया भाषा को परिष्कृत और आधुनिक बनाने में मदद की.कॉटन कॉलेज की स्थापना से पहले ही असमिया छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए बड़ी संख्या में कलकत्ता विश्वविद्यालय में आ रहे थे. वे असमिया और बंगाली साहित्य दोनों में योगदान देते थे. होलीराम ढेकियाल फुकोन जैसे लेखक ने बंगाली में दो पुस्तकें, असम बुरांजी (1829) और कामरूप जात्रा शास्त्री (1833) लिखीं. वे समाचार दर्पण और समाचार चंद्रिका जैसी बंगाली पत्रिकाओं के लिए नियमित रूप से लिखते थे.

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