पुलिस जांच में खामी से दोषी को राहत नहीं : हाइकोर्ट
पुलिस जांच में कहीं न कहीं खामी रह सकती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि दोषी को सजा से छूट मिल जायेगी.
हत्या के मामले में दोषी की उम्रकैद की सजा बरकरार
संवाददाता, कोलकाता.
पुलिस जांच में कहीं न कहीं खामी रह सकती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि दोषी को सजा से छूट मिल जायेगी. कलकत्ता हाइकोर्ट ने हत्या के एक मामले में यह सख्त टिप्पणी करते हुए दोषी की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा है.
मामला वर्ष 2012 का है. नौ नवंबर को रिक्शा चालक मदन राय की हत्या कर दी गयी थी. वर्ष 2014 में सोनारपुर थाने की पुलिस ने इस मामले की जांच शुरू की और ज्ञानसागर शर्मा को गिरफ्तार किया. निचली अदालत ने शर्मा नामक व्यक्ति को हत्या का दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनायी थी. शर्मा ने इस फैसले को हाइकोर्ट में चुनौती दी. उसका तर्क था कि पुलिस जांच में कई गंभीर त्रुटियां हैं, इसलिए सजा रद्द होनी चाहिए. लेकिन हाइकोर्ट की डिवीजन बेंच के न्यायमूर्ति देबांशु बसाक और न्यायमूर्ति प्रसेनजीत विश्वास ने निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा. अदालत ने कहा कि अगर विश्वसनीय और ठोस सबूत मौजूद हों तो पुलिस जांच में खामी से कोई फर्क नहीं पड़ता.
पीड़ित के बेटे की गवाही को अदालत ने बहुत अहम माना. न्यायालय ने कहा कि किसी बेटे के लिए अदालत में खड़े होकर अपनी मां के विवाहेतर संबंधों की बात कहना आसान नहीं होता. इसके बावजूद बेटे ने सच बताया और उसकी गवाही ने पूरे मामले को स्पष्ट कर दिया. कोर्ट ने यह भी कहा कि न्याय प्रक्रिया का उद्देश्य सच्चाई जानना और असली दोषी को सजा देना है. अगर पर्याप्त सबूत हैं तो केवल जांच की तकनीकी खामी के आधार पर दोषी को बरी नहीं किया जा सकता. इस तरह शर्मा की उम्रकैद की सजा को हाइकोर्ट ने बरकरार रखा.
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