झटका: जेसप पर बंदी की तलवार

कोलकाता: दीपावली से पहले जेसप पर बंदी की तलवार लटक गयी है. दमदम के जेसोर रोड स्थित हैवी इंजीनियरिंग निर्माण की सबसे पुरानी कंपनी जेसप को 15 नवंबर से स्थायी रूप से बंद करने के लिए रुइया समूह ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी व श्रम मंत्री पुर्णेदु बसु से अनुमति मांगी है. कंपनी में फिलहाल 600 […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 2, 2013 9:53 AM

कोलकाता: दीपावली से पहले जेसप पर बंदी की तलवार लटक गयी है. दमदम के जेसोर रोड स्थित हैवी इंजीनियरिंग निर्माण की सबसे पुरानी कंपनी जेसप को 15 नवंबर से स्थायी रूप से बंद करने के लिए रुइया समूह ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी व श्रम मंत्री पुर्णेदु बसु से अनुमति मांगी है. कंपनी में फिलहाल 600 स्थायी कर्मचारी काम कर रहे हैं.

यदि कंपनी बंद हो जाती है, तो इन 600 कर्मचारियों का भविष्य अंधकारमय हो जायेगा. गौरतलब है कि पवन रुइया के रुइया समूह के साहगंज स्थित डनलप कारखाना फिलहाल कई माह से बंद पड़ा है. फिलहाल मामला न्यायालय में विचाराधीन है.

जेसप पर बैंकों का 130 करोड़ की देनदारी
सूत्रों के अनुसार जेसप पर बैंकों की 120 से 130 करोड़ रुपये की देनदारी है. इसके अतिरिक्त 20 करोड़ रुपये के अन्य बकाया हैं. इनमें कर्मचारियों के पीएफ, ग्रैच्यूटी सहित अन्य देनदारी लगभग आठ से 10 करोड़ रुपये की है. रुइया समूह ने 2003 में कंपनी का अधिग्रहण किया. विगत 10 वर्षो में कंपनी में कभी भी कार्य स्थगन नहीं हुआ, हालांकि श्रमिक संगठनों के असंतोष की कई बार खबरें सामने आ चुकी हैं. कंपनी में वैगन, क्रेन, सड़क निर्माण के उपकरण सहित अन्य भारी अभियंत्रिकी के उपकरणों का निर्माण होता है.

तृणमूल श्रमिक संगठनों पर गुटबाजी का आरोप
कंपनी के सूत्रों अनुसार शुक्रवार को ही मुख्यमंत्री व श्रम मंत्री को पत्र दिया गया है. इस पत्र में 15 नवंबर से कंपनी को स्थायी रूप से बंद करने की अनुमति मांगी गयी है. प्रबंधन का कहना है कि विगत तीन माह से कंपनी में कोई भी काम नहीं हो पा रहा है. कंपनी का काम पूरी तरह से ठप पड़ा है. इसके मद्देनजर कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों व श्रमिक संगठनों के बीच बैठक भी हुई, लेकिन उसमें कोई परिणाम नहीं निकला. तृणमूल के नेतृत्ववाले दो श्रमिक संगठनों की वर्चस्व की लड़ाई का स्थल जेसप बना गया है. कंपनी की पुरानी मशीनें बेची जा रही हैं. इस पर जब कंपनी के अधिकारियों ने रोक लगाने की कोशिश की, तो उनके साथ मारपीट की गयी. जब उन लोगों ने श्रम विभाग से फरियाद की, तो उनका कहना था कि या तो वे उन लोगों की बात मानें या कंपनी बंद कर दें. प्रबंधन का कहना है कि उन लोगों के पास कंपनी को बंद करने की अनुमति मांगने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचा है, क्योंकि बिना सरकार की अनुमति के कंपनी बंद नहीं की जा सकती है.

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