खूंखार कुत्तों का आतंक : हिंसक व्यवहार के कारणों का विश्लेषण करेगी टीम, बनेगा निगरानी दल

सीतापुर : उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में आंतक का पर्याय बन चुके खूंखार कुत्तों से निपटने के लिये जिला प्रशासन ने लोगों से निगरानी दल बनाने की अपील की है. जिले में ये कुत्ते अब तक छह बच्चों को अपना शिकार बना चुके हैं. जिलाधिकारी शीतल वर्मा ने आज बताया कि प्रशासन ने बच्चों […]

By Prabhat Khabar Print Desk | May 9, 2018 1:47 PM

सीतापुर : उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में आंतक का पर्याय बन चुके खूंखार कुत्तों से निपटने के लिये जिला प्रशासन ने लोगों से निगरानी दल बनाने की अपील की है. जिले में ये कुत्ते अब तक छह बच्चों को अपना शिकार बना चुके हैं. जिलाधिकारी शीतल वर्मा ने आज बताया कि प्रशासन ने बच्चों को कुत्तों के हमलों से बचाने के लिये लोगों से निगरानी दल बनाने की अपील की है. अब तक खूंखार कुत्तों का शिकार हुए बच्चों के बारे में विवरण जारी किया गया है और चश्मदीद लोगों के साथ-साथ निगरानी दलों ने भी कुत्तों के झुंड के बच्चों पर हमला करने की पुष्टि की है.

उन्होंने बताया कि अब तक 30 कुत्तों को पकड़कर लखनऊ के कान्हा उपवन में उनकी नसबंदी करायी गयी है। पशु जन्म नियंत्रण क्लीनिक कल से अपना काम शुरू कर देगा। भारतीय पशु अनुसंधान संस्थान की एक टीम कुत्तों के इस हिंसक व्यवहार के कारणों का विश्लेषण करने के लिये कल जिले में आएगी और इसे एक केस स्टडी के रूप में लेगी. इस काम में उनकी मदद वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड की टीम करेगी। जिलाधिकारी ने बताया कि जिला प्रशासन कुत्तों को मार डालने का हिमायती नहीं है और ना ही ऐसी घटनाओं में शामिल है.

मालूम हो कि सीतापुर जिले में आदमखोर कुत्तों का आतंक है. ये कुत्ते आमतौर पर बागों, खेतों सुनसान इलाकों और यहां तक कि आबादी के अंदर भी लोगों खासकर बच्चों को अपना निशाना बना रहे हैं। अब तक छह बच्चे इन कुत्तों का शिकार बन चुके हैं जबकि कम से कम आठ अन्य जख्मी हुए हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इन घटनाओं को गंभीरता से लेते हुए इन्हें रोकने के सख्त निर्देश दिये हैं. पशु विज्ञानियों के मुताबिक कुत्तों के व्यवहार में आयी इस अप्रत्याशित आक्रामकता का मुख्य कारण उनकी प्रकृति के मुताबिक भोजन नहीं मिल पाना है और उनकी खाने सम्बन्धी आदत बदलना इतना आसान भी नहीं है.

भारतीय पशु विज्ञान संस्थान (आईवीआरआई) के निदेशक डॉक्टर आर. के. सिंह के मुताबिक, पहले बूचड़खाने चलते थे, तो कुत्तों को जानवरों के बचे-खुचे अवशेष खाने को मिल जाया करते थे. लेकिन बूचड़खाने बंद होने और लोगों द्वारा मांस के सेवन के बाद बचने वाली हड्डियां एवं दूसरे अवशेष खुले में नहीं फेंके जाने की वजह से धीरे-धीरे कुत्तों के भोजन में कमी आ गयी है, इसीलिए यह दिक्कत पैदा हो रही है. उन्होंने कहा कि इससे पहले कुत्तों के इस कदर आक्रामक होने की बात सामने नहीं आयी थी. हालांकि सीतापुर में हमलावर कुत्तों को आदमखोर कहना सही नहीं होगा. यह मुख्यतः ‘ह्यूमन एनीमल कांफ्लिक्ट’ का मामला है.

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