ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी पर शुरू से ही मेहरबान रहे अफसर, जानें आखिर क्यों

लखनऊ : गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में लिक्विड ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी पुष्पा सेल्स पर शुरुआत से ही चिकित्सा शिक्षा विभाग के अफसर मेहरबानी दिखाते आ रहे हैं. इस मामले को लेकर आज अमर उजाला डॉट कॉम ने खबर दी है. अमर उजाला की मानें तो यदि वक्त रहते अफसरों ने इस कंपनी […]

By Prabhat Khabar Print Desk | August 14, 2017 12:43 PM

लखनऊ : गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में लिक्विड ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी पुष्पा सेल्स पर शुरुआत से ही चिकित्सा शिक्षा विभाग के अफसर मेहरबानी दिखाते आ रहे हैं. इस मामले को लेकर आज अमर उजाला डॉट कॉम ने खबर दी है. अमर उजाला की मानें तो यदि वक्त रहते अफसरों ने इस कंपनी पर कार्रवाई की होती तो 62 लोगों की जान बच जाती.

इस कंपनी ने वर्ष 2013 में ही लिक्विड ऑक्सीजन प्लांट के निर्माण में टेंडर की शर्तों को नजर अंदाज किया था. निर्माण कार्य में देरी के कारण इस कंपनी को तत्कालीन प्रधानाचार्य डॉ. सतीश कुमार ने कड़ी चेतावनी भी दी थी, लेकिन सरकार में बैठे अफसरों ने इस पर ध्यान देना उचित नहीं समझा.

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लखनऊ की कंपनी पुष्पा सेल्स प्राइवेट लिमिटेड को वर्ष 2013 में बीआरडी मेडिकल कॉलेज के पीडियाट्रिक विभाग में 100 बेड के मस्तिष्क ज्वर वार्ड में ऑक्सीजन गैस पाइपलाइन की स्थापना का ठेका मिला था. टेंडर की शर्तों के अनुसार इस कंपनी को दो महीने में काम पूरा करना था, लेकिन कंपनी ने तय समय में काम पूरा नहीं किया जिसको मेडिकल कॉलेज के तत्कालीन प्रधानाचार्य डॉ. सतीश कुमार ने इंगित भी किया था. तब इस कंपनी ने नवंबर 2013 में काम पूरा करने का भारोसा दिया था. इसके बावजूद कंपनी नवंबर 2013 में काम पूरा नहीं कर सकी. जब दिसंबर 2013 में भी काम पूरा नहीं हुआ तो प्रधानाचार्य ने कंपनी को कड़ी चेतावनी दी थी. हालांकि 24 दिसंबर 2013 को लिखे पत्र में प्रधानाचार्य ने 15 दिन में काम करने का आदेश दिया था साथ ही, ऐसा न करने पर कंपनी के खिलाफ कार्रवाई करने की बात पत्र में लिखी गयी थी.

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प्रधानाचार्य की ओर से इसकी प्रतिलिपि महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा के साथ ही डीएम व सीएमओ को भेजी गयी थी. उधर, महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा ने भी अपनी समीक्षा में यह पाया था कि पुष्पा सेल्स समय पर लिक्विड गैस प्लांट की स्थापना कर पाने में सक्षम नहीं रही और इसके लिए कंपनी को लापरवाह माना था. लेकिन, इसके बावजूद कंपनी के खिलाफ अफसरों ने कोई कार्रवाई नहीं की. नियमों की मानें तो यदि कोई कंपनी टेंडर की शर्तों का उल्लंघन करती है तो उसे ब्लैक लिस्ट कर दिया जाता है, लेकिन सरकार के साथ नजदीकियों के कारण उस समय के अफसरों ने इस कंपनी के खिलाफ कोई सख्‍त एक्शन नहीं लिया.

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