यूपी के गांवों की सड़कों को कम लागत और समय में बनाने में कारगर साबित हो रही FDR तकनीक, जानें ‘सुपरप्‍लान’

ग्रामीण अभियंत्रण विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार, सड़कों के निर्माण में बड़ी एजेंसियों की ओर से भी अभी तक इस तकनीक को नहीं अपनाया गया है. मगर ग्रामीण अभियंत्रण विभाग ने इसे एक नई चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए इस तकनीक को अपनाने का काम किया है.

By Prabhat Khabar | July 3, 2022 6:18 PM

Lucknow News: उत्‍तर प्रदेश की सड़कों के निर्माण में एक नया प्रयोग किया जा रहा है. ग्रामीण अभियंत्रण विभाग (Rural Engineering Department) की ओर से सड़कों को ऊंचा और मरम्मत करने आदि में एफडीआर प्रणाली का अभिनव उपयोग किया जा रहा है. उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की देखरेख में इस प्रणाली को प्रोत्‍साह‍ित किया जा रहा है.

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कहीं अधिक टिकाऊ होंगी

ग्रामीण अभियंत्रण विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार, सड़कों के निर्माण में बड़ी एजेंसियों की ओर से भी अभी तक इस तकनीक को नहीं अपनाया गया है. मगर ग्रामीण अभियंत्रण विभाग ने इसे एक नई चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए इस तकनीक को अपनाने का काम किया है. इस तकनीक से जहां सड़कें सामान्य परंपरागत तकनीक से बनाई गई सड़कों से कहीं अधिक टिकाऊ होंगी. वहीं, इनकी निर्माण लागत भी पूर्व की तकनीक की तुलना में कम होगी.

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कार्बन उत्सर्जन में कमी दर्ज

यही नहीं इनके निर्माण में कार्बन उत्सर्जन में कमी होने से पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा भी मिलेगा. बीते वर्ष विभाग की ओर से पायलट प्रोजेक्ट के रूप में 9 सड़कों को इस प्रणाली के तहत निर्म‍ित किया गया था. उन सड़कों पर अधिकांश काम हो चुका है. नतीजे में पाया गया है कि सड़कों का निर्माण कम समय में हो जाता है. ग्रामीण अभियंत्रण विभाग इस वर्ष 5500 किमी का कार्य करेगा. इसकी शुरुआत भी कर दी गई है. इस वर्ष तकरीबन 5 हजार करोड़ रुपये से अधिक के कार्य इस तकनीक से होने हैं.

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पायलट प्रोजेक्ट के रूप में 9 मार्गों को लिया गया

इस तकनीक में कुछ सीमेंट में एक विशेष प्रकार के केमिकल को मिलाकर एक पर्त बिछाई जाती है. वहीं, खराब हो चुकी सड़क की एक विशेष प्रकार की मशीन से खोदाई करके उस सड़क की पुरानी गिट्टी, पत्थर आदि का उपयोग किया जाता है. अलग से पत्थर, गिट्टी आदि क्रय करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है. ग्रामीण अभियंत्रण विभाग के मुख्य अभियंता वीरपाल सिंह राजपूत बताते हैं कि इस तकनीक के दूरगामी और सफल परिणाम हासिल होंगे और सड़कों के निर्माण के क्षेत्र में यह तकनीक एक नई क्रांति की जनक साबित होगी. इस तकनीक से उत्तर प्रदेश में बीते वर्ष पायलट प्रोजेक्ट के रूप में 9 मार्गों को लिया गया था. उन सड़कों पर अधिकांश काम हो चुका है. इन्हें कई प्रदेशों के सड़कों के निर्माण से जुड़े विशेषज्ञ व अधिकारी देखने आ रहे हैं. इस तकनीक से सड़कों को ऊंचा करने में लगने वाले समय में तुलनात्‍मक कमी आ रही है. कार्बन उत्सर्जन में भी बहुत गिरावट दर्ज की गई है.

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