नौकरी के दौरान अपंग होने पर कर्मचारी को निचले वेतनमान वाला पद नहीं दे सकती सरकार : HC

इलाहाबाद : इलाहाबादहाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह व्यवस्था दी है कि सरकार किसी कर्मचारी को नौकरी के दौरान अपंग होने की वजह से केवल इसलिए निचले वेतनमान वाले पद पर समायोजित नहीं कर सकती, क्योंकि वह मौजूदा पद के लिए फिट नहीं रह गया है. न्यायमूर्ति भारती सप्रू और न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 15, 2017 9:24 PM

इलाहाबाद : इलाहाबादहाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह व्यवस्था दी है कि सरकार किसी कर्मचारी को नौकरी के दौरान अपंग होने की वजह से केवल इसलिए निचले वेतनमान वाले पद पर समायोजित नहीं कर सकती, क्योंकि वह मौजूदा पद के लिए फिट नहीं रह गया है.

न्यायमूर्ति भारती सप्रू और न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने रेल मंत्रालय द्वारा दाखिल अपील को खारिज करते हुए उक्त आदेश पारित किया है. यह व्यवस्था देते हुए अदालत ने रेल मंत्रालय को संबद्ध कर्मचारी एसक्यू अहमद (जिन्हें मामूली रूप से अपंग होने के चलते निचले वेतनमान वाले पद पर समायोजित किया गया था) को देय तिथि से 7 प्रतिशत ब्याज के साथ उच्च वेतनमान के मुताबिक उनका बकाया वेतन भुगतान करने का निर्देश दिया.

साथ ही अदालत ने उक्त कर्मचारी को वाजिब बकाया नहीं देने और बिना किसी गलती के उसे मुकदमेबाजी में घसीटने के लिए रेलवे पर 50,000 रुपये का हर्जाना भी लगाया. अपनी याचिका में केंद्र सरकार ने रेल मंत्रालय के जरिए केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी थी. अधिकरण ने अपने फैसले में रेल मंत्रालय को उसके कर्मचारी एसक्यू अहमद को उसके मूल वेतनमान के मुताबिक वेतन और अन्य बकाए का भुगतान करने का निर्देश दिया था.

अधिकरण ने कहा था कि अहमद के साथ रेल मंत्रालय ने भेदभाव किया और उसे गलत ढंग से निचले वेतनमान वाले पद पर इस आधार पर समायोजित किया कि वह जो काम पहले कर रहा था उसके लिए अब उपयुक्त नहीं रह गया है.

रेलवे ने दलील दी थी कि यदि एक कर्मचारी चिकित्सीय रूप से फिट नहीं रह जाता है तो वह जिस वर्ग में फिट पाया जाता है, उसी वर्ग में वैकल्पिक रोजगार के लिए पात्र है. इसलिए अहमद को उसकी फिटनेस और रिक्त पद के मुताबिक नियुक्त किया गया था और निचले स्तर के वेतनमान वाले पद पर उसकी नियुक्ति में कुछ भी गलत नहीं है.

हालांकि, एसक्यू अहमद के वकील ने रेल मंत्रालय द्वारा जारी मास्टर सर्कुलर को आधार बनाया जिसमें कहा गया है कि चिकित्सीय रूप से अनुपयुक्त कर्मचारी को वैकल्पिक रोजगार में रखने के दौरान रेलवे को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कर्मचारी का हित जहां तक संभव हो सके, बुरी तरह से प्रभावित न हो.

पीठ का मानना है कि एक कर्मचारी के वेतनमान में इस तरह की कटौती भेदभावपूर्ण है और दिव्यांग कर्मचारी (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण एवं पूर्ण सहभागिता) कानून, 1995 के अनुच्छेद 47 का उल्लंघन है. पीठ ने केंद्र सरकार और रेलवे की याचिका खारिज करते हुए कहा, यह याद रखना आवश्यक है कि व्यक्ति अपने मन से अपंग नहीं होता. नौकरी के दौरान अपंग होने वाले कर्मचारी को संरक्षण दिया जाना चाहिए. यदि ऐसे कर्मचारी को संरक्षण नहीं दिया जाता है तो इससे न केवल वह स्वयं प्रभावित होगा, बल्कि उस पर निर्भर लोग भी प्रभावित होंगे.

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