10th रिजल्ट में जन्म से दिव्यांग बच्चों का बेहतरीन प्रदर्शन, माता-पिता ने कहा बनाएंगे इंजिनीयर

ओडिशा के श्री श्री बालेश्वर हाई स्कूल में पढ़ाई कर रहे दिव्यांग बच्चों ने मैट्रिक में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण किया. उनकी इस सफलता पर माता-पिता समेत परिजनों में खुशी की लहर है. परिजनों ने अपने बच्चे को इंजीनियर बनाने की बात कही.

By Prabhat Khabar Print Desk | May 19, 2023 7:14 PM

Odisha News: जिन बच्चों को कुदरत ने जन्म से ही दिव्यांग बनाया, समाज ने जिन्हें दोयम दर्जे का स्थान दिया, मां-बाप जिनकी स्थिति को देखकर अपने को भाग्यहीन बताते रहे, लेकिन आज उन्हीं बच्चों ने अपने माता पिता का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया.

दरअसल, बहरागोड़ा प्रखंड के तीन बच्चे, दरखुली निवासी दिलीप कुमार सीट के पुत्र दीपेश कुमार सीट, काटूलिया निवासी चंडी चरण कुइला के पुत्र ऋषिकेश कुइला और छोटापारुलिया निवासी कुनबाबू गीरि के पुत्र देवजीत गीरि, जन्म से ही दिव्यांग हैं. ये तीनों इशारों में ही बात कर सकते हैं. तीनों पिछले 10 साल से ओडिशा के कटक में स्थित श्री श्री बालेश्वर हाई स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे. दसवीं तक पढ़ने के बाद इन इशारों में बात करने वाले बच्चों का शुक्रवार को मैट्रिक का परिणाम निकला. जिसमें तीनों अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुए हैं.

दीपेश कुमार सीट को कुल 600 में से 422 अंक, ऋषिकेश कुइला को 409 अंक और देवजीत गीरि को 400 अंक मिले हैं. तीनों की सफलता पर माता-पिता समेत परिजनों में खुशी की लहर है. बताया जा रहा है कि दीपेश का पिता बीएसएनएल पर ठेका कर्मी है. वहीं, ऋषिकेश के पिता खेती करते हैं. जबकि, देवजीत के पिता अपने गांव पर दुकान चला कर अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं.

तीनों बच्चों के परिजनों ने बताया करीब 10 साल पहले इन्होंने अपने मुख बाधिर बच्चों को कटक स्थित दिव्यांग बच्चों के स्कूल में पढ़ने के लिए भेज दिया था. ये बच्चे वहीं पर जाकर अपनी पढ़ाई करते हैं. ये बच्चे इशारे में सब कुछ समझ जाते हैं. तीनों के परिजनों ने अपने बच्चे को इंजीनियर बनाने की बात कही.

जानकारी के मुताबिक, कटक स्थित श्री श्री बालेश्वर हाई स्कूल पूरी तरह से आवासीय है. यह विद्यालय पूरे ओडिशा राज्य में अपनी विशेष पहचान बना चुका है. बच्चों के परिजनों ने बताया जब वे अपने बच्चे को एडमिशन के लिए इस स्कूल में गए थे, तब बताया गया कि वहां बच्चों को पढ़ाई के अलावा खेलकूद का प्रशिक्षण दिया जाता है. उनका लक्ष्य है कि बच्चे को समाज की मुख्यधारा से जोड़कर साबित कर दें कि शारीरिक विकलांगता कुछ भी नहीं है. इन बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिए प्रशासन के आलाधिकारी भी समय-समय पर यहां आत रहते हैं. सभी स्कूल में कक्षा 1 से लेकर 10 तक पढ़ाई होती है. उसके बाद मुख बाधिर बच्चे को दूसरे संस्थान में जाकर अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करनी होती है.

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