स्कूल बस में ठूंस-ठूंस कर ढो रहे बच्चे

चूरी परियोजना की स्कूल बस में क्षमता से दोगुना बच्चों को बैठाने के कारण बच्चे बेहोश होने लगे हैं. यह स्थिति गर्मी का मौसम शुरू होने से पहले उत्पन्न हो गयी है.

By Prabhat Khabar News Desk | March 3, 2025 7:18 PM

चूरी परियोजना की स्कूल बस में क्षमता से दोगुना बच्चों को बैठाने का मामला

गर्मी शुरू होने से पहले बस में भीड़ ज्यादा होने से बेहोश होने लगे हैं बच्चे

प्रतिनिधि, डकरा

आरटीओ, स्कूल संचालकों और अभिभावकों की अनदेखी से छात्र-छात्राएं खतरों भरा सफर करने को विवश हैं. यही कारण है कि अनफिट वाहनों में बच्चे हादसे का शिकार हो जाते हैं. हालत यह है कि क्षमता से दोगुना बच्चों को बैठाकर लाने ले जाने का काम कर रहे हैं. कुछ स्कूलों को छोड़ दे तो अधिकतर में फिटनेस, पंजीयन, फस्ट एड बाक्स, अग्निशमन यंत्र, वाहन का रंग और नंबर सब गायब है. इसके बावजूद जिम्मेदार अनजान बने हुए हैं. चूरी परियोजना की स्कूल बस में क्षमता से दोगुना बच्चों को बैठाने के कारण बच्चे बेहोश होने लगे हैं. यह स्थिति गर्मी का मौसम शुरू होने से पहले उत्पन्न हो गयी है. ऐसे में अभिभावक चिंतित होने लगे हैं. अब बच्चे बस में चढ़कर स्कूल जाने के नाम से डरने लगे हैं. इस संबंध में कॉलोनी के लोगों ने बताया कि परियोजना की बस से प्रतिदिन 200 बच्चों को स्कूल पहुंचाया और लाया जाता है. भीड़ के कारण प्रतिदिन कई बच्चे छूट जाते हैं और वह स्कूल नहीं जा पाते हैं. प्रबंधन से बार-बार बात करने के बाद भी कोई सुधार नहीं हो रहा है. बस चालक की मनमानी भी चरम पर है. वह किसी बस स्टॉप पर बच्चों को उठाने नहीं जाते हैं बल्कि एक जगह बस को खड़ी कर एक निश्चित अवधि तक इंतजार करते हैं और बस लेकर चले जाते हैं. बस में चढ़ने के लिए बच्चों को एक किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ रहा है. इस मनमानी और लापरवाही के विरुद्ध अभिभावकों का एक बड़ा वर्ग नाराज है.

सर्वे ऑफ बस केडीएच को दिया गया

परियोजना की 40 वर्ष पुरानी बस सर्वे ऑफ हो गयी है और यहां भाड़े पर स्कूल बस प्रबंधन ने हायर किया है. लोग पुरानी बस को भी चलाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन प्रबंधन उसे सर्वे ऑफ बात कर चलाने से मना करता है. जबकि इस बस को केडीएच परियोजना को दे दिया गया है और बस वहां चल रही है. निजी बस मालिक सड़क खराब होने का हवाला देकर बस स्टॉप से बच्चों को नहीं उठाते हैं बल्कि वह चूरी ग्राउंड में बस को खड़ी कर दे रहे हैं और बच्चे एक किलोमीटर पैदल चलकर बस में चढ़ते हैं. इसी स्थिति के कारण पांच वर्ष पूर्व यहां एक ऐसी दुर्घटना में तीन बच्चों की मौत हो गयी थी.

कानून का सहारा लेने का निर्णय

अभिभावकों ने बताया कि प्रबंधन की मनमानी और लापरवाही से परेशान होकर अब हम लोगों ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का निर्णय लिया है. स्कूल बस मैन्युअल का पालन भी नहीं किया जा रहा है. वहीं श्रमिक नेता सोनू पांडेय ने इसकी लिखित जानकारी सीसीएल और कोल इंडिया प्रबंधन को दी है.

स्कूल बसों में इन नियमों का पालन जरूरी

-सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार स्कूल बस पीले रंग से पेंट होनी चाहिए.

-बस के आगे और पीछे ऑन स्कूल ड्यूटी लिखा हो.

-सभी खिड़कियों के बाहर लोहे की ग्रिल होनी चाहिए.

– बस के अंदर अग्निशमन यंत्र लगा हो.

– स्कूल का नाम और फोन नंबर होना चाहिए.

– दरवाजे में ताला लगा हो और सीटों के बीच पर्याप्त जगह होनी चाहिए.

– चालक को कम से कम पांच साल का वाहन चलाने का अनुभव हो.

– स्कूल बस का ट्रांसपोर्ट परिमट होना चाहिए.

अभिभावक यह रखें सावधानी

– बस खड़ी होने पर ही बच्चों को चढ़ाएं.

– चालक की हरकतों पर नजर रखें.

– ध्यान रखें कि कहीं चालक नशे में तो नहीं है.

– बस में हेल्पर के साथ स्कूल के जिम्मेदार शिक्षक हैं या नहीं.

– बच्चों के आने और जाने के समय पर ध्यान रखें.

– बस के अंदर बच्चों को बैठने को जगह मिलती हैं या नहीं.

– बस में सुरक्षा मानकों का पालन हो रहा है या नहीं.

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