Exclusive: ठगी या धोखाधड़ी के खिलाफ जांच नहीं करती ED, पढ़ें आलोक आनंद से खास बात की चौथी कड़ी

पुराने कानून में ईसीआईआर रिकॉर्ड करने के बाद ईडी को धनशोधन के मामले में पूछताछ करने का अधिकार मिल तो जाता था, मगर उसके पास कार्रवाई, तलाशी, कुर्की, गिरफ्तारी और अदालत में चार्जशीट दाखिल करने का अधिकार नहीं था. ईसीआईआर रिकॉर्ड करने के 24 घंटे के अंदर पुलिस या सीबीआई कोर्ट में चार्जशीट दाखिल करती थी.

By KumarVishwat Sen | November 22, 2022 12:10 PM

विश्वत सेन

रांची : प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) या धनशोधन निवारण अधिनियम के अध्ययन के तहत झारखंड हाईकोर्ट के अधिवक्ता आलोक आनंद के विशेष साक्षात्कार में कही गई बातों में अभी तक हमने ये पढ़ा कि 20वीं सदी में भारत सरकार की ओर से संयुक्त राष्ट्र संघ में किए गए वादे के आधार पर 21वीं सदी की शुरुआत वर्ष 2002 में जब देश में पीएमएल कानून बना, तो उसमें कितनी दुश्वारियां थीं. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को मनी लॉन्ड्रिंग यानी धनशोधन के मामले में जांच करने से पहले सीबीआई और पुलिस का मुंह कैसे ताकना पड़ता था. अब www.prabhatkhabar.in उससे आगे की कहानी बताने जा रहा है. पेश है झारखंड हाईकोर्ट के अधिवक्ता आलोक आनंद के विशेष साक्षात्कार की चौथी कड़ी…

पुराने कानून में केवल पूछताछ का था अधिकार

आलोक आनंद : पुराने कानून में ईसीआईआर रिकॉर्ड करने के बाद ईडी को धनशोधन के मामले में पूछताछ करने का अधिकार मिल तो जाता था, मगर उसके पास कार्रवाई, तलाशी, कुर्की, गिरफ्तारी और अदालत में चार्जशीट दाखिल करने का अधिकार नहीं था. ईडी द्वारा ईसीआईआर रिकॉर्ड करने के 24 घंटे के अंदर पुलिस या सीबीआई कोर्ट में चार्जशीट दाखिल करती थी या फिर किसी की गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर उसे संबंधित मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना पड़ता था, लेकिन 2019 में मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के संशोधन में इन सभी बाध्यताओं को खत्म करके ईडी को वे सारे अधिकार दे दिए गए, जो अब तक पुलिस या सीबीआई के पास थे. 2019 के संशोधन से पहले सीआरपीसी की धारा-70 के तहत कार्रवाई, जांच, तलाशी, छापेमारी, कुर्की-जब्ती और गिरफ्तारी पर जो रोक लगी थी, उसे कानून में संशोधन करके सामाप्त कर दिया गया.


सवाल : हम ये जानते हैं कि भ्रष्टाचार या वित्तीय अनियमितता को लेकर ईडी कार्रवाई करती है. कानून क्या कहता है?

आलोक आनंद : देखिए, सब्सटेंटिव ऑफेंस को लेकर ईडी कभी इन्वेस्टिगेशन और ट्रायल नहीं करती है. जैसे मान लीजिए कि भ्रष्टाचार हुआ है या इनकम टैक्स के तहत कोई ऑफेंस कमिट किया गया है, तो सुटेबली वो उसी एक्ट के तहत होता है, जैसे प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट (भ्रष्टाचार निरोधक कानून) हमारा है. या इनकम टैक्स के तहत कुछ हो रहा है, तो वो उसी एक्ट के तहत सुटेबली होता है. उनका अपना कोर्ट है, उनके अपने जजेज हैं और उसी में अपना ट्रायल होता है. उसका पूरा मैकेनिज्म है. सिर्फ वो जो मनी का ट्रेल है, जो प्रोसिड्स ऑफ क्राइम हम बार-बार कह रहे हैं. जैसे शिड्यूल में आप आएंगे, तो प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट भी है, इनकम टैक्स का सुटेबल प्रोविजन सब भी है, आईपीसी के प्रोविजन्स हैं और नारकोटिक्स वाले भी प्रोविजन्स हैं.

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पीएमएलएल में फॉर्जरी या चीटिंग का ज्यूडिकेशन नहीं होता

आलोक आनंद : अब जैसे मान लीजिए कि फॉर्जरी या चीटिंग हो रही है, तो फॉर्जरी या चीटिंग के लिए पीएमएलए के तहत ज्यूडिकेशन पर नहीं होता है और न ही ये इन्वेस्टिगेट करते हैं. उस फॉर्जरी से जो प्रोसिड्स ऑफ क्राइम जेनरेट हुआ है और उस क्राइम के जरिए उपलब्ध धन को समानांतर अर्थव्यवस्था में डालने, उसका इस्तेमाल करने, उसको किसी के पास भेजने आदि में जो प्रयास हो रहा है कि नहीं, ये हमारा स्वअर्जित संपत्ति है और अवैध की जगह वैध बनाने में जो प्रयास होता है, उससे ये ऑफेंस जेनरेट होता है.

नोट : पीएमएलए कानून की पांचवी कड़ी पढ़ने के लिए आपको जल्द ही मौका मिलेगा. तब तक के लिए इंतजार करें.

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