Ranchi News : सूर्य आराधना, परंपरा नहीं, एक वैज्ञानिक जीवनशैली

छठ महापर्व पर श्रद्धालु सूर्य की उपासना करते हैं. सूर्यदेव की पूजा का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है.

By Prabhat Khabar News Desk | October 26, 2025 6:30 PM

रांची.

छठ महापर्व पर श्रद्धालु सूर्य की उपासना करते हैं. सूर्यदेव की पूजा का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है. सूर्य को जीवन का दाता और ऊर्जा का स्रोत माना जाता है. रोगों को मिटाने वाला देवता भी सूर्य को कहा जाता है. छठ पर्व में सूर्य को अर्घ देने की परंपरा है. धार्मिक आस्था के साथ वैज्ञानिक कारण भी है. वैज्ञानिक दृष्टि से देखें, तो सूर्य पृथ्वी पर जीवन का प्रमुख स्रोत है. इसकी किरणें पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को संचालित करती हैं. सूर्य की ऊर्जा के बिना न तो जलवायु का संतुलन बना रह सकता है, न ही इसके बिना जीवन संभव है. धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि सूर्य समस्त जीवों की आत्मा है. इसलिए जब अगली बार आप सूर्य को अर्घ दें, तो यह समझें कि आप केवल धर्म का पालन नहीं, बल्कि विज्ञान और प्रकृति का सम्मान कर रहे हैं.

सूर्य की पूजा या प्राकृतिक थेरेपी? जानिए… छठ के पीछे का विज्ञान

सुबह की सूर्य किरणें और स्वास्थ्य लाभ

वैज्ञानिकों के अनुसार, सुबह की पहली किरणें मानव शरीर के लिए अमृत समान मानी जाती है. सुबह में पराबैंगनी किरणों की मात्रा कम होती है. यह शरीर में विटामिन डी के निर्माण में सहायक होती है. विटामिन डी हड्डियों को मजबूत बनाता है. प्रतिरक्षा तंत्र को सशक्त करने के साथ मनोदशा को स्थिर रखता है. यही कारण है कि प्राचीन भारत में लोग प्रातः सूर्य को नमस्कार करते थे. यह न केवल आध्यात्मिक साधना थी, बल्कि एक प्राकृतिक हेल्थ थेरेपी भी थी.

जल में सूर्य को अर्घ देने की परंपरा

छठ पर्व के दौरान लोग सूर्य को जल अर्पित करते हैं. वैज्ञानिक दृष्टि से यह क्रिया एक अद्भुत प्रकाश-विज्ञान का प्रयोग है. जब सूर्य की किरणें जल से होकर गुजरती हैं, तो वे अपवर्तन के कारण कोमल हो जाती हैं. इससे आंखें पर सीधी तेज रोशनी का प्रभाव नहीं पड़ता है. साथ ही आंखों का प्राकृतिक व्यायाम भी हो जाता है. जल के माध्यम से सूर्य की ऊर्जा शरीर और मन दोनों पर शीतल प्रभाव डालती है. इस प्रक्रिया से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.

सूर्य नमस्कार का वैज्ञानिक महत्व

योग में सूर्य नमस्कार का विशेष स्थान है. इसमें 12 आसनों का क्रम होता है, जो पूरे शरीर को सक्रिय करता है. वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि नियमित सूर्य नमस्कार करने से शरीर की मांसपेशियां लचीली रहती हैं. रक्तसंचार बढ़ता है. मानसिक तनाव कम होता है. यह अभ्यास सूर्य की ओर मुख करके किया जाता है, ताकि शरीर सूर्य की किरणों को अधिकतम मात्रा में अवशोषित कर सके. इससे शरीर की जैविक घड़ी भी संतुलित रहती है.

जैविक घड़ी और सूर्य की लय

मानव शरीर की जैविक घड़ी सूर्य की गति से जुड़ी हुई है. जब हम सूर्य उदय के समय जागते हैं और सूर्यास्त के बाद विश्राम करते हैं, तो हमारा हार्मोनल सिस्टम संतुलित रहता है. सुबह की रोशनी में मेलाटोनिन हार्मोन का स्राव घटता है, जिससे नींद खुल जाती है. वहीं, सेरोटोनिन बढ़ता है, जो मन को प्रसन्न रखता है. सूर्यास्त के बाद अंधकार बढ़ने पर मेलाटोनिन फिर से सक्रिय होता है, जिससे नींद अच्छी आती है. यही कारण है कि प्राचीन भारत में कहा गया है कि सूर्य के साथ जागो, सूर्य के साथ सोओ, यह केवल आध्यात्मिक उपदेश नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक जीवनशैली का नियम था.

मानसिक और ऊर्जा स्तर पर प्रभाव

सूर्य की रोशनी मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डालती है. ठंड प्रभावित देशों में जहां सूर्य कम दिखाई देता है, वहां सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर जैसी मानसिक बीमारियां आम है. भारत जैसे धूप वाले देश में सूर्य की उपासना व्यक्ति के मन को संतुलित रखती है. सूर्य स्नान और ध्यान से मस्तिष्क में एंडोर्फिन और डोपामाइन जैसे सकारात्मक रसायन बनते हैं. इससे प्रसन्नता और ऊर्जा का संचार होता है.

पर्यावरणीय दृष्टिकोण से महत्व

सूर्य आराधना हमें प्रकृति के प्रति संवेदनशील बनाती है. हमें सिखाती है कि पृथ्वी पर ऊर्जा का सबसे स्वच्छ और अक्षय स्रोत सूर्य है. आज जब दुनिया प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से जूझ रही है, तब सौर ऊर्जा ही भविष्य की सबसे बड़ी उम्मीद बन चुकी है. इस दृष्टि से सूर्य की उपासना न केवल धार्मिक या सांस्कृतिक परंपरा है, बल्कि सतत विकास की दिशा में एक प्रतीकात्मक कदम भी है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है