झारखंड के घरेलू कामगारों की स्थिति खराब, महज 3000 रुपये प्रति माह में काम करने को विवश, पढें पूरी रिपोर्ट

झारखंड में घरेलू कामगारों की स्थिति बदहाल है, 70 प्रतिशत लोग केवल 3000 रुपये में काम करने को विवश हैं, इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि 68.6% को माह में चार दिन की छुट्टी मिलती है.

By Prabhat Khabar | March 30, 2022 9:41 AM

राजीव पांडेय/ रांची. झारखंड में घरेलू कामगारों में 70% को महीना में मात्र 3,000 रुपये और 10% को अधिकतम 4,000 रुपये का वेतनमान मिलता है. बाकी 20% कामगार 2000 रुपये में भी काम करने को विवश हैं. घरेलू कामगारों में 40.9% शिक्षित हैंं. यह आंकड़ा झारखंड एंटी ट्रैफिकिंग नेटवर्क और स्पार्क रांची द्वारा ‘झारखंड के घरेलू काम करनेवालों की स्थिति’ पर किये गये सर्वे में मिला है.

68.6% को माह में चार दिन की मिलती है छुट्टी :

रिपोर्ट में बताया गया है कि 40.9% में 13.1 को लिखना और पढ़ना आता है, जबकि 22.6% ने पांचवीं तक, 3.6% ने मैट्रिक और 1.5% ने इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की है. कम वेतन और शिक्षित होने के बाद भी 68.6% को महीना में मात्र चार दिन की छुट्टी मिलती है. अन्य साप्ताहिक अवकाश और एग्रीमेंट के अनुसार छुट्टी लेते हैं. 50%से अधिक घरेलू कामगार दोपहर का भोजन (उनके द्वारा ले जाकर) अपने नियोक्ता के घरों में खाते हैं, लेकिन वहां के किसी भी व्यंजन का उपयोग नहीं करते हैं.

फर्श पर बैठकर उनको खाना भी खाना पड़ता है. वहीं कुछ तो अपार्टमेंट की सीढ़ियों के नीचे खा लेते हैं. अगर इनके आर्थिक पहलू की बात की जाये, तो लगभग 85% घरों में काम करनेवालों का कच्चा घर है और अलग किचन नहीं है. इसके अलावा उनको पीने के लिए कुएं के पानी पर आश्रित रहना पड़ता है. उनके कार्य करने के समय का भी आकलन किया गया है, जिसमें 47.6% आराम नहीं कर पाते हैं.

70% को महीने में मात्र ‍~3,000

10% को महीने में ~4,000

20% को महीने में ~2,000 से भी कम मिल रहे हैं

40.9% घरेलू कामगार शिक्षित

59.1% घरेलू कामगार अशिक्षित पाये गये

67% के पास साइकिल और 10 % के पास टेलीविजन

रिपोर्ट की मानें तो घरेलू कामगारों की संपत्ति भी संतोषप्रद नहीं है. 67 फीसदी के पास साइकिल, 8 फीसदी के पास प्रेशर कुकर, 34 फीसदी के पास रेडियो, 10 फीसदी के पास टेलीविजन और लगभग 6 फीसदी के पास बिजली के पंखे हैं. इनकी सामाजिक स्थिति भी बेहतर नहीं है. ईंधन, बिजली और शौचालय की सुविधा भी ठीक से नहीं मिलती है. इनकी आय 81.8 फीसदी श्रम करके और 10.2 फीसदी कृषि से होती है. वहीं 1.5 फीसदी के पास व्यवसाय और 6.6 फीसदी के पास आय के अन्य स्रोत हैं.

झारखंड के घरेलू काम करने वालों की स्थिति पर हुई चर्चा

झारखंड एंटी ट्रैफिकिंग नेटवर्क और स्पार्क रांची द्वारा ‘झारखंड के घरेलू काम करने वालों की स्थिति’ पर चर्चा की गयी. कांटाटोली स्थित होटल कोरल ग्रैंड में आयोजित इस कार्यक्रम में सामाजिक कार्यकर्ता तारामणि साहू ने कहा कि अनुसूचित जातियों व जनजातियों के उत्थान के लिए सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों को मिलकर काम करना होगा

ऑक्सफैम इंडिया की सपना सुरीन ने कहा कि डोमेस्टिक वर्कर्स जब अपनी समस्याएं लेकर पुलिस अथवा सरकारी संस्थानों के पास जाते हैं तो उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है़ कई बार उनके ही चरित्र पर सवाल उठाया जाता है. वरिष्ठ पत्रकार मधुकर ने कहा कि इन्हें मदद की जरूरत है.

Posted by: Sameer Oraon

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