Birsa Munda 125th Death Anniversary : झारखंड के इन 6 पवित्र स्थलों का है ‘धरती आबा’ से गहरा नाता
Birsa Munda 125th Death Anniversary : झारखंड में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक रहे भगवान बिरसा मुंडा से जुड़े कई स्थल मौजूद हैं. ये जगहें झारखंड की आस्था और विरासत की स्थली है. धरती आबा से जुड़े इन पावन स्थलों में उलिहातू, डोंबारी बुरु, बंदगांव का संकरा गांव, चालकद, रांची जेल और बिरसा मुंडा की समाधी स्थल शामिल हैं.
Birsa Munda 125th Death Anniversary | रांची, आनंद मोहन/प्रवीण मुंडा: आज सभी झारखंडवासी ‘धरती आबा’ भगवान बिरसा मुंडा को उनके 125वें शहादत दिवस पर नमन कर रहे हैं. बिरसा मुंडा देश की आजादी के लिए शहादत देने वाले महानायक हैं, जो उलगुलान और साहस के प्रतीक पुरुष हैं. झारखंड में कई ऐसे स्थान हैं, जो भारत की आजादी और धरती आबा से जुड़े उनके अदम्य साहस की याद दिलाते हैं. हर झारखंडी के लिए ये पवित्र स्थल किसी धाम से कम नहीं हैं. ये जगहें झारखंड की आस्था और विरासत की स्थली है. 9 जून को भगवान बिरसा मुंडा के 125वें शहादत दिवस पर ‘प्रभात खबर’ धरती आबा और उनके संघर्षों से जुड़े स्थानों के बारे में बता रहा है.
1. उलिहातूः पावन स्थली, धरती आबा की जन्मस्थली
खूंटी जिले का उलिहातू गांव धरती आबा बिरसा मुंडा की जन्मस्थली है. जंगलों और पहाड़ों के बीच यह गांव एक वीर योद्धा भगवान बिरसा मुंडा से जुड़ा अति पावनस्थल है. इसे सजाने-संवरने और बुनियादी सुविधाओं को दुरुस्त करने की जरूरत है. यहां पर्यटकों के लिए जंगल-पहाड़ के सुंदर प्राकृतिक छटा आकर्षण का केंद्र होंगे. हाल के वर्षों में इसके विकास के लिए राज्य और केंद्र सरकार ने कई योजनाएं दी हैं. लेकिन वह पर्याप्त नहीं है. पर्यटकों के ठहरने के लिए समुचित व्यवस्था करने की जरूरत है. वहीं, गांव का सर्वांगीण विकास करना होगा.
2. चालकद: जुड़ी हैं यादें, बिरसा का गुजरा है बचपन
खूंटी जिले का एक गांव चालकद भी धरती आधा के जीवन की यादें समेटता है. कई किताबों में इस गांव का जिक्र है. यह गांव बिरसा मुंडा का ननिहाल है. इस गांव में बिरसा का बचपन गुजरा था. बिरसा मुंडा को अपने ननिहाल से काफी प्रेम था. आजादी की लड़ाई में इस गांव के लोगों ने बिरसा मुंडा के साथ बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. लेकिन, सरकार की नजरों से यह गांव ओझल है. इस गांव को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर बिरसा मुंडा को सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकती है. इसके माध्यम से उनके पारिवारिक विरासत के संबंध में हम दुनिया को बता सकते हैं.
3. डोंबारी बुरुः युद्ध भूमि, बिरसा व झारखंडी साहस का प्रतीक
डोंबारी बुरु, वह स्थान है, जो इतिहास के पन्नों में विशेष महत्व रखता है. यह अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध भूमि रहा. यह जगह बिरसा मुंडा के आंदोलन और झारखंडी साहस का प्रतीक स्थल है. यहां हजारों आदिवासियों ने तीर-धनुष और पारंपरिक हथियारों से लैस होकर अंग्रेजों के गोलियों का सामना किया. सैकड़ों आदिवासी पुरुष-महिला मारे गये. यह झारखंड का जालियांवाला बाग है, जो अंग्रेजी हुकूमत की बर्बर दास्तां कहता है. हालांकि, डोंबारी बुरु के पहाड़ को सरकार ने विकसित करने का प्रयास किया है. लेकिन इस पवित्र स्थान को बड़े पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की जरूरत है. चूंकि, डोंबारी बुरु बिरसा मुंडा से जुड़ी एक अहम जगह है.
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4. संकरा गांव: इसी गांव से हुई थी बिरसा की गिरफ्तारी
बंदगांव का संकरा गांव भी भगवान बिरसा मुंडा के संघर्ष और शौर्य की गाथा गाता है. घनघोर जंगल के बीच बसे इस गांव में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए बिरसा मुंडा छिपने पहुंचे थे. यह गांव चाईबासा से 65 किलोमीटर और चक्रधरपुर से करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. दुरुह क्षेत्र होने के कारण बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए इस गांव को चुना था. लंबे समय तक यह इलाका नक्सलवाद से प्रभावित रहा, जिस वजह से इस इलाके का विकास नहीं हुआ है. बिरसा मुंडा पर्यटन सर्किट में शामिल कर संकरा गांव का विकास किया जा सकता है.
5. रांची जेल : एक कमरा, जिससे जुड़ी है बिरसा की स्मृतियां
रांची के पुराने जेल से भगवान बिरसा मुंडा की कई स्मृतियां जुड़ी हैं. गिरफ्तारी के बाद बिरसा मुंडा को इसी जेल में लाया गया था. यहां एक छोटे से कमरे में बिरसा मुंडा ने अंतिम सांस ली थी. यह जेल अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचार और बिरसा मुंडा के संघर्ष की यादों को ताजा करती है. इस पुराने जेल को बिरसा मुंडा स्मृति पार्क का स्वरूप दिया जा चुका है. इसे संरक्षित किया जा रहा है. इस जेल को बिरसा मुंडा पर्यटन सर्किट में शामिल किया जा सकता है. अंडमान के सेल्युलर जेल की तरह हम अपने विरासत को संजोने का काम कर सकते हैं.
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6. समाधि स्थलः अब तक नहीं हो सका है ढंग से विकसित
रांची के कोकर-लालपुर रोड पर बिरसा मुंडा की समाधि स्थल स्थित है. यहां भगवान बिरसा मुंडा का अंतिम संस्कार किया गया था. इस समाधिस्थल को अब तक सही तरीके से विकसित नहीं किया गया. धरती आबा से जुड़े इस पावन स्थान को भव्य बनाते हुए राष्ट्रीय स्तर की पहचान देने की जरूरत है. बिरसा मुंडा पर्यटन सर्किट में यह स्थल मुख्य केंद्र बन सकता है. राजधानी रांची में होने की वजह से पर्यटकों को वहां आने में सुगमता भी होगी. साथ ही इससे रांची की पहचान भी देश-दुनिया में बढ़ेगी.
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