भारी बारिश के बाद क्या करें झारखंड के किसान, कृषि विभाग ने तैयार किया वैकल्पिक प्लान

Alternative Agriculture Plan: मानसून में हुई झमाझम और सामान्य से अधिक बारिश ने किसानों के साथ-साथ सरकार को भी परेशान कर दिया है. अत्यधिक बारिश को देखते हुए सरकार ने खेती-किसानी के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की सलाह CRIDA से मांगी थी. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के तहत काम करने वाले संस्थान ने झारखंड सरकार को अपनी अनुशंसा भेजी है. पूरी अनुशंसा यहां पढ़ें.

By Mithilesh Jha | July 20, 2025 6:05 AM

Alternative Agriculture Plan: मानसून के सीजन में 1 जून से 19 जुलाई के बीच 65 फीसदी से अधिक बारिश हो चुकी है. अत्यधिक बारिश की वजह से झारखंड में खेती काफी प्रभावित हुई है. मानसून की शुरुआत में बारिश से किसानों के चेहरे खिल उठे थे, लेकिन जब मानसून लगातार बरसने लगा, तो किसानों की चिंता बढ़ गयी. ऐसी स्थिति को देखते हुए झारखंड सरकार ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की संस्थान सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर ड्राइलैंड एग्रीकल्चर (सीआरआइडीए), हैदराबाद से एक रिपोर्ट तैयार करायी है.

CRIDA ने आकस्मिक उपायों की अनुशंसा की

रिपोर्ट में झारखंड के अधिकांश जिलों में हुई अत्यधिक बारिश की स्थिति (17 जुलाई 2025 तक) के तहत आकस्मिक उपायों की अनुशंसा की गयी है. संस्थान ने कहा है कि आकस्मिक उपायों को कृषि विभाग के प्रखंड स्तर के अधिकारी और कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) और अन्य अधिकारियों के बीच प्रकाशित और प्रसारित करें. इससे अधिक बारिश की स्थिति में भी अधिकतम क्षेत्र को कवर किया जा सकेगा.

मटर, अरहर आदि की बुवाई की दी सलाह

सीआरआइडीए ने अनुशंसा की है कि अगस्त और सितंबर में मटर जैसी आकस्मिक फसलों की खेती की जा सकती है. मध्यम अवधि परिपक्वता (180-190 दिन) वाली अरहर की किस्मों की बुवाई 7 सितंबर तक की जा सकती है. मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्रों (दोन-3) में जहां किसान आमतौर पर चावल की रोपाई करते हैं. वहां अरहर, मक्का, ज्वार और बाजरे की बुवाई 7 से 10 अगस्त तक मेढ़ और नाली विधि से कर सकते हैं. अत्यधिक संवेदनशील इलाकों में चावल की रोपाई के स्थान पर उचित निकाई-गुड़ाई प्रबंधन के साथ सीधी बुवाई वाले चावल (डीएसआर) की रोपाई की जा सकती है.

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मध्यम अवधि परिपक्वतावाली किस्म का उपयोग करें

सीआरआइडीए ने कहा है कि मध्यम और निचली भूमि में जहां धान का बिचड़ा तैयार है. वहां किसान पहले से ही चावल की रोपाई करते रहे हैं. भारी वर्षा की स्थिति में अंकुर खराब हो जाते हैं, तो अनुशंसित मात्रा में उर्वरक का उपयोग करके मध्यम अवधि परिपक्वता अवधिवाले धान का बिचड़ा तैयार किया जा सकता है. इससे किसान 7 से 10 अगस्त तक रोपा कर सकते हैं.

वैकल्पिक खेती के लिए की गयी अनुशंसाएं एक नजर में. फोटो : प्रभात खबर

झारखंड में है 4 प्रकार की भूमि

झारखंड में खेती योग्य 4 प्रकार की भूमि है. उच्चभूमि (टांड़), मध्यम उच्च भूमि (दोन-3) मध्यम भूमि (दोन-2) और निम्न भूमि (दोन-1). 10.0 लाख हेक्टेयर जमीन उच्च भूमि में आते हैं. मध्यम उच्च भूमि (दोन-3) में 7 लाख हेक्टेयर, मध्यम भूमि (दोन-2) में 5 लाख हेक्टेयर और निम्न भूमि (दोन) में 6 लाख हेक्टेयर जमीन है.

झारखंड में भरे हुए हैं नदी, तालाब और कुआं

जून और जुलाई में वर्षा सामान्य से 65 फीसदी अधिक हुई है. इसलिए झारखंड के कुआं, तालाब, नदी, बांध और जलाशय लबालब भरे हुए हैं. अगस्त और सितंबर 2025 में यदि सूखा पड़ता है, तो इस पानी का उपयोग जीवन रक्षक सिंचाई के रूप में किया जा सकता है. इस अतिरिक्त वर्षा का उपयोग रबी फसलों और तिलहन जैसे चना, मसूर, सरसों और अलसी की बुवाई के लिए भी की जा सकती है.

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