झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 : आरक्षण ही ओबीसी को लुभाने के लिए सबसे बड़ा हथियार

प्रो संजय कुमार लोकतंत्र में संख्या बल सबसे महत्वपूर्ण है. झारखंड समेत अन्य राज्यों में ओबीसी की संख्या बहुत ज्यादा है. एक धारणा बनी हुई है कि उच्च वर्ग एक खास पार्टी से जुड़ा हुअा है, वर्षों से इसका समर्थन भी करता आ रहा है. अगर आप उच्च वर्ग के आरक्षण की बात करते हैं, […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 5, 2019 6:56 AM
प्रो संजय कुमार
लोकतंत्र में संख्या बल सबसे महत्वपूर्ण है. झारखंड समेत अन्य राज्यों में ओबीसी की संख्या बहुत ज्यादा है. एक धारणा बनी हुई है कि उच्च वर्ग एक खास पार्टी से जुड़ा हुअा है, वर्षों से इसका समर्थन भी करता आ रहा है.
अगर आप उच्च वर्ग के आरक्षण की बात करते हैं, तो उसे भरोसा नहीं होता है. अगर हम देखें तो पिछले 10-15 वर्ष दलित व आदिवासियों के आरक्षण की बात नहीं हो रही है. हां समय-समय पर इनके क्रीमी लेयर को चर्चा हुई. ऐसे में इन तीनों वर्गों को कोई भी पार्टी अपने प्रस्ताव में रखने की कोशिश नहीं करती है. इन्हें लगता है कि मधुमक्खी के छत्ते में कौन हाथ डाले. अगर हम मतदाताओं को चार समूह में बांटते हैं तो इसमें दलित, अादिवासी, उच्च वर्ग व पिछड़ा वर्ग शामिल होता है. इसमें ओबीसी बड़ा वर्ग है.
लेखक विकासशील समाज अध्ययन संस्थान (सीएसडीएस) के प्रोफेसर हैं
अगर संख्या बल में देखेंगे तो झारखंड में ओबीसी की आबादी लगभग आधी है.
एेसे में राजनीतिक दलों की ओर से ओबीसी को लुभाने की कोशिश होती है. इनकी ओर से वादे किये जाते हैं कि सरकार में आयेंगे, तो आरक्षण का दायरा बढ़ायेंगे. किसी भी वर्ग को लुभाने के लिए आरक्षण ही सबसे बड़ा हथियार दिखायी देता है. अगर सुविधाएं जैसे बिजली, पानी, सड़क की बात करें तो इसे एक क्लास गरीब के लिए इंगित करना पड़ता है.
आरक्षण ही ऐसा विषय है, जिसमें जाति के आधार पर चर्चा की जा सकती है. लोगों की अलग-अलग पहचान होती है, लेकिन जाति की पहचान काफी शक्तिशाली होती है. चुनाव के समय यह और सशक्त हो जाती है. कुल मिला कर जाति की पहचान को उकसाने व लुभाने कोशिश की जा रही है, क्योंकि यह बड़ा समूह हैं. हालांकि, चुनाव में वोटिंग पैर्टन का क्या असर पड़ेगा, यह आने वाला वक्त बतायेगा. लेकिन इस विषय पर चर्चा से पार्टियों को कोई नुकसान होता नहीं दिखायी देता है.

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