झारखंड की राजनीति का फ्लैश बैक : एक ऐसा चुनाव जिसमें पुत्र ने पिता को ही हरा दिया था

अनुज कुमार सिन्हा झारखंड के राजनीतिक इतिहास में कुछ ऐसे अवसर आये हैं, जब पिता आैर पुत्र ने एक ही चुनाव में अलग-अलग क्षेत्र से चुनाव ताे लड़ा है लेेकिन एक ही सीट पर पिता आैर पुत्र एक-दूसरे के खिलाफ सिर्फ एक बार मैदान में उतरे हैं. वह भी 1952 के पहले विधानसभा चुनाव में, […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 13, 2019 7:11 AM

अनुज कुमार सिन्हा

झारखंड के राजनीतिक इतिहास में कुछ ऐसे अवसर आये हैं, जब पिता आैर पुत्र ने एक ही चुनाव में अलग-अलग क्षेत्र से चुनाव ताे लड़ा है लेेकिन एक ही सीट पर पिता आैर पुत्र एक-दूसरे के खिलाफ सिर्फ एक बार मैदान में उतरे हैं.

वह भी 1952 के पहले विधानसभा चुनाव में, जब झारखंड बिहार का हिस्सा था. जुगसलाई सह पाेटका विधानसभा सीट के लिए चुनाव हाे रहा था. कांग्रेस ने ऐसा संकेत दिया था कि टाटा कंपनी के फूलचंद राम काे मैदान में उतार सकती है. वह समय था जयपाल सिंह का. झारखंड पार्टी का बाेलबाला था.

जयपाल सिंह प्रत्याशियाें के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए खुद जमशेदपुर आये थे. वहां उन्हें जानकारी मिली कि फूलचंद चुनाव लड़नेवाले हैं. जयपाल सिंह की खासियत थी कि वे खुद सबसे पूछ कर एक-एक प्रत्याशी का चयन करते थे आैर हर सीट की रणनीति बनाते थे. उन्हाेंने अपने समर्थकाें से पूछा कि अगर फूलचंद चुनाव लड़ते हैं ताे उन्हें काैन हरा सकता है, उसका नाम बताइए. जयपाल सिंह काे बताया गया कि फूलचंद काे उनका पुत्र कैलाश प्रसाद हरा सकते हैं, अगर वे चुनाव लड़ने के लिए तैयार हाे जायें.

एक बार ताे जयपाल सिंह भी चाैंक गये थे, क्याेंकि पिता के खिलाफ पुत्र काे मैदान में उतारने के लिए राजी करना आसान नहीं था.

जयपाल सिंह ने कैलाश प्रसाद काे बुलवाया आैर पूछा कि चुनाव लड़ने की इच्छा है? क्या तुम अपने पिता के खिलाफ चुनाव मैदान में मेरी पार्टी से उतर सकते हाे. कैलाश प्रसाद काे समझाया गया आैर वे चुनाव लड़ने के लिए मान गये. जब फूलचंद काे पता चला कि उनका पुत्र ही उनके खिलाफ चुनाव लड़ने काे तैयार हाे गया है ताे उन्हें दुख हुआ. पहले मनाने का प्रयास किया. नहीं मानने पर सिर्फ इतना ही कहा कि इससे हमारे संबंधाें पर असर पड़ेगा.

कैलाश प्रसाद ने इसकी चिंता नहीं की आैर चुनाव मैदान में उतर गये. इस बीच एक घटना घटी. कांग्रेस ने सारे हालात काे जान कर फूलचंद काे टिकट नहीं दिया. फूलचंद वसूल आैर जुबान के पक्के थे. उन्हाेंने अपने समर्थकाें से कहा कि जब उन्हाेंने चुनाव लड़ने की घाेषणा कर दी है ताे हर हाल में चुनाव लड़ेंगे, चाहे बेटे के खिलाफ निर्दलीय ही क्याें नहीं लड़ना पड़े. कैलाश प्रसाद ने झारखंड पार्टी (मुर्गा छाप) से चुनाव लड़ा.

पिता फूलचंद निर्दलीय लड़े. कैलाश प्रसाद चुनाव जीत गये. चुनाव में पुत्र ने पिता काे पराजित कर दिया था. कुल 15 प्रत्याशी मैदान में थे. पिता फूलचंद काे सिर्फ 887 वाेट मिले जबकि पुत्र कैलाश प्रसाद 12245 वाेट लाकर चुनाव जीत कर पहले विधायक हाेने का गाैरव हासिल किया. चुनाव में पिता आैर पुत्र के बीच जाे दूरी बनी, वह चुनाव के बाद भी बनी रही.

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