खंडहर में बदल रहा सांस्कृतिक धरोहर, युवाओं के बिखरे सपने
2016 में तत्कालीन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने सोनाधानी गांव में आदिम जनजाति पहाड़िया युवाओं के लिए कला संस्कृति भवन का उद्घाटन किया था। करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद नौ साल बाद यह भवन उपयोगविहीन होकर खंडहर बन चुका है
तत्कालीन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने 2016 में कला संस्कृति भवन का किया था उद्घाटन नौ साल बाद भी उपयोगविहीन बनकर रह गया भवन सुजित मंडल, लिट्टीपाड़ा. जिस भवन से आदिम जनजाति पहाड़िया युवक-युवतियों की कला को नई दिशा देने की कल्पना की गई थी, वही भवन अब खंडहर का रूप ले चुका है. करोड़ों रुपये की लागत से बना कला सांस्कृतिक भवन, जो सोनाधानी गांव के फुटबॉल मैदान में स्थित है, आज उपयोगहीन साबित हो रहा है और स्थानीय लोगों के लिए निराशा का कारण बन गया है. ग्रामीणों का कहना है कि लाखों रुपये खर्च होने के बावजूद भवन का कोई लाभ नहीं मिल पाया है. बैदा पहाड़िया, सोनिया पहाड़िया, जबरा पहाड़िया और समिएल पहाड़िया सहित कई लोगों ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए बताया कि अगर सरकार और प्रशासन ने समय रहते ध्यान दिया होता तो यहां के आदिवासी युवक-युवतियों की प्रतिभा निखरती और वे झारखंडी कला को देश-विदेश में प्रदर्शित कर पाते. 11 अप्रैल 2016 को तत्कालीन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने इस भवन का उद्घाटन किया था. उस समय ग्रामीणों और युवाओं को अनेक सपने दिखाए गए थे. लोगों को विश्वास हुआ था कि अब उनके बच्चों को कला का प्रशिक्षण मिलेगा और उनकी प्रतिभा को मंच मिलेगा. लेकिन विभागीय लापरवाही और प्रशासनिक उदासीनता ने उन सपनों को चकनाचूर कर दिया है. गोदाम बनकर रह गया लाखों का कला संस्कृति भवन आज यह भवन गोदाम के रूप में इस्तेमाल हो रहा है. स्थानीय कलाकारों की प्रतिभा धीरे-धीरे कुंद होती जा रही है और क्षेत्र की जनता खुद को ठगा हुआ महसूस कर रही है. यह केवल एक भवन की बर्बादी नहीं, बल्कि उन उम्मीदों का पतन है जो कभी यहां के लोगों के दिलों में जगी थीं. स्थानीय कलाकारों को मिलता मंच, बनती पहचान जन समस्याओं का बोझ पहले से ही ग्रामीणों को परेशान कर रहा है. रोजगार के अवसरों की कमी, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, इन सबके बीच कला संस्कृति भवन का बेकार होना लोगों के लिए दोहरी मार जैसा है. यह भवन यदि सही तरीके से उपयोग में लाया जाता तो न केवल स्थानीय कलाकारों को मंच मिलता बल्कि क्षेत्र की पहचान भी मजबूत होती. आज जरूरत है कि सरकार और प्रशासन इस पर गंभीरता से ध्यान दें. भवन को पुनर्जीवित कर स्थानीय कलाकारों को प्रशिक्षण और अवसर प्रदान किए जाएं. तभी इस क्षेत्र की कला और संस्कृति को बचाया जा सकेगा और आदिवासी युवक-युवतियों की प्रतिभा को नयी उड़ान मिल पायेगी.
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