महलान पत्ते और रस्सी ने बदली किस्को-पेशरार के ग्रामीणों की किस्मत
महलान पत्ते और रस्सी ने बदली किस्को-पेशरार के ग्रामीणों की किस्मत
किस्को़ पेशरार के रोरद पंचायत के ग्रामीण आत्मनिर्भरता की मिसाल बन चुके हैं. यहां के लोगों ने जंगलों में मिलने वाली विशेष वन उपज महलान (लौ) के पत्ते और रस्सी को अपनी आजीविका का मजबूत आधार बना लिया है. पहले ग्रामीण सखुआ पत्ता और दातून बेचकर जीविका चलाते थे, लेकिन अब महलान के पत्ते और रस्सी की बिक्री झारखंड के साथ-साथ देश के कई हिस्सों में होने लगी है. गढ़वा, वेल्लोर सहित विभिन्न क्षेत्रों के व्यापारी गांव आकर पत्ते खरीद ले जाते हैं, जिससे ग्रामीणों की आमदनी बढ़ी है. पहाड़ी जंगलों से महलान पत्ता तोड़ने वाले ग्रामीण अब आर्थिक रूप से सशक्त हो रहे हैं. उन्होंने अपने अनुभव से इसे एक व्यवस्थित आय स्रोत का रूप दे दिया है. ग्रामीणों ने बताया कि पत्ते से बरसात में गूंगु और दोना-पत्तल बनाये जाते हैं. गूंगु बारिश से बचने के लिए पहाड़ी इलाकों में उपयोगी होते हैं, वहीं दोना-पत्तल की मांग लगातार बढ़ रही है. पत्ता 35 रुपये प्रति किलो और रस्सी 30 रुपये प्रति किलो की दर से खरीदी जा रही है. वृक्ष की छाल से खास प्रकार की रस्सी बनाते हैं : ग्रामीण सुबह सूरज निकलने से पहले जंगल की ओर निकल पड़ते हैं. पत्ते तोड़कर सुखाये जाते हैं और व्यापारी घर आकर भुगतान कर पत्ते खरीद लेते हैं. पत्तों को सुरक्षित रखने के लिए वे जंगल से लायी गयी वृक्ष की छाल से खास प्रकार की रस्सी बनाते हैं. यह रस्सी मजबूत होती है, दीमक नहीं लगती और इसका भी अच्छा मूल्य मिलता है. पत्ता लंबे समय तक सुरक्षित रहता है. ग्रामीणों का मुख्य रोजगार बना : महलान पत्ता और रस्सी तोड़ना अब ग्रामीणों के लिए मुख्य रोजगार बन चुका है. गांव के अधिकतर परिवार इसी कार्य से सालभर अच्छी कमाई कर लेते हैं. इससे घर-गृहस्थी चलाने के साथ-साथ बच्चों की पढ़ाई और अन्य जरूरतें भी पूरी हो जाती हैं. ग्रामीणों का कहना है कि अगर प्रशासन क्षेत्र में दोना-पत्तल बनाने का केंद्र खोल दे, तो कमाई और बढ़ेगी और अधिक लोग आत्मनिर्भर बन सकेंगे.
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