100 साल पुराने चीड़ के जंगलों में सिमटी है नेतरहाट के पहाड़ों की रानी की खूबसूरती
100 साल पुराने चीड़ के जंगलों में सिमटी है नेतरहाट के पहाड़ों की रानी की खूबसूरती
बेतला़ झारखंड के पर्यटन स्थलों में सर्वाधिक पसंदीदा पलामू प्रमंडल का नेतरहाट चीड़ (पाइन) के जंगल के लिए भी प्रसिद्ध है. वैसे तो प्रकृति ने इसे घने साल (सखुआ) के वृक्षों के वनों से नवाजा है. लेकिन चीड़ के जंगल (पाइन फॉरेस्ट) भी यहां के आन-बान और शान हैं. ये हिमालयन वृक्ष यहां उसी रूप में पाये जाते हैं जैसे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर आदि हिमालयी क्षेत्रों अथवा मेघालय, मणिपुर, नागालैंड के जंगलों में हैं. अपनी सुई जैसी पत्तियों और शंकुओं के लिए प्रसिद्ध चीड़ के जंगल से भरा नेतरहाट मैग्नोलिया प्वाइंट (सनसेट प्वाइंट), सनराइज प्वाइंट सहित वाटरफॉल के बाद प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है. यहां पहुंचने वाले पर्यटक इसे देखे बगैर नहीं लौटते हैं. उन्हें हिमालय क्षेत्र में होने का एहसास होता है. लोग पैदल यात्रा के दौरान इस जंगल का आनंद लेते हैं. ये जंगल ठंडी जलवायु और प्राकृतिक सुंदरता के कारण पर्यटकों को आकर्षित करते हैं इनके मौजूदगी से नेतरहाट पूरा साल न केवल कूल-कूल रहता है बल्कि इसकी खूबसूरती में चार-चांद लगा जाता है. 100 साल पहले अंग्रेजों ने लगाया था चीड़ का वृक्ष : ब्रिटिश शासन काल में नेतरहाट की खूबसूरती बढ़ाने को लेकर अंग्रेजों ने इस हिमालयन वृक्ष को लगवाया था. छोटानागपुर पठार की सबसे ऊंची चोटी होने के कारण नेतरहाट झारखंड का सर्वाधिक ठंडा इलाका है. इसलिए चीड़ का वृक्ष यहां की आबो-हवा में तीव्र गति से वृद्धि कर विकसित हो गया. बताया जाता हैं कि 1920 के आसपास नेतरहाट के अलावा महुआडांड़ के ओरसा, रूद रेस्ट सहित अन्य जगहों पर लगाया गया था. 100 वर्ष पहले लगाये गये यह पौधे काफी विशाल हो चुके हैं.चीड़ के पेड़ों में फरवरी से लेकर अप्रैल तक इनमें फूल लगते हैं. इनके बीज भी सेमल के बीज की तरह ही हवा में उड़ते हैं और एक जगह से दूसरे जगह तक आसानी से चले जाते हैं. चीड़ के पेड़ों की औसत ऊंचाई 25 मीटर तक होती है. नेतरहाट की मीठी नाशपाती भी है अलग पहचान : नेतरहाट की मीठी नाशपाती भी यहां की अलग पहचान बनाती है. नेतरहाट की जलवायु नाशपाती की खेती के लिए काफी उपयुक्त है. इस कारण यहां सरकारी और निजी बागानों में इसकी खूब पैदावार होती है. यहां की नाशपाती झारखंड के अलावा बिहार, पश्चिम बंगाल, दिल्ली और महाराष्ट्र जैसे राज्यों तक जाती है. 1980 के दशक से यहां बड़े पैमाने पर नाशपाती की खेती की जा रही है, जिससे प्रति वर्ष हजारों क्विंटल फल का उत्पादन होता है.
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