झारखंड में ताइवानी नस्ल के पपीते की खेती कर रहे युवा किसान, कम लागत में ऐसे पाएं अधिक मुनाफा

लातेहार के युवा किसान उज्ज्वल लकड़ा ने एसएच-9 के किनारे अपनी एक एकड़ जमीन में ताइवान नस्ल का छह सौ पपीता का पौधा लगाया है. पपीता अक्टूबर माह में तैयार हो जाएगा. उन्होंने कोलकाता से पपीता का पौधा लाया है और वैज्ञानिक तरीके से खेती कर रहे हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 9, 2021 2:39 PM

Jharkhand News, लातेहार न्यूज (वसीम अख्तर) : झारखंड के लातेहार जिले के महुआडांड़ प्रखंड की धरती पर ताइवान नस्ल का पपीता उगने लगा है. इस प्रखंड क्षेत्र के युवा किसान उज्ज्वल लकड़ा ने परंपरागत खेती से हटकर ताइवान नस्ल के पपीते की खेती की है. बहेराटोली गांव में ताइवान नस्ल के पपीता का पौधा फल देने लगा है. लागत के अनुपात में अधिक उत्पादन के आसार को देखते हुए युवा किसान खासा उत्साहित हैं. कोलकाता से पौधा लाकर व वैज्ञानिक तरीके से पपीते की उन्नत नस्ल रेड लेडी ताइवान-786 की खेती की जा रही है.

बहेराटोली के युवा किसान उज्ज्वल लकड़ा ने एसएच-9 के किनारे अपनी एक एकड़ जमीन में ताइवान नस्ल का छह सौ पपीता का पौधा लगाया है. पपीता अक्टूबर माह में तैयार हो जाएगा. जानकार बताते हैं कि ताइवानी नस्ल के पपीते की खेती में काफी मुनाफा है. पपीता के पौधे की ऊंचाई दो से तीन फीट तक होती है. पौधा लगाने के तीन माह बाद फसल आने लगता है और पूरे आठ माह के बाद फसल तैयार हो जाती है. एक पेड़ डेढ़ साल तक फसल देता है जिसमें लगभग ढाई से तीन क्विंटल पपीता का फल निकलता है.

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उज्ज्वल लकड़ा ने बताया कि रांची में रहकर टीटीसी की तैयारी कर रहे थे. कॉलेज में 2018-2020 का सत्र था. इस दौरान देश में कोरोना का संकट आ गया. पूरे देश में लॉकडाउन लग जाने के कारण परीक्षा भी नहीं हुई. बाद में मैं अपने गांव लौट आया. घर में बैठे रहने के कारण उसके बहनोई (कृषि विभाग रांची से जुड़े हैं) ने पपीता की खेती के लिए मुझे सलाह दी. वर्ष 2018-19 में मनरेगा के तहत एक एकड़ में आम बागबानी भी मिली. मनरेगा से सिंचाई के लिए कुआं बनाया, लेकिन दूसरी खेती में अधिक फायदा नहीं होने पर मैंने कृषि विज्ञान केंद्र, रांची से मार्गदर्शन प्राप्त कर पपीता की खेती करने का विचार किया.

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रांची में तकनीकी मार्गदर्शन प्राप्त कर पपीता की उन्नत किस्म रेड लेडी ताइवान-786 का पौधा लगाया. सिंचाई के लिए टपक विधि को अपनाया. 60 रुपये में एक पौधा कोलकाता से लाया था. इस तरह 36 हजार का पौधा लगाया था जिसमें 120 पौधा मर गया. सिंचाई व खाद में लगभग 25 से 30 हजार रूपये का खर्च आया. वर्तमान में जो पौधा है उसमें काफी मात्रा में पपीता का फल लगा है. पपीता की बिक्री के लिए रांची, छत्तीसगढ़ और बंगाल में इसका मुख्य बाजार है. उज्जवल ने बताया कि बाजार में ताइवान के कच्चे पपीते की अधिक खपत है. वर्तमान में पपीता की कीमत 10 से 30 रुपये प्रति किलो है.

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इस संबंध में अनुमंडल पदाधिकारी नित निखिल सुरीन ने कहा कि प्रखंड क्षेत्र में इस तरह की खेती का अच्छा भविष्य नजर आ रहा है. प्रखंड के युवा किसान इस ओर अग्रसर हैं. यह खुशी की बात है. ऐसे किसानों को हर संभव मदद किया जाएगा.

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Posted By : Guru Swarup Mishra

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