राधा कुंड की उत्पति व महिमा व अरिष्टासुर राक्षस के वध की सुनायी कथा

कथावाचक ने कहा कि श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा के अरिता नामक गांव में राधाजी का कुंड है. कई लोगों का मानना है कि ये स्थान गोवर्धन पर्वत की तलहटी में स्थित है.

By BINAY KUMAR | November 30, 2025 11:17 PM

बिंदापाथर. बिंदापाथर में सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा सह भारत माता मेला के पांचवें दिन नवद्वीप धाम के कथावाचक मुकुंद दास अधिकारी ने श्रीमद् भागवत कथा में राधा कुंड की उत्पति व महिमा एवं अरिष्टासुर राक्षस का वध आदि का प्रसंग सुनाया. कथावाचक ने कहा कि श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा के अरिता नामक गांव में राधाजी का कुंड है. कई लोगों का मानना है कि ये स्थान गोवर्धन पर्वत की तलहटी में स्थित है. ये वही पर्वत है जिसे श्रीकृष्ण ने देवराज इंद्र के प्रकोप से नगरवासियों को बचाने के लिए अपनी छोटी अंगुली से उठाया था. राधा के कुंड के अलावा अरिता गांव में श्रीकृष्ण का भी कुंड है. दोनों कुंड आसपास हैं. कहते हैं कि जो व्यक्ति राधा कुंड में स्नान करता है, उसे श्रीकृष्ण के कुंड में भी डुबकी लगानी चाहिए अथवा दर्शन करने चाहिए. इन दोनों कुंडों पर मांगी गयी मुराद हमेशा पूरी होती है. श्रीकृष्ण पर गो हत्या का पाप लगा था. इसका प्रायश्चित करने के लिए राधाजी ने अपने कंगन से एक कुंड खोदा था जिसे राधा कुंड कहा जाता है. वहीं श्रीकृष्ण ने भी अपनी बांसुरी के ज़रिए एक और कुंड बनाया, जिसे श्याम कुंड कहा जाता है. दोनों कुंड एक-दूसरे के पास हैं. मान्यताओं के अनुसार श्रीकृष्ण और राधाजी ने स्नान के बाद रासलीला की थी. उनके इस मोहक रूप को देख देवी-देवता समेत नर-नारी सभी मंत्रमुग्ध हो गए थे. श्रीकृष्ण एवं राधाजी की सुंदरता सभी के मन को शांति देती है. कहा जाता है कि आज भी अष्टमी की रात्रि को श्रीकृष्ण एवं राधाजी रास रचाते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रीकृष्ण गोवर्धन में गाय चराते समय बांसुरी बजाया करते थे एवं रास रचाते थे. तभी एक दिन अरिष्टासुर नाम का राक्षस गाय के बछड़े के रूप में आ गया और श्रीकृष्ण पर हमला कर दिया. तभी श्रीकृष्ण ने उस असुर का वध कर दिया, लेकिन असुर बछड़े के वेश में था, इसलिए श्रीकृष्ण पर गौ हत्या का पाप लगा. मान्यता है कि श्रीकृष्ण को पाप से मुक्त कराने के लिए राधाजी ने कुंड बनाने का उपाय बताया. कुंड के निर्माण के बाद दोनों ने स्नान किया. ऐसा करते ही श्रीकृष्ण के पाप नष्ट हो गए. तभी से ये दोनों कुंड बहुत पवित्र माने जाते हैं. इनमें डुबकी लगाने से लोगों के कष्ट दूर हो जाते हैं. कुंड में स्नान के बाद राधाजी एवं श्रीकृष्ण रास रचा रहे थे. ये महारास कई दिनों तक चली. तभी श्रीकृष्ण ने रासलीला से प्रसन्न होकर राधा से कोई भी वरदान मांगने को कहा. राधाजी ने कहा कि वह चाहती हैं कि जो भी इस दिन राधा कुंड में स्नान करे, उसे संतान की प्राप्ति हो. तभी श्रीकृष्ण ने उनकी इस मनोकामना को पूर्ण करने का वरदान दिया. इस बात का उल्लेख ब्रह्मपुराण व गर्ग संहिता में भी देखने को मिलता है. कहा जाता है कि राधा कुंड के निर्माण से पहले यह स्थान अरिष्टासुर नामक राक्षस के अधीन थी. वह इतना बलशाली था कि उसकी दहाड़ मात्र से गर्भवती महिलाओं के गर्भ गिर जाते थे. इससे ब्रजवासी बहुत परेशान थे. इसी समस्या को दूर करने के लिए श्रीकृष्ण ने इस असुर का वध किया था और राधाजी ने संतान प्राप्ति का वरदान मांगा था. मौके पर क्षेत्र से काफी संख्या में श्रद्धालुओं ने पहुंच कर श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण किया.

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