झारखंड के इन गांवों के ग्रामीण चेहरे को मच्छरदानी से ढकने को मजबूर, 20 हजार की आबादी का जीना हुआ दूभर

बंगाल और ओडिशा से सटे पूर्वी सिंहभूम के पहाड़ों में बसे गांवों में मक्खियां मुसीबत बनीं है. घाटशिला अनुमंडल क्षेत्र के 100 से अधिक गांवों में मक्खियों का आतंक होन से 20 हजार की आबादी का जीना दूभर हो गया है. ग्रामीण चेहरे पर मच्छरदानी के टुकड़े बांध दिनभर रहने को मजबूर हैं.

By Prabhat Khabar Print Desk | May 9, 2023 5:27 PM

घाटशिला (पूर्वी सिंहभूम), मो परवेज/अनूप साव : पूर्वी सिंहभूम जिला अंतर्गत घाटशिला अनुमंडल के गांवों में मक्खियों ने नाक में दम कर रखा है. ग्रामीणों का जीना दुश्वार कर दिया है. दिन हो या रात मक्खियों की भनभनाहट इनका पीछा नहीं छोड़ती. नौबत यहां तक आ गयी है कि ग्रामीण मक्खियों से बचने के लिए अपने चेहरे को मच्छरदानी के टुकड़े या पतले कपड़े से ढक कर दैनिक कामकाज कर रहे हैं. दिन हो या रात मच्छरदानी में बैठकर खाना खाते हैं. बच्चे मच्छरदानी के अंदर पढ़ाई करने को मजबूर हैं. चेहरा ढक कर स्कूल जा रहे हैं और खेलकूद कर रहे हैं. यानी इनकी जिंदगी मच्छरदानी में सिमट कर रह गयी है. बंगाल और ओडिशा सीमा से सटे घाटशिला के बीहड़ जंगलों में स्थित इन गांवों के लोगों के लिए ये मक्खियां बीते एक महीना से नयी मुसीबत बन गयी हैं. अनुमंडल के पहाड़ों पर स्थित 100 से अधिक गांवों की लगभग 20 हजार आबादी इससे परेशान है. तकरीबन एक महीना से इन लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी तबाह हो चुकी है.

वन और स्वास्थ्य विभाग बेखबर

शिकायत के बाद भी प्रशासन-शासन की ओर से कोई समाधान नहीं निकाला जा रहा है. इसका असर यह है कि लोग बीमार रहने लगे हैं. स्वास्थ्य विभाग की ओर से भी कोई पहल नहीं की जा रही है. गौरतलब हो कि अभी केंदू पत्ता, महुआ, चार बीज, साल पत्ता का मौसम है. यहां के बीहड़ जंगलों में हर दिन करीब 10 हजार से अधिक ग्रामीण मौसमी फलों को चुनने के लिए जाते हैं, लेकिन मक्खियों के आतंक के कारण इन्होंने जंगल जाना कम कर दिया है. लेकिन रोजी-रोटी के कारण ये जंगल जाने को मजबूर हैं. ऐसे में ग्रामीण चश्मा पहनकर या फिर मच्छरदानी, पतला कपड़ा व गमछा से चेहरा ढककर जंगल जाते हैं. इससे वन और स्वास्थ्य विभाग बेखबर है. डुमरिया और गुड़ाबांदा के गांवों के लोगों ने बताया कि छोटी-छोटी मक्खियां समूह में रहती हैं. ये अचानक चेहरे के पास आकर भिनभिनाने लगती हैं और फिर आंखों पर हमला बोलती हैं. दिन में इनका हमला अधिक होता है. रात में प्रकोप कम होता है.

ज्यादा प्रभावित गांव

– बाघुड़िया पंचायत में गुड़ाझोर, मिर्गीटांड़, डुमकाकोचा, नरसिंहपुर, चाड़री, पहाड़पुर गांव.

– डुमरिया प्रखंड के मारांगसोंगा, सातबाखरा, पितामहली, कलियाम, पलासबनी, चीटामाटी गांव.

– एमजीएम थाना क्षेत्र की दलदली पंचायत के सभी गांव.

– गुड़ाबांदा के आठ पंचायतों के गांव

– घाटशिला की झाटीझरना और तालचिती पंचायत के सभी गांव

– चाकुलिया और धालभूणगढ़ के उत्तरी इलाके के पहाड़ी गांव.

Also Read: झारखंड : झामुमो विधायक लोबिन हेंब्रम ने फिर हेमंत सरकार को घेरा, 30 जून से आंदोलन का ऐलान

चेहरा नहीं ढकने पर सांस लेना मुश्किल

बाघुड़िया पंचायत के मंगल सिंह, ग्राम प्रधान रामचद्र सिंह, सुनील सिंह का कहना है कि महीनों से परेशान हैं. जंगल जाने से मक्खियां आंख, मुंह और नाक में घुस जाती हैं. चेहरा नहीं ढकने पर सांस लेना मुश्किल हो जाता है.

झड़-तूफान नहीं आने से मक्खियों का प्रकोप, पर्यावरण में परिवर्तन भी वजह

ग्रामीणों के अनुसार, अप्रैल और मई में झड़-तूफान नहीं आने से मक्खियों का प्रकोप बढ़ा है. झड़-तूफान आने से मक्खियों का तांडव खत्म होगा. उनका कहना है कि अप्रैल-मई में झड़-तूफान आने से मक्खियां कम हो जाती थीं. पहले इतनी बड़ी तादाद में मक्खियां नहीं होती थीं. इस बार करोड़ों की संख्या में मक्खियां हैं. कृषि और मौसम वैज्ञानिक इसे बदलते पर्यावरण संकट के रूप में देख रहे हैं

ग्रामीण आशंकित…सुखाड़-महामारी का संकेत तो नहीं

ग्रामीणों ने बताया कि मार्च से मक्खियों का प्रकोप बढ़ा है. धीरे-धीरे इतना बढ़ गया कि घर से निकलना मुश्किल हो गया है. दिन में सड़कें सुनसान हो जाती हैं. हर कोई चेहरे पर मच्छरदानी का टुकड़ा बांध कर निकलता है. ग्रामीणों ने अपने स्तर पर जुगाड़ निकाल लिया है. ग्रामीण इन मच्छरों से परेशान हैं. इनकी समस्या को दूर करने के लिए अबतक कोई आगे नहीं आया है. ग्रामीणों का कहना है कि यह सुखाड़ व महामारी के संकेत है.

Also Read: Photos: सीएम हेमंत ने संताली साहित्यकार रघुनाथ मुर्मू को दी श्रद्धांजलि, कहा- इनके योगदान को कभी नहीं भूल सकते

मौसम वैज्ञानिक बोले-पर्यावरण संकट से समस्या

मौसम वैज्ञानिक, दारीसाई के विनोद कुमार ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से कई सारी समस्याएं आ रही हैं. मक्खियों का प्रकोप इसी समस्या में से एक है. पर्यावरण संकट के कारण यह हो रहा है. लोग पर्यावरण संरक्षण और वर्षा जल संचय पर ध्यान नहीं देंगे, तो आने वाले समय में और कई संकटों से गुजरना होगा.

इंफेक्शन का डर

इस संबंध में घाटशिला के चिकित्सा प्रभारी डॉ शंकर टुडू ने कहा कि मौसमी प्रकोप के कारण मक्खियों का आतंक बढ़ा है. बारिश और तूफान आने से स्वत: नष्ट हो जाएगा. मक्खियां इंसानों और जानवरों के लिए खतरनाक रोग फैलाने वाले जीवाणु फैलाती हैं. इससे इंफेक्शन का डर है. आंख में जलन और दर्द की शिकायत हो सकती है. इसे भगाने के लिए कोई छिड़काव का साधन भी नहीं होता है. साफ-सफाई बना कर रखने से ही मक्खियों को भगाया जा सकता है.

Next Article

Exit mobile version