Azadi Ka Amrit Mahotsav: शिवप्रसाद ने अंग्रेजों का किया था विरोध, गंवायी थी नौकरी

हम आजादी का अमृत उत्सव मना रहे हैं. भारत की आजादी के लिए अपने प्राण और जीवन की आहूति देनेवाले वीर योद्धाओं को याद कर रहे हैं. आजादी के ऐसे भी दीवाने थे,जिन्हें देश-दुनिया बहुत नहीं जानती वह गुमनाम रहे और आजादी के जुनून के लिए सारा जीवन खपा दिया. झारखंड की माटी ऐसे आजादी के सिपाहियों की गवाह रही.

By Contributor | August 6, 2022 9:00 AM

Azadi Ka Amrit Mahotsav: कई स्वतंत्रता सेनानी ऐसे भी हैं, जिनकी ज्यादा चर्चा नहीं होती, लेकिन उनका स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान रहा. इन्हीं लोगों में से एक थे एकीकृत हजारीबाग जिले के कोडरमा से शिवप्रसाद लाल (पिता स्व. खीरोधर लाल). उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष का बिगुल फूंका था.

स्वतंत्रता सेनानी शिवप्रसाद लाल के पुत्र नागेंद्र कुमार ने बताया कि उनके पिताजी स्वतंत्रता की लड़ाई के बारे में बताते थे. शिवप्रसाद कोडरमा की माइका कंपनी छट्ठू राम-होरिल राम में मैनेजर के पद पर थे. तब गांधी जी के आह्वान पर वह भी आंदोलन में कूद पड़े थे. सविनय-अवज्ञा, भारत छोड़ो और विदेशी कपड़ों का बहिष्कार जैसे आंदोलन में शरीक हुए. कोडरमा की माइका कंपनी के मजदूरों को संगठित कर आंदोलन को आगे बढ़ाने में कामयाब होने लगे.

नागेंद्र ने बताया कि उनके पिताजी ने उनसे घटना का जिक्र करते हुए बताया था कि वह मजदूर साथियों के साथ मिलकर गांधीजी के आंदोलन को मजबूत करने और गति देने का काम कर रहे थे. तब अंग्रेज पदाधिकारी स्वतंत्रता आंदोलन को कमजोर करना चाह रहे थे. अंग्रेज पदाधिकारियों ने माइका कंपनी के मालिक पर दबाव बनाकर शिव प्रसाद लाल को नौकरी से निष्कासित करा दिया. लेकिन उसके बाद भी उनका हौसला बुलंद था. वे अंग्रेजों की धमकी से कभी नहीं डरते थे. शिव प्रसाद नौकरी जाने के बाद कोडरमा छोड़ कर मुंगेर चले गये. वहां भी असहयोग आंदोलन और नमक सत्याग्रह की गतिविधियों में हिस्सा लेते रहे. अंग्रेजी हुकूमत ने उनको गिरफ्तार कर छह माह के लिए जेल भेज दिया. वह देश को आजादी दिलाने की जिद पर अड़े रहे. शिक्षक के रूप में बच्चों को पढ़ाने लगे : अपनी स्मृतियों को ताजा करते हुए नागेंद्र कुमार ने बताया कि आजादी के बाद उनके पिताजी ने राजनीति छोड़ दी. वह शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ गये. शिक्षक रूप में वह बिहार के शेखपुरा जिला के बरबिगहा महात्मा गांधी आदर्श उवि में बच्चों को पढ़ाने लगे. उन्होंने 1970 तक इसी स्कूल में अपना योगदान दिया. 11 जून 1980 ई. को उनका निधन बिहार के अपने गांव बरबिगहा में हो गया.

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हाथों मिला था ताम्रपत्र

नागेंद्र कुमार ने बताया कि 1972 में जब आजादी की 25वीं वर्षगांठ देशभर में मनायी जा रही थी, तो उस समय स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित किया जा रहा था. इसमें उनके पिता शिवप्रसाद लाल को भी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हाथों ताम्र पत्र भेंट कर सम्मानित किया गया था. इसके साथ ही उनकी पेंशन भी जारी की गयी.

Next Article

Exit mobile version