देश सेवा के बाद रिटायर्ड सैनिक बंधन उरांव ने वीरान जंगल में लायी हरियाली, पेंशन की राशि से पढ़े गांव के बच्चे कर रहे विदेश में नौकरी, पढ़िए पूरी कहानी

गुमला (दुर्जय पासवान) : गुमला जिले के सिसई प्रखंड के पिलखी गांव निवासी बंधन उरांव जंगल के रक्षक हैं. वह रिटायर सैनिक हैं और पिछले 13 वर्षों से अकेले 150 एकड़ से भी अधिक भू-भाग में फैले पिलखी जंगल की सुरक्षा कर रहे हैं. बंधन नि:संतान हैं. उनके कोई बच्चे नहीं हैं, लेकिन बंधन के लिए जंगल के पेड़ पौधे ही संतान हैं. वे जंगल के हर पेड़ पौधे को अपनी संतान समझते हैं. इसलिए 13 सालों से वह जंगल की रक्षा कर रहे हैं. पिलखी गांव के जिस स्थान पर वर्तमान में जंगल है. चारों ओर हरे-भरे पेड़ हैं. आज से 13 साल पहले यह जगह वीरान थी. घास फूस उगा हुआ था. बंधन असम राइफल्स से सेवानिवृत होने के बाद गांव वापस आकर जंगल की रक्षा में जुट गये. इनकी पेंशन की राशि से पढ़े बच्चे आज विदेश में नौकरी कर रहे हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 14, 2020 4:18 PM

गुमला (दुर्जय पासवान) : गुमला जिले के सिसई प्रखंड के पिलखी गांव निवासी बंधन उरांव जंगल के रक्षक हैं. वह रिटायर सैनिक हैं और पिछले 13 वर्षों से अकेले 150 एकड़ से भी अधिक भू-भाग में फैले पिलखी जंगल की सुरक्षा कर रहे हैं. बंधन नि:संतान हैं. उनके कोई बच्चे नहीं हैं, लेकिन बंधन के लिए जंगल के पेड़ पौधे ही संतान हैं. वे जंगल के हर पेड़ पौधे को अपनी संतान समझते हैं. इसलिए 13 सालों से वह जंगल की रक्षा कर रहे हैं. पिलखी गांव के जिस स्थान पर वर्तमान में जंगल है. चारों ओर हरे-भरे पेड़ हैं. आज से 13 साल पहले यह जगह वीरान थी. घास फूस उगा हुआ था. बंधन असम राइफल्स से सेवानिवृत होने के बाद गांव वापस आकर जंगल की रक्षा में जुट गये. इनकी पेंशन की राशि से पढ़े बच्चे आज विदेश में नौकरी कर रहे हैं.

नि:संतान बंधन उरांव ने पेड़-पौधों को ही अपना पुत्र मानकर इसकी देखभाल करने में अपना जीवन समर्पित कर दिया है. सुबह होते ही ये भोजन-पानी और लाठी पकड़ कर जंगल पहुंच जाते हैं. दिनभर पेड़ों की रक्षा करते हैं. पेड़ों के प्रति इनका अटूट प्रेम व लगाव देखते ही बनता है. बंधन उरांव बताते हैं कि उनका कोई पुत्र नहीं है. असम राइफल्स में 26 वर्ष सेवा देकर 2006 में सेवानिवृत्त होकर गांव आया. किसानी का कार्य शुरू किया. खेतों में काम करने के दौरान अक्सर देखता था कि सैकड़ों लोग जंगलों से लकड़ी काटकर ले जाते हैं और अपने जानवरों को भी जंगल में छोड़ देते हैं. मन में विचार आया. ऐसे में तो कुछ ही वर्षो में जंगल का नामोनिशान मिट जाएगा. उसी वक्त जंगल बचाने का निश्चय किया. ग्रामीणों के साथ बैठक कर जंगल बचाने के लिए प्रेरित किया. वन रक्षा समिति का गठन हुआ.

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शुरुआती दौर में ग्रामीणों का पूर्ण सहयोग नहीं मिला, लेकिन आज सभी का सहयोग मिल रहा है. जंगलों की हरियाली देख अलग ही आनंद मिलता है. बंधन उरांव पेड़ों की रक्षा के साथ-साथ अपनी जमा पूंजी व पेंशन की राशि को दूसरों के बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करते हैं. बताते हैं कि जरूरतमंद बच्चे पढ़ाई के लिए सहयोग मांगते हैं. जिसे मैं वापस नहीं मांगता हूं. कुछ अभिभावक राशि वापस करते हैं. इनके खर्च पर पढ़ाई कर भरनो तुरीअंम्बा के अरविंद अमेरिका में मार्चेंट नेवी, आशीष कलकत्ता में अधिकारी हैं. वर्तमान में सरना तिर्की को पढ़ा रहे हैं जो इंटरमीडिएट में है.

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वन रक्षा समिति के अध्यक्ष भूपेंद्र बड़ाईक ने कहा कि जंगल बचाने की मुहिम के तहत बंधन के प्रस्ताव पर शुरू में हैरानी हुई, परंतु उसकी जिद के आगे ग्रामीणों ने सहमत होकर समिति का गठन किया. बंधन वन रक्षक बन गये. नियम बनाया गया. समिति की अनुमति के बिना जंगल से लकड़ी नहीं काटना है. कृषि कार्य के लिए मुफ्त में, विवाह मड़वा के लिए 150 रुपया और साल में जलावन के लिए मार्च माह में सूखा पता जंगल से लाना है. समिति के कोष में 20 हजार जमा हो गया है. जिसे उधार पर जरूरतमंद को दिया जाता है. जंगल की रखवाली करने के एवज में 172 परिवार बंधन को छह किलो धान देते हैं. 13 वर्ष पूर्व बंधन की बात ग्रामीण ठुकरा देते तो आज जंगल खत्म हो गया होता.

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Posted By : Guru Swarup Mishra

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