पुरानी बाजार में एक भी यूरिनल व शौचालय नहीं
नगर पंचायत का दर्जा मिले 18 वर्ष बीत जाने के बाद भी नहीं बदली गढ़वा शहर की तस्वीर
नगर पंचायत का दर्जा मिले 18 वर्ष बीत जाने के बाद भी नहीं बदली गढ़वा शहर की तस्वीर जितेंद्र सिंह, गढ़वा गढ़वा शहर का इतिहास काफी पुराना है. यहां की तंग गलियां आज भी बनारस की गलियों की याद दिलाती हैं. कभी यह पलामू जिले का अनुमंडल मुख्यालय हुआ करता था, जिसे एक अप्रैल 1991 को पलामू से अलग कर नये जिले के रूप में स्थापित किया गया. नये जिले के रूप में गढ़वा का विकास अपने आप में एक बड़ी चुनौती थी. इसी क्रम में वर्ष 2007 में इसे नगर पंचायत का दर्जा मिला, ताकि योजनाबद्ध तरीके से शहरी विकास संभव हो सके. इसके बाद करोड़ों रुपये का फंड भी उपलब्ध कराया गया. पांच वर्ष बाद, 2013 में नगर पंचायत को नगर परिषद का दर्जा प्राप्त हुआ. हालांकि, जिस तेजी से फंड मिला, उसी गति से विकास कार्य धरातल पर नहीं उतर सके. गढ़वा का मुख्य बाजार क्षेत्र जिले का सबसे बड़ा कारोबारी केंद्र माना जाता है. खादी बाजार, घड़ा पट्टी, सुतली पट्टी, रूई पट्टी, अग्रवाल मोहल्ला, लोहा पट्टी, गुड़ पट्टी और गला पट्टी जैसे पुराने बाजार आज भी व्यापार की धड़कन हैं. बावजूद इसके, यहां एक भी सार्वजनिक यूरिनल या शौचालय नहीं है. परिणामस्वरूप खरीदारी करने या काम से आने-जाने वाले लोगों को भारी परेशानी उठानी पड़ती है. स्वच्छता अभियान के बावजूद सड़कों पर खुले में पेशाब करने की विवशता शहर की छवि पर दाग लगा रही है. शहर में कचरा प्रबंधन की भी ठोस व्यवस्था नहीं शहरवासी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं. इस दौरान नगर विकास विभाग द्वारा करोड़ों रुपये की राशि जारी की गयी, फिर भी शहर में ठोस कचरा प्रबंधन, सीवरेज और ड्रेनेज व्यवस्था की दिशा में कोई ठोस कार्य नहीं हुआ. कचरा प्रबंधन की योजना राजनीतिक खींचतान में अटक गयी, जिससे व्यवस्था और बदहाल हो गयी. लोगों ने जतायी नाराजगी महिलाओं को सबसे ज्यादा परेशानी : पूनम केसरी रंगोली प्रतिष्ठान की संचालिका पूनम केसरी ने बताया कि बाजार में शौचालय की सुविधा नहीं होने से महिलाओं को काफी असुविधा होती है. उन्होंने कहा कि यह नगर परिषद की लापरवाही है और इसे दूर करने के लिए तुरंत कदम उठाने की जरूरत है. नगर परिषद गठन के बाद नहीं बना यूरिनल : सुरेश प्रसाद घड़ा पट्टी के व्यवसायी सुरेश प्रसाद ने बताया कि नगर परिषद बनने से पहले बाजार समिति ने खादी बाजार और सब्जी बाजार में यूरिनल बनाये थे, लेकिन अब वे ध्वस्त हो चुके हैं. परिषद के गठन के बाद से अब तक दोबारा निर्माण नहीं कराया गया है. बाहर से आने वाले व्यापारियों को होती है दिक्कत : रवि अग्रवाल लोहा पट्टी के थोक कपड़ा व्यापारी रवि अग्रवाल ने कहा कि यहां छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश से व्यापारी आते हैं, पर यूरिनल की सुविधा नहीं होने से वे काफी परेशान रहते हैं. इससे शहर की छवि पर भी नकारात्मक असर पड़ता है. क्षेत्र में दो-तीन यूरिनल जरूरी : भरत प्रसाद केसरी भरत प्रसाद केसरी ने कहा कि कई बार वे अपने घर का शौचालय महिलाओं को उपयोग करने देते हैं. उन्होंने सुझाव दिया कि अगर पूरे क्षेत्र में शौचालय बनाना मुश्किल है तो कम-से-कम दो-तीन यूरिनल जरूर बनाए जाएं. जगह की कमी बनी बड़ी बाधा : पिंकी केसरी नगर परिषद की पूर्व अध्यक्ष पिंकी केसरी ने बताया कि बाजार क्षेत्र में जगह के अभाव के कारण यूरिनल का निर्माण नहीं हो सका. अन्नपूर्णा मंदिर और खादी बाजार के पास निर्माण की योजना बनी थी, लेकिन स्थानीय विरोध के कारण कार्य रुक गया. उन्होंने कहा कि शीघ्र ही इस दिशा में फिर से पहल की जायेगी. विकास के लक्ष्य पर नहीं हुआ काम : विभा केसरी सामाजिक कार्यकर्ता विभा प्रकाश केसरी ने कहा कि किसी भी शहर का हृदय उसका बाजार क्षेत्र होता है. यहां सार्वजनिक शौचालय का न होना इस बात का प्रमाण है कि समेकित विकास की दिशा में गंभीर प्रयास नहीं हुए हैं. क्या कहते हैं जिम्मेदार बाजार क्षेत्र में यूरिनल का निर्माण कराया जायेगा : इओ इस संबंध में कार्यपालक पदाधिकारी सुशील कुमार ने कहा कि बाजार क्षेत्र में यूरिनल निर्माण के लिए प्रयास किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि यूरिनल तो बन जाता है, लेकिन उसका रख रखाव ठीक से नहीं होने के कारण दुरूपयोग होने लगता है. इसके लिए एक सोसाइटी बनाकर उसकी देखरेख की जिम्मेदारी देनी होगी.
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