2000 फीट लंबे घोड़टप्पा पत्थर पर कैद है 257 साल पुराने रक्तरंजित युद्ध की कहानी

- घोड़ों की टाप और खून के निशान आज भी सुनाते हैं प्रेम और सत्ता संघर्ष की दास्तां

By Akarsh Aniket | November 9, 2025 9:11 PM

– घोड़ों की टाप और खून के निशान आज भी सुनाते हैं प्रेम और सत्ता संघर्ष की दास्तां विजय सिंह, भवनाथपुर गढ़वा जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर भवनाथपुर प्रखंड की मकरी पंचायत के बरवारी गांव में स्थित कहरनी दाई नदी का तट इतिहास की एक अनोखी और रहस्यमयी गाथा का साक्षी है. नदी किनारे करीब 2000 फीट लंबा विशाल पत्थर है, जिसे स्थानीय लोग घोड़टप्पा के नाम से जानते हैं. यह शिला सदियों से एक रक्तरंजित युद्ध और प्रेम-संघर्ष की कहानी अपने भीतर समेटे हुए है. इस विशाल शिलापट पर उभरे हाथियों, घोड़ों, पालकियों और मानव पदचिह्नों के साथ खून जैसे गहरे निशान आज भी साफ दिखायी देते हैं. यह दृश्य ग्रामीणों और आगंतुकों के लिए वर्षों से कौतूहल का विषय बना हुआ है. कहा जाता है कि यह वहीं स्थान है, जहां करीब 257 वर्ष पूर्व दो राजाओं के बीच भयंकर युद्ध हुआ था. उस संघर्ष की किंवदंतियां आज भी गांव-गांव में सुनायी जाती हैं, हालांकि शासन-प्रशासन की ओर से इसे ऐतिहासिक या पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की दिशा में अब तक कोई ठोस पहल नहीं हुई है. प्रेम और प्रतिशोध से उपजा था भीषण युद्ध स्थानीय शिक्षक पांडेय सूर्यकांत शर्मा, सतेंद्र यादव और राजेंद्र कोरवा ने बताया कि यह कहानी पीढ़ी-दर-पीढ़ी सुनायी जाती रही है. उनके अनुसार, लगभग 250 वर्ष पहले एक राजा अपनी नयी-नवेली रानी से विवाह कर लौट रहे थे. बारात घोड़ों और पालकियों से सजी थी और शाम होने पर बरवारी गांव की कहरनी दाई नदी के किनारे उन्होंने पड़ाव डाला. उसी दौरान एक प्रतिद्वंद्वी राजा, जो उसी रानी से विवाह करना चाहता था, उसने घात लगाकर हमला कर दिया. इसके बाद दोनों राजाओं के बीच लगभग 28–29 दिन तक भीषण युद्ध चला. हमलावर राजा ने पहले राजा, उनके सैनिकों और बारातियों को मार डाला तथा रानी को अपने साथ ले गया. कहा जाता है कि यह लड़ाई इतनी रक्तरंजित थी कि नदी का तट खून से लाल हो गया था. आज भी मौजूद हैं खून और टाप के निशान ग्रामीणों के अनुसार, युद्ध के दौरान घोड़ों की टाप और खून की धाराओं से जो निशान उस शिला पर बने, वे आज दो सदी से अधिक समय बाद भी धुंधले नहीं पड़े हैं. पत्थर के बीच एक सुरंग जैसी दरार भी है, जिसके माध्यम से कुछ बाराती अपनी जान बचाने में सफल हुए थे. कहा जाता है कि युद्ध में मारे गये राजा, सैनिकों और बारातियों का अंतिम संस्कार इसी नदी के तट पर किया गया था. तभी से यह स्थान स्थानीय रूप से श्मशान घाट के रूप में भी जाना जाता है. स्थानीय जानकारों का कहना है कि घोड़टप्पा केवल एक पत्थर नहीं, बल्कि इतिहास की एक अनसुलझी पहेली है, जो प्रेम, प्रतिशोध और सत्ता संघर्ष की उस रक्तरंजित कहानी को अपने 2000 फीट लंबे सीने में अब भी संजोए हुए है. पर्यटन विकास की जरूरत ग्रामीणों और इतिहासप्रेमियों का मानना है कि यह स्थल झारखंड के इतिहास और लोककथाओं का एक अहम प्रतीक बन सकता है. जरूरत है कि शासन-प्रशासन और इतिहासकार इस स्थल का गहन अध्ययन और संरक्षण करें, ताकि बरवारी गांव की यह अनमोल ऐतिहासिक धरोहर आने वाली पीढ़ियों के सामने उजागर हो सके.

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