Train House: रेलवे में नौकरी, ट्रेन में कटता है वक्त, रिटायरमेंट के बाद भी ट्रेन में ही रहेंगे, बनाया हेंब्रम एक्सप्रेस

Train House In Jamshedpur: झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला में एक आदिवासी परिवार ने अपने घर को ट्रेन की तरह डिजाइन कराया है. पास से गुजरने पर आप सहसा यकीन नहीं करेंगे कि ये घर है. बिल्कुल ट्रेन की तरह यह घर दिखता है. ऐदलबेड़ गांव के श्यामा हेंब्रम ने रेलवे में कार्यरत हैं. उन्होंने अपने पेशे के अनुरूप घर की दीवारों पर कलाकारी करायी है. यह घर आस-पास के लोगों के बीच चर्चा में है.

By Guru Swarup Mishra | April 27, 2025 8:33 PM

Train House In Jamshedpur: घाटशिला (पूर्वी सिंहभूम), परवेज-झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला प्रखंड की धरमबहाल पंचायत के ऐदलबेरा गांव में एक आदिवासी परिवार का घर आप देखते ही रह जाएंगे. आपने शायद ही ऐसा घर देखा होगा. घर के स्वरूप को आदिवासी बेटे ने अपने पेशे के अनुरूप डिजाइन कराया है. श्यामा हेंब्रम रेलवे गार्ड हैं. उन्होंने घर को ट्रेन की तरह डिजाइन कराया है. इस घर को लोग देखते ही रह जाते हैं. उन्होंने घर का नाम दिया हेंब्रम एक्सप्रेस. रेलवे गार्ड के रूप में वे ट्रेन में भी ड्यूटी करते हैं और रिटायरमेंट के बाद भी वे इस हेंब्रम एक्सप्रेस में रहेंगे. रेलवे के प्रति उनका स्नेह और अनोखी कलाकारी इन दिनों चर्चा में है.

देखता ही रहता है सड़क से गुजरनेवाला हर शख्स


खड़गपुर रेलवे मंडल में रेलवे गार्ड के पद पर कार्यरत श्यामा हेंब्रम ने अपने घर को ट्रेन का स्वरूप दिलाया है. इन्होंने अपने घर को रेलवे की बोगी की तरह डिजाइन कराया है. उनके घर की दीवारों पर की गयी खास पेंटिंग और सजावट इतनी अलग है कि सड़क से गुजरने वाला हर शख्स ठिठककर बस देखता ही रह जाता है. घर का मुख्य दरवाजा बिल्कुल रेलवे बोगी के प्रवेश द्वार जैसा तैयार किया गया है. खिड़कियों को इमरजेंसी खिड़की की तरह दिखाया गया है.

मां और बहन से बताया रेलवे के प्रति स्नेह


श्यामा हेंब्रम की मां पानो हेंब्रम ने बताया कि श्यामा खड़गपुर में रेलवे गार्ड के पद पर कार्यरत है. उसने पेंटर से अपने घर को रेलवे बोगी जैसा बनवाया है. दरवाजे और खिड़कियों को भी उसी शैली में सजाया गया है. उनकी बहन मीनू हेंब्रम ने कहा कि भैया ने अपनी सोच और मेहनत से इस घर को खास स्वरूप दिया है. रेलवे से जुड़े होने के कारण वे हमेशा कुछ अलग करना चाहते थे. श्यामा हेंब्रम का यह प्रयास न सिर्फ गांव में चर्चा का विषय बना हुआ है, बल्कि स्थानीय कला और आधुनिक सोच का सुंदर मेल भी पेश करता है. इस क्षेत्र के आदिवासी परिवार अपने घरों में अक्सर कलाकारी करते रहते हैं, खासकर बांदना, सोहराय और टुसू पर्व में यह देखने को मिलता है.

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